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राजकमल किताब उत्सव का तीसरा दिन,लोकभारती की नई कथा-शृंखला ‘धरोहर कहानियाँ’ का लोकार्पण




 


- साहित्य वही है जो वंचित वर्ग के पक्ष में खड़ा हो : शिवमूर्ति
- लिटरेचर मेरे लिए डेली डोज़ है : कुमार अम्बुज



  भोपाल। राजकमल प्रकाशन द्वारा आयोजित किताब उत्सव के तीसरे दिन सात सत्रों में कार्यक्रम हुआ। 6 सितम्बर से जारी यह उत्सव 10 सितम्बर तक चलेगा। इस दौरान राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगाई गई है जहाँ कहानी, उपन्यास, कविता समेत विविध विषयों की 5000 से अधिक पुस्तकें प्रदर्शित की गई है। साथ ही बच्चों के लिए भी किताबें उपलब्ध है।

शिवमूर्ति के उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ पर चर्चा

  पहले सत्र में शिवमूर्ति के बहुचर्चित उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ पर कैलाश वानखेड़े ने उनसे बातचीत की। इस दौरान शिवमूर्ति ने कहा कि साहित्य वही है जो समाज के कमजोर और वंचित वर्ग के पक्ष में खड़ा हो। उन्होंने कहा कि गांवों में जाति अब भी मौजूद है, लेकिन आज लोग जाति से ऊपर उठकर डॉक्टर, नेता और अन्य भूमिकाओं में भी देखे जा सकते हैं।

  शिवमूर्ति ने बताया कि खेती अब घाटे का सौदा बन चुकी है और ऐसे समय में छोटे-बड़े सभी को मिलकर चलने की ज़रूरत है। सच्चा साहित्यकार वही है जो दूसरों के दुख को महसूस करे और उसे व्यक्त करे। उनका कहना था कि व्यवस्था को बदलने में समय लगता है, लेकिन समायोजन और संयोजन से ही समाज को बेहतर बनाया जा सकता है।

‘प्रेम एक पालतू बिल्ली’ कहानी-संग्रह पर बातचीत
  
  दूसरे सत्र में निधि अग्रवाल के कहानी-संग्रह ‘प्रेम एक पालतू बिल्ली’ पर हेमंत देवलेकर और सविता भार्गव ने चर्चा की। सविता भार्गव ने कहा कि इस संग्रह की सभी कहानियों का अंतःस्रोत संवेदना है। हेमंत देवलेकर ने टिप्पणी की कि यह कहानियां अंतर्मन की सुंदर रचनाएं हैं, जो मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं को सामने लाती हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक के किरदार सामाजिक संदर्भों में गहराई से जुड़े हैं और इन कहानियों में मानवीय एकीकरण स्पष्ट दिखाई देता है। वहीं लेखक निधि अग्रवाल ने बताया कि किस तरह समय के साथ प्रेम की परिभाषा बदलती है और परिस्थितियों में बंधी एक लड़की का जीवन इसमें अभिव्यक्त होता है।

लीलाधर मंडलोई की आत्मकथा पर चर्चा

  अगले सत्र में लीलाधर मंडलोई की आत्मकथा ‘जब से आँख खुली है’ पर चर्चा हुई। सत्र में रामप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि यह पुस्तक गांव और कस्बों से जुड़े लोगों को प्रभावित करेगी। राजेश जोशी ने इसे छोटे-छोटे उपाख्यानों से बनी स्मृतियों का आख्यान बताया। अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि अतीत जैसा भी हो उसकी स्मृति हमेशा सुखद होती है। शिवमूर्ति ने आत्मकथा लेखन को कठिन कार्य बताया। लीलाधर मंडलोई ने कहा कि इस पुस्तक में आदिवासी समाज पर किया गया लेखन अत्यंत महत्वपूर्ण है।

