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धर्मनगरी राजगढ़: चार प्रदेशों के कलाकारों की भक्ति और रंगों से सजी भव्य धर्मयात्रा में हजारों श्रद्धालुओं ने लिया आध्यात्मिक आनंद






  राजगढ़ (धार) । राजगढ़ के इतिहास में बुधवार का दिन स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया। श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान गंगा सप्ताह के समापन पर आयोजित इस भव्य धर्मयात्रा में धर्म, आस्था और संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिला। सात दिनों तक नगर के 13 मंदिरों में चली श्रीमद् भागवत कथा का समापन एक भव्य और दिव्य धर्मयात्रा के रूप में हुआ, जिसमें हर वर्ग और समाज ने आध्यात्मिक डुबकी लगाई।


 37 वर्षों की परंपरा का अनूठा उत्सव 

   1987 में प्रारंभ हुआ यह महोत्सव अब 37 वर्षों की गौरवशाली परंपरा बन चुका है। 12 सितंबर से नगर के 13 मंदिरों में श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा की स्थापना के साथ इस महायज्ञ की शुरुआत हुई थी । आज, यह आयोजन हजारों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है। भागवत कथा की मधुर ध्वनि और भक्तों का उत्साह इस महोत्सव को एक विशाल आध्यात्मिक पर्व में परिवर्तित कर देता है।

 श्री चारभुजा युवा मंच की महत्वपूर्ण भूमिका

   इस महायज्ञ के आयोजन में श्री चारभुजा युवा मंच की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। संपूर्ण सनातन समाज के सहयोग से आयोजित यह आयोजन अपने समापन पर एक भव्य धर्मयात्रा के रूप में परिणित होता है। यह यात्रा सामाजिक एकता और सामुदायिक सद्भाव का प्रतीक बनती है। नगर के हर वर्ग और समाज ने अपनी छतों और गलियों में इस धर्मयात्रा का स्वागत किया, मानो पूरा नगर ही एक विशाल मंदिर में परिवर्तित हो गया हो। यात्रा का मार्ग भक्ति, रंग, और समर्पण से ओत-प्रोत हो उठा, जिसमें चार प्रदेशों के कलाकारों ने अपनी अद्वितीय प्रस्तुतियों से वातावरण को सुरम्य बना दिया।













   13 मंदिरों में कथावाचकों का सानिध्य धर्मयात्रा से पहले,नगर के 13 प्रमुख मंदिरों में विभिन्‍न कथावाचकों ने सात दिनों तक भक्तों को श्रीमद भागवत कथा का सानिध्य प्रदान किया। इन 13 मंदिरों में कथावाचकों ने भक्तों को आध्यात्मिक शिक्षा और जीवन के मूल्यों का बोध कराया। जिन मंदिरों में यह आयोजन हुआ,वे हैं :  

 - पांच धाम एक मुकाम माताजी मंदिर - ज्योतिषाचार्य श्री पुरुषोत्तम जी भारद्वाज
- श्री देववंशी मालवीय लौहार समाज मंदिर श्री राम मंदिर - श्री सुभाष जी शर्मा, दत्तिगांव
- श्री मुक्तेश्वर महादेव मंदिर, मंडी - श्री अखिलेश जी शर्मा (कंजरोटा)
- श्री लालबाई फुलबाई माताजी मंदिर - श्री चंद्रप्रकाश जी दवे (लाबरिया)
- श्री राधाकृष्ण शेषशायी क्षत्रिय राजपूत समाज मंदिर - श्री कृष्णकांत जी शर्मा (छड़ावद)
- श्री शंकर मंदिर, मालीपुरा - श्री पवन जी शर्मा (राजगढ़)
- श्री सरकारी राम मंदिर - श्री सुनील जी शर्मा (भानगढ़)
- श्री राधा-कृष्ण गवली समाज मंदिर - श्री लखन जी शर्मा (राजगढ़)
- श्री सेन समाज राम मंदिर - श्री शुभभ जी शर्मा (राजोद)
- श्री चारभुजाजी मंदिर - श्री आचार्य मधुसूदन सिंवाल (देवपुरी, राजस्थान)
- श्री बाबा रामदेव मंदिर, चारण समाज - श्री अभिषेक जी व्यास (बालोदा)
- श्री राम मंदिर, दलपुरा - श्री मधुसुदन जी शर्मा (फुलगांवड़ी)
- श्री आईमाताजी मंदिर, दलपुरा - श्री प्रकाश जी शर्मा (सोनगढ़)










  


आध्यात्मिक यात्रा का अनूठा अनुभव

  धर्मनगरी राजगढ़ की इस भव्य धर्मयात्रा ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि भक्ति और श्रद्धा की शक्ति अनंत है। अध्यात्म, समर्पण, और संस्कृति के इस अनूठे संगम को नगरवासी लंबे समय तक अपने हृदय में संजोकर रखेंगे। यात्रा के दौरान ज्योतिषाचार्य पुरुषोत्तम जी भारद्वाज पैदल ही श्रद्धालुओं का अभिवादन स्वीकारते हुए चले, जिनके साथ मंच अध्यक्ष राकेश सोलंकी भी मौजूद रहे। मंच के सभी सदस्य एक समान वेशभूषा पहने, समर्पण और एकता का प्रतीक बने, इस धर्मयात्रा का नेतृत्व कर रहे थे।



