राजगढ़(धार)। नगर के महनीय व्यास परिवार कई वर्षों से प्रकृति प्रेमी रहे है । पर्यावरण की रक्षा करना उनका प्रथम दायित्व है यह सोच कर विगत कई वर्षों से माटी के गणेश जी बनाते है तथा नि: शुल्क वितरण करते है । व्यास परिवार के माताश्री चेतना व्यास का कहना है कि पहले हमारे द्वारा भी पीओपी के गणेश जी बैठाए जाते थे लेकिन जब नदियों का प्रदूषण देखा तथा मूर्तियों को कई बार खंडित अवस्था में देखा तो स्वयं पर ग्लानि उत्पन्न हुई तब विचार आया और माटी के गणेश जी का प्रस्ताव परिवार के समक्ष रखा तो सबने बैठ कर निर्णय लिया की पहले स्वयं के घर बना कर विराजित करते है उसके पश्चात आगे कदम बढ