(अल्फ़ेज़ भट्टी ,सोशल वर्कर व पक्षी प्रेमी)
खड़मोर घोराड परिवार का सबसे छोटा पक्षी है। मादा आकार में नर से बड़ी होती है और नर मादाओं को संभोग के लिए लुभाने की अपनी अनूठी कला के लिए दुनिया भर में पक्षी प्रेमियों के बीच प्रसिद्ध हैं। और आठ से 10 फीट ऊंची छलांग लगाता है। खड़मोर विश्व में केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही पाया जाता है। गुजरात में केवल सौराष्ट्रमें भी इसकी जनसंख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है।
गुजरात राज्य में खड़मोर (लेजर फ्लोरिकन) पक्षी की संख्या बहुत कम होती जा रही है। सौराष्ट्र के वेलावदर कालियार नेशनल पार्क में हर साल मानसून में लेजर फ्लोरिकन्स देखे जाते हैं। यहां की घास वाली भूमि इसके लिए उपयुक्त है और यह घास में मौजूद कीड़ों को खाता है। अधिकांश किसान कपास जैसी नकदी फसलें उगाते हैं। इसमें रासायनिक उर्वरकों का भी प्रयोग होता है। यह खड़मोर के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। यहां तक कि वेलावदरमैं भी केवल 90 लेजर फ्लोरिकन बचे हैं। इसके अलावा यह पक्षी पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में पाया जाता है।
प्रजनन काल के दौरान पित्त में नर घास से हवा में बार-बार छलांग लगाता है। एक दिन में लगभग 500 छलांगें लगती हैं। इससे महिलाएं प्रभावित होती हैं और अन्य उम्मीदवार सतर्क हो जाते हैं।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर द्वारा खड़मोर को लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। केवल भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले इस पक्षी की कुल आबादी 700 से भी कम है और गुजरात के यंग एनवीरोंमेंटलिस्ट अल्फ़ेज़ भट्टी कह रहे हैं की इसे बचाने के लिए देर करदी तो खड़मोर पूरी तरह से नामशेष हो जाएंगे.