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नवदिवसीय नवकार महामंत्र की आराधना,तृष्णा और इच्छाओं का कोई अंत नहीं: मुनि पीयूषचन्द्रविजय



  राजगढ़ (धार)। नवकार आराधना के सातवें दिन मुनिश्री ने कहा कि आज नवकार आराधना सातवां दिन है । हम सिद्ध भगवान से सिद्धि प्राप्त करने की प्राथर्ना कर रहे है । हर जीव सिद्ध गति में जाने की कामना करता है । हम मानव जीवन में आये है और पुरुषाथर् करके सिद्धगति प्राप्त कर मोक्ष की प्राप्ति कर सके यह भाव हमारे हमेशा होना चाहिये । अरिहंत को अरिहंत भी सिद्ध पद ने ही बनाया है । जब एक आत्मा सिद्धगति में जाती है तब दूसरी आत्मा निगोद से बाहर आती है । सिद्ध पद पर जाने वाली आत्मा कभी वापस नहीं आती है । हम ‘‘सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु‘‘ शब्द का उपयोग करते है इसका अथर् यही है हमारी आत्मा सिद्धगति को प्राप्त कर ले ओर हमें वापस भवभ्रमण की भ्रमणा से मुक्ति प्राप्त हो जाये । जिन शासन में नवकार महामंत्र, करेमि भंते और नमुत्थणं सूत्र (शक्रस्तव सूत्र) शाश्वत सूत्र है । प्रतिक्रमण पापों के अतिक्रमण को रोकता है । सिद्ध पद को प्राप्त करने के लिये चार घाती और चार अघाती कमोर् का क्षय करना पड़ता है । उक्त बात गच्छाधिपति आचायर्देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने राजेन्द्र भवन राजगढ़ के प्रवचन में कही । आपने कहा कि नवकार महामंत्र का पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध नाम भी है । आज के समय आशा रखने वाला निराशा पाता है । लोगों को दो समय का भोजन मिल जाये तो भी उसकी तृष्णा का अंत नहीं होता है । इंसान पेट भरने के बाद पेटी भरने की इच्छा रखता है । तृष्णा और इच्छाओं का कोई अंत नहीं है । भिखारी को कभी भी खाली हाथ नहीं लोटाना चाहिये । सम्प्रति महाराजा ने सवा लाख जिन मंदिरों का निमार्ण करवाकर उसमें सवा करोड़ जिन प्रतिमाऐं भरवायी थी । उनके उपर आचायर् श्री सुहस्तीसूरीश्वरजी म.सा. की कृपा थी । जिन शासन में सात क्षेत्र का उल्लेख आता है । जिसमें जिन प्रतिमा भराने का महत्व बताया गया । बिना समय के अपनी बात कभी ना कहे उचित समय का इंतजार करें, समय आने पर अपनी बात पूरी ताकत के साथ कहे । प्राथर्ना के लिये कलम, दवात, स्याही की जरुरत नहीं होती है प्राथर्ना तो अंतर आत्मा के तार प्रभु के साथ जुड़ने पर होती है । प्रभु ने हमें पृथ्वी पर भेजते समय चेतावनी दी थी कि मैं तुझे मानव योनि में भेज रहा हूॅ वहां जाकर इस मानव जीवन का सदुपयोग करना यदि सदुपयोग नहीं किया तो यह मानव जन्म ओर यह योनि वापस नहीं मिलेगी । जीव सीधा चलेगा तभी सिद्धत्व को प्राप्त करेगा टेढा तिरछा चलेगा तो निश्चित भटकेगा ।

आज शुक्रवार को प्रवचन के दौरान मुनिश्री ने बताया कि अगामी चैत्र माह में गच्छाधिपति आचायर्देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का राजगढ़ श्रीसंघ में वषीर्तप आराधना हेतु आदेश राजगढ़ निवासी श्री सचिनकुमारजी कांतिलालजी सराफ परिवार को प्राप्त हुआ था । लाभाथीर् परिवार ने आने वाले चैत्र माह से वषीर्तप आराधना दोनों समय बियासने के साथ प्रारम्भ करने भाव राजगढ़ श्रीसंघ के समक्ष रखे । मुनिश्री ने अगले वषर् 2022 चैत्र मास से वषीर्तप राजगढ़ में करवाने की घोषणा की । 28 अगस्त को दीपक एकासने का आयोजन श्री प्रकाशचंदजी बाबुलालजी कोठारी परिवार दत्तीगांव वालों की ओर से रखा गया है । नवकार महामंत्र के सातवें दिन एकासने का लाभ श्री सचिनकुमार कांतिलालजी सराफ परिवार की और से लिया गया । एकासने के लाभाथीर् का बहुमान राजगढ़ श्रीसंघ की ओर से बहुमान के लाभाथीर् मेहता परिवार ने किया । मुनिश्री की प्रेरणा से नियमित प्रवचन वाणी का श्रवण कर श्रीमती पिंकी सुमितजी गादिया राजगढ़ ने अपनी आत्मा के कल्याण की भावना से महामृत्युंजय तप प्रारम्भ किया था, आज उनका 29 वां उपवास है ।

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