लंदन: संगोष्ठी स्मृति एवं संवाद
श्रृंखला-93 के तहत
सुनामधन्य लेखक, पत्रकार, कथाकार रघुवीर सहाय जी के कविताओं पर
केन्द्रित थी। वातायन-यूके द्वारा आयोजित स्मृति एवं संवाद श्रृंखला की शुरुआत डॉ
रेखा सेठी जी की अध्यक्षता एवं संचालन में संपन्न हुई, जिसमें भारत के वरिष्ठ साहित्यकार व
आलोचक प्रो. अरविन्द त्रिपाठी जी एवं डॉ. पंकज कुमार बोस दिल्ली विश्विद्यालय में
प्राध्यापक व युवा आलोचकने सहाय की कविताओं पर समुचित टिप्पणी देते हुए वक्ताओं की
भूमिका निभाई। वातायन की संस्थापक, दिव्या माथुर जी के सुन्दर संयोजन एवं
आशीष मिश्रा जी के स्वागत-भाषण एवं आत्मीय धन्यवाद ज्ञापन करते हुए इस संगोष्ठी की
शोभा और सफलता निश्चित थी।दिव्या जी ने डॉ. रेखा सेठी को उनके पदोन्नति पर
शुभकामनाओं सहित उन्हें बधाइयाँ दीं और बताया कि यूट्यूब के माध्यम से कवि रघुवीर
सहाय की पुत्री हेमा सिंह जी भी ये कार्यक्रम देख रही हैं। वैश्विक संगोष्ठी में
सम्मलित थे विश्व भर से जुड़े लेखक, विद्वान और मीडियाकर्मी।
तदनुसार डॉ.
सेठी ने अपने गुरु नित्यानंद तिवारी के कथन “कविता से सवाल करो वह स्वयं जवाब देगी” को फार्मूला की तरह मैंने प्रयोग करके
देखा तो अद्भुत रूप से कविता समझ में आ जाती है।स्मृतिशेष कवि रघुवीर सहाय को याद
करते हुए,”हमारे कवि रघुवीर
सहाय जी ने सत्ता और समाज से जिस प्रकार की जवाब देही माँगी है तो उन्हें सुनते और
पढ़ते हुए मुक्तिबोध याद आते रहे।
अरविन्द
त्रिपाठी ने कहा,” रघुवीर सहाय की कविता भोग विलास की कविता नहीं है अपितु समाज और सत्ता में
हस्तक्षेप की कविता हैं। आपकी कविताओं में स्त्री जीवन की मुक्ति के प्रश्नों को जितनी
हमदर्दी और आत्मीयता से जगह दी गयी है, वह कमाल की है। डॉ पंकज बोस जी ने भी कहा
कि सहाय जी की कविताओं में जो मारकता है वह है सपाट बयानी की। आज की पीढ़ी शायद उसी
की नकल कर रही है। आपने कवि की ‘अधिनायक’ कविता को याद कर उसकी कुछ पंक्तियाँ”फटा सुथन्ना पहने…।” को पढ़कर सुनाया।
अरविन्द
त्रिपाठी ने बताया कि,” सहाय जी शहरी जीवन के लोक कवि हैं। साधारण भाषा में बड़ी और विमर्शपूर्ण बात
कह जाना उनकी विशेषता थी। त्रिपाठी जी ने सहाय जी की कविता,”अट्ठारह बरस की लड़की से कहना/तुम बेवकूफ
हो/उसे रिझाना है/अड़तीस बसर की स्त्री से वाही बात कहना/उसे दुत्कारना है….।‘ सुनाई। बातचीत के दौरान अरविन्द त्रिपाठी जी ने कवि विष्णु खरे, चन्द्रकांत देवताले और श्रीकांत को याद
किया और बताया कि जैसे सर्वेश्वरदयाल और श्रीकांत शब्दों के कवि हैं उसी तरह
रघुवीर सहाय वाक्यों के कवि हैं।
सहाय जी की
कविताओं में सौन्दर्यबोध की बात पर पंकज बोस जी ने उनके प्रथम संग्रह“सीढियों पर धूप में” की कविताओं में से कुछ एक को पढ़कर भी
सुनाया और कहा उनका लेखन विविधवर्णी है। एक शब्द ‘हाहाहूती’ शब्द के लिये कहा ये शब्द किसी भी कवि की
कविताओं में में नहीं दिखा। “गमले में उगा हरा बिरवा/ मुझे शान्ति
देता है,” कविता का पाठ भी किया।
डॉ.सेठी ने
जब रघुवीर सहाय की कविताओं में छंदात्मकता को लेकर बात कही तो अरविन्द त्रिपाठी जी
ने सहाय जी का लेख “ यथार्थ यथा स्थित नहीं” की याद की और बताया कि वे चाहे छंद मुक्त
लिखें या छन्दबद्ध दुःख, करुणा और सम्वेदनात्मक तत्व उनकी कविताओं
को भाष्वर करते हैं। वे दुःख और करुणा को मिलकर ऐसा रसायन पैदा करते हैं जो यथार्थ
में आकर हैमर करता है।
अंत में मीरा मिश्रा कौशिक जी संगोष्ठी से जुड़ सकीं और अपने पारिवारिक सम्बन्ध के बारे में बताया जिसे सुनना सभी को अच्छा लगा। श्रोता मनोज तिवारी ने सहाय जी के गद्य को प्रभावी बताय। अंत में आशीष मिश्रा जी ने सभी वक्ता मेहमानों की पंक्तियों को कोट करते हुए उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित कर सभा को समाप्ति किया।
श्रोताओं
में विश्व भर के लेखक और विचारक सम्मिलित हुए, जिनमें प्रमुख हैं: प्रो टोमियो मिज़ोकामी, डॉ लुदमिला खोखोलवा, अनूप भार्गव, डॉ मनोज मोक्षेन्द्र, शैलजा सक्सेना, चीन से विवेक मणि त्रिमाठी, कप्तान प्रवीर भारती, जय वर्मा, अरुण सब्बरवाल, रेनू यादव, महादेव कोलूर, गीतू गर्ग, इत्यादि।
प्रस्तुति: कल्पना मनोरमा, पुरस्कृत अध्यापिका एवं स्वतंत्र लेखिका, जिनकी साहित्य, संगीत और भ्रमण में रूचि है।kalpanamanorama@gmail.com