यह महाकाव्य असाधारण है, जिसमें 7 कांड,75 अध्याय 36 लोक विधाएं व 206 पात्र हैं। इसमें भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म से लेकर संपूर्ण जीवन-संघर्ष और महापरिनिर्वाण तक का विस्तृत वृतांत समाहित है। इसकी सबसे विलक्षण विशेषता यह है कि इसमें छंद, सवैया, लावनी, चौबोला,कविता, बहरतब्बील, भजन, रागिनी,गीत, आल्हा, दोहा और संवाद जैसी लुप्त होती कर्णप्रिय विधाओं को पुनर्जीवित किया गया है। साहित्य इतिहास में इससे पहले इतनी विविध लोकविधाओं में किसी भी महाकाव्य की रचना नहीं हुई, यही कारण है कि इसे विश्व रिकॉर्ड का सम्मान प्राप्त हुआ।
सम्यक प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित इस महाकाव्य की लेखन-यात्रा 14 अक्तूबर 1994 को प्रारम्भ हुई—उसी दिन जब बाबा साहब ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया था—और दो वर्षों की दिन-रात की साधना के बाद जून 1996 में पूर्ण हुई। विमोचन का ऐतिहासिक अवसर तत्कालीन उपराष्ट्रपति महामहिम डॉ. हामिद अंसारी के करकमलों से उनके आधिकारिक आवास पर सम्पन्न हुआ।
नोएडा में आयोजित सम्मान समारोह में गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के इंडियन चीफ आलोक कुमार व एशिया प्रमुख डॉ.मनीष बिश्नोई ने इस विद्वान पिता-पुत्र की जोड़ी को सम्मान पत्र, प्रमाण पत्र, प्रतीक चिन्ह और शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा—“भीम चरित मानस महाकाव्य एक अमर कृति है, यह साहित्य और समाज दोनों के लिए ऐतिहासिक प्रेरणास्रोत सिद्ध होगी।”
सम्मान ग्रहण करते हुए साहित्यकार डॉ. अवनीश राही और महाकवि अमर सिंह राही ने कहा—“यह उपलब्धि केवल हमारी नहीं, बल्कि सम्पूर्ण साहित्य-जगत और समाज की है। बाबा साहब के जीवन पर आधारित यह महाकाव्य लुप्त होती कर्णप्रिय लोकविधाओं की पुनर्प्रतिष्ठा का प्रयास है। हमें गर्व है कि हमारी साधना को विश्व पटल पर यह मान्यता प्राप्त हुई।”
ज्ञातव्य हो कि भारत विभूषण साहित्यकार डॉ. अवनीश राही अलीगढ़ के हीरालाल बारहसैनी इंटर कॉलेज में व्याख्याता पद पर आसीन हैं। उन्हें हाल ही में विद्या वाचस्पति डॉक्ट्रेट की मानद् उपाधि से भी सम्मानित किया गया है।