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डॉ. विजय जैन: जज्बा, संघर्ष और सफलता की मिसाल


जीवन में कुछ अलग करने की चाह, समाज के लिए कुछ लौटाने की भावना और धर्म की गहराई को समझने की ललक—इन तीनों का संगम हैं डॉ. विजय जैन, जो आज न केवल एक सफल उद्यमी हैं, बल्कि जैनोलॉजी में पीएचडी कर एक मिसाल भी बन चुके हैं। श्री रजत ग्रुप के संस्थापक डॉ. जैन की कहानी सिर्फ व्यापार की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, शिक्षा और सेवा की प्रेरणादायक यात्रा है।

राजस्थान के ब्यावर में जन्मे विजय जैन ( Dr Vijay Jain) ने बचपन से ही पढ़ाई में रुचि दिखाई। एमडीएस यूनिवर्सिटी, अजमेर से एमकॉम प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद उन्होंने साल 2000 में मुंबई की डायमंड मार्केट से अपने करियर की शुरुआत की। कुछ समय बाद वे अपने पिता प्रकाश चंद जैन के साथ मार्बल के व्यवसाय में जुड़ गए और आठ वर्षों तक मेहनत की। परंतु 2008 में पिता के असमय निधन के बाद उनका जीवन एक मोड़ पर आ गया।

इस कठिन समय ने उन्हें तोड़ा नहीं, बल्कि और मजबूत किया। विजय जैन ने ठान लिया कि वे कुछ रचनात्मक और अलग करेंगे। इसी सोच से उन्होंने गोल्ड कॉइन और गोल्ड बार के इंपोर्ट के व्यवसाय में कदम रखा और ‘श्री रजत ग्रुप’ की नींव रखी। आज यह समूह भारत ही नहीं, विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुका है।

लेकिन विजय जैन की यात्रा केवल व्यापार तक सीमित नहीं रही। जैन धर्म में गहरी आस्था रखने वाले विजय को संथारा प्रथा और जैन समाज को मिले अल्पसंख्यक दर्जे के बाद इस धर्म को गहराई से समझने की प्रेरणा मिली। अपने गुरु रूप मुनि जी महाराज और इसरो वैज्ञानिक डॉ. सुरेंद्र पोखरना से मार्गदर्शन पाकर उन्होंने तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद से जैनोलॉजी में पीएचडी करने का निश्चय किया।

डॉ. जैन बताते हैं, “चार साल तक दिन-रात एक करके मैंने इस शोध को पूरा किया। पीएचडी करना आसान नहीं था, लेकिन मन में जुनून था। आज मैं ‘डॉ.’ लगाकर गर्व महसूस करता हूं क्योंकि यह मेरी पहचान से ज्यादा, समाज और संस्कृति के लिए समर्पण है।”

अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए वे कहते हैं कि अगर नियत साफ हो और लक्ष्य स्पष्ट, तो कोई भी मुश्किल रास्ता पार किया जा सकता है। उनका मानना है कि ईमानदारी और कठोर मेहनत से हर मंजिल हासिल की जा सकती है।

व्यापार और शिक्षा के बाद अब विजय जैन फिल्म प्रोडक्शन के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। उनका मानना है कि युवाओं को प्रेरित करने का यह सशक्त माध्यम है और वे सकारात्मक कहानियों को जन-जन तक पहुंचाना चाहते हैं।

सेवा भाव उनके जीवन का अहम हिस्सा है। वे कहते हैं, “मैंने संघर्ष को जिया है, इसलिए तकलीफ को समझता हूं। आज जब मैं सक्षम हूं, तो मेरा कर्तव्य बनता है कि जरूरतमंदों की मदद करूं।” वे आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं और बच्चों की शिक्षा और आत्मनिर्भरता पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।

राजनीति से भी उन्हें खास लगाव है, परंतु वे चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं रखते। वे कहते हैं, “राजनीति मेरा शौक है, लेकिन मैं नेता बनने के लिए नहीं, समाज को बेहतर दिशा देने के लिए इसमें रुचि रखता हूं।”

डॉ. जैन अपने आराध्य देव श्री नाकोड़ा भैरवनाथ, गुरुदेव रूपमुनि जी, और अपने दिवंगत पिता श्री प्रकाश चन्द जैन को अपनी सफलता का मुख्य आधार मानते हैं। वे कहते हैं कि पिता से मिले संस्कार, गुरुदेव का मार्गदर्शन और आराध्य देव का आशीर्वाद ही उन्हें हर चुनौती से लड़ने की शक्ति देता है। व्यापार में उनके आदर्श श्री रतन टाटा हैं, जिनकी सादगी, मूल्य और दूरदर्शिता उन्हें प्रेरित करती है।

आज डॉ. विजय जैन का जीवन न केवल एक सफल कारोबारी की कहानी है, बल्कि यह दर्शाता है कि धर्म, शिक्षा और सेवा के माध्यम से भी ऊंचाइयां हासिल की जा सकती हैं। वे आज लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा हैं, जो संघर्ष से डरते नहीं, बल्कि उसे अपना हथियार बनाते हैं।


 

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