 चार प्रदेशों के कलाकारों ने मनमोहक प्रस्तुतियों से मोहा मन 

   धर्मयात्रा में चार प्रदेशों के कलाकारों ने धार्मिक एवं पौराणिकता पर आधारित मनमोहक प्रस्तुतियां दीं। 12 फीट ऊंची नरकासुर और गरुड़जी की झांकी विशेष आकर्षण का केंद्र बनी। नरकासुर की झांकी ने बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश दिया,जबकि गरुड़जी की भव्यता ने श्रद्धालुओं को आस्था के पंखों पर सवार कर दिया। रथ में सजे तेरह मंदिरों के लड्डू गोपाल जी की पालकी, बाबा खाटू श्याम का दरबार, इंदौर के मालवा बैंड की मनमोहक धुनें, दिल्ली की चिराग आर्ट्स, राजस्थान के युवराज ग्रुप उदयपुर, और राजकोट की कथक मंडली ने धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का अनूठा समागम प्रस्तुत किया।

 समाज और संस्कृति का एक अद्भुत संगम

   यह महायात्रा और उससे पूर्व हुए आयोजन, राजगढ़ की सांस्कृतिक समृद्धि और धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं। विभिन्न समाजों और वर्गों के सहयोग से इस आयोजन ने समाज में एकता, समरसता और आपसी सौहार्द्र की भावना को बल दिया। नगरवासियों ने अपनी छतों और ओटलों पर खड़े होकर इस दिव्य यात्रा का स्वागत किया, मानो पूरा नगर एक मंदिर में परिवर्तित हो गया हो। यात्रा का स्वागत 60 से अधिक धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं द्वारा किया गया, और हर वर्ग के श्रद्धालुओं ने अपने-अपने तरीके से इस महोत्सव में सहभागिता कर इसे सफल बनाया। 

 कथापुराणियों का हुआ सम्मान 

  मुख्य मार्गों से होकर यह भव्य यात्रा पुनः श्रीमाताजी मंदिर पहुंची, जहां सभी कथापुराणियों का मंच की ओर से सम्मान किया गया। महाआरती के बाद प्रसाद वितरण हुआ, जिससे भक्तों की आस्था और भी गहरी हो गई। इस पूरे आयोजन के दौरान मंच संरक्षक धारासिंह चौहान, मनोज माहेश्वरी, नवीन बानिया, गोपाल माहेश्वरी, पवन जोशी, मुकेश बजाज, सुजीत ठाकुर, महेश राठौर, विजय व्यास, राजेश शर्मा, ओमप्रकाश परमार, गोविंद मोरी, भरत मोरी, गिरिराज राठौर, हरिओम सोनी, दुर्गाप्रसाद सोलंकी, दीपक पटेल, अंतिम कमेड़िया, मनीष मकवाना, कृष्णा बारोड़, राजेंद्र पड़ियार, घनश्याम सोलंकी, राहुल यादव, कमलेश चौहान, रवि पंवार, जाग्रत शर्मा, प्रेम सोलंकी, संजय भाटी सहित अनेक पदाधिकारी व्यवस्थाओं को लेकर सक्रिय रहे। 

 भक्ति और समर्पण का चरम
 
   धर्मयात्रा के दौरान माहौल में भक्ति का रंग और भी गहरा हो गया। आदिवासी लोकगायक विक्रम चौहान, भेरू मस्ताना, और गायिका विलास परमार के भजनों पर श्रद्धालुओं का नृत्य करते हुए समर्पण की अनूठी झलक दिखाई दी। कलाकारों द्वारा दी गई मनमोहक प्रस्तुतियों को श्रद्धालु अपने मोबाइल के कैमरे में कैद करते नजर आए। यात्रा के मार्ग में महामंडलेश्वर डॉ. नरसिंह दास जी महाराज का सानिध्य और मंच के सभी सदस्यों की समर्पण भावना ने इस धर्मयात्रा को और भी पवित्र बना दिया।

 धर्मयात्रा का समापन और सम्मान

  धर्मयात्रा अपने पूर्ण रूप में जब श्रीमाताजी मंदिर पहुंची, तो वहां सभी कथापुराणियों का मंच की ओर से आत्मीय स्वागत और सम्मान किया गया। महाआरती और प्रसाद वितरण के साथ भक्तों की आस्था और उल्लास ने एक नई ऊँचाई प्राप्त की। मंच के पदाधिकारी और समाज के सभी वर्गों के लोग व्यवस्थाओं में सक्रिय नजर आए, जिनके सहयोग और सेवा से इस अद्भुत महायज्ञ का सफल समापन हुआ।

 
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