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देव,गुरु और धर्म के प्रति अटुट आस्था वाले को समकित की प्राप्ति संभव : मुनि पीयूषचन्द्रविजय

 


 राजगढ़ (धार) । शास्त्रों में बताया गया है कि बाल्यावस्था में विद्या प्राप्ति जरुरी है व युवावस्था में धनोपार्जन जरुरी है । 18 से 50 वर्ष की उम्र तक व्यक्ति को धन कमा लेना चाहिये । इस सूत्र में संसार में जीने की और धर्म के क्षेत्र में धर्म क्रिया करने की सलाह दी गयी पर वृद्धावस्था में यदि हम धर्म करने का विचार मन में लाते है कि बुढ़ापे में हम धर्म ध्यान कर लेगें पर यह कभी भी संभव नहीं हो पायेगा । वृद्धावस्था हमें देखने मिलेगी या नहीं मिलेगी यह कोई नहीं जानता । विद्या प्राप्ति के लिये गुरुकुल में रहने की व्यवस्था बतायी गयी है । इंसान के जीवन में जो ज्ञान की रोशनी प्रकट कर दे वही गुरु कहलाते है । पांचवें आरे में सुख और दुख दोनों ही देखने को मिलते है पर आने वाले छठे आरे में चारों और भयंकर दुःख ही दुःख देखने को मिलने वाला है । इसलिये प्रभु से हमेशा यह कामना करें की हमारा जन्म पुनः छठे आरे में न हो । भगवती सूत्र में गणधर गौतमस्वामी ने प्रभु महावीर से जन कल्याण हेतु 36 हजार प्रश्न पूछे थे । आपके भाव बदलेगें तभी आपका जीवन संवर पायेगा । उक्त बात श्री राजेन्द्र भवन राजगढ़ में गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने कही । आपने कहा कि जो शिष्य गुरु की आज्ञा का पालन नहीं करता है उसके हाल बेहाल हो जाते है । 48 मिनिट की सामायिक का असर जीवन में स्थाई रुप से होना चाहिये । हमेशा गुरु को वंदन भावों के साथ किया जाना चाहिये । शास्त्रों में दान, शील, तप और भाव ये धर्म के चार भेद बताये गये है । आपकी आराधना तब तक शून्य की स्थिति में रहेगी जबतक आपके भावों में धर्म के प्रति श्रद्धा आस्था नहीं है । पूर्ण भावों के साथ ही कि गयी धर्म आराधना ही साधक को सफलता के सौपान पर ले जाती है । जब भी आपके निवास पर आचार्यदेव, गुरुभगवन्त या साध्वीवृंद आहार (गोचरी) हेतु पधारे तब आपकी वाणी में मधुरता, ह्रदय में उत्साह, मन में निर्मलता होना चाहिये साथ ही उनके आने पर उनको पांच कदम आगे जाकर आहार हेतु विनंती करना एवं आहार लेने के पश्चात् पुनः उन्हें गंतव्य तक छोड़ने हेतु जाना चाहिये । साधु दर्शन से पुण्य में अभिवृद्धि होती है । श्रावक को श्रमणोपासक कहा गया है । जिसे देव, गुरु और धर्म के प्रति अटुट आस्था उत्पन्न हो जाये उसे ही समकित की प्राप्ति की संभावना बनती है ।

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