सन्तोष चौबे के कहानी-संग्रह ‘गरीबनवाज़’ पर चर्चा

  चौथा सत्र सन्तोष चौबे के कहानी-संग्रह ‘गरीबनवाज़’ पर चर्चा का था जिसमें अब्दुल बिस्मिल्लाह और कुणाल सिंह की उपस्थिति रही। सत्र का संचालन डॉ. विशाखा राजुरकर राज ने किया। इस अवसर पर संतोष चौबे ने कहा कि आज की कहानियों को गति और तापक्रम दो आलोचनात्मक सूत्रों से देखा जाना चाहिए। उनके अनुसार लेखन की गति सहज और मानवीय होनी चाहिए, जबकि तापक्रम संतुलित रहे। उन्होंने कहा कि कहानी लिखने से पहले लेखक के भीतर दुख का भाव जागता है, फिर कथानक और दृश्य धीरे-धीरे उभरते हैं।

  कुणाल सिंह ने संतोष चौबे के कथाकार रूप पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे छोटी और लंबी दोनों तरह की कहानियां लिखते हैं। अब्दुल बिस्मिल्लाह ने पुस्तक की भाषा और विषय को नया बताया। उन्होंने ‘गरीबनवाज’ शब्द के अर्थ पर भी विस्तार से चर्चा की।

लोकभारती की नई कथा-शृंखला ‘धरोहर कहानियाँ’

  पाँचवें सत्र में लोकभारती प्रकाशन की नई कथा-शृंखला ‘धरोहर कहानियाँ’ के पहले सेट का लोकार्पण हुआ। इस शृंखला के माध्यम से उन कथाकारों की कहानियों फिर से सामने लाने का प्रयास किया गया है जिनका हिन्दी कथा साहित्य की नींव रखने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इनमें प्रेमचंद, विश्वम्भर नाथ कौशिक, जयशंकर प्रसाद, रांगेय राघव, भुवनेश्वर, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, चतुरसेन शास्त्री, सुभद्रा कुमारी चौहान, राहुल सांकृत्यायन, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कहानियों के संकलन शामिल है। सत्र में कथाकार कुणाल सिंह, मनोज कुमार पांडेय और जितेंद्र बिसारिया ने शृंखला की पुस्तकों और कहानीकारों के योगदान पर बातचीत की।

‘कविता प्रसंग’ पर कवि कुमार अम्बुज से चर्चा

  अगले सत्र में अनिल करमेले से ‘कविता प्रसंग’ पर बातचीत करते हुए कवि कुमार अंबुज ने साहित्य और समाज पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि लिटरेचर मेरे लिए डेली डोज़ है, जिसके बिना मेरे भीतर कमी रह जाएगी। लिखना, पढ़ने का बाय-प्रोडक्ट है, इसलिए पढ़ना सबसे जरूरी है। उन्होंने बताया कि अवसाद का इलाज केवल संघर्ष, चेतना और रचनाशीलता से ही संभव है। उन्होंने तानाशाही के खतरों और बहुसंख्यक की सांप्रदायिकता को लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया। उन्होंने कहा कि भारत को एक ही संस्कृति में नहीं ढाला जा सकता। दैहिक विमर्श को ही स्त्री विमर्श मानना गलत है और लैंगिक कानूनों का कई बार दुरुपयोग होता है। 

  आख़िरी सत्र ‘शाम-ए-सुखन’ में डॉ. नुसरत मेहदी की अध्यक्षता में मुशायरे का आयोजन हुआ जिसमें आमिर अजहर, अपर्णा पात्रीकर, गौसिया सबीन, खुशबू श्रीवास्तव और संदीप श्रीवास्तव जैसे शायरों ने नज़्में और ग़ज़लें पढ़ीं। सत्र का संचालन तसनीफ हैदर ने किया। 

किताब उत्सव में कल होंगे ये कार्यक्रम

  मंगलवार को किताब उत्सव में कार्यक्रम की शुरुआत एक महत्वपूर्ण विषय ‘भारतीय साहित्य का समकाल’ विषय पर परिचर्चा से होगी। इसके बाद पवन करण और नवीन सागर की ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ और विनय दुबे की ‘सम्पूर्ण कविताएँ’ पुस्तकों का लोकार्पण होगा। अगले सत्रों में ‘देश प्रेम की विरासत’ और ‘आलोचना का आज’ विषयों पर चर्चा होगी। कार्यक्रम का समापन ‘हिमालय का आज : एक हिमालय यात्री की चिंता’ विषय पर व्याख्यान के साथ होगा।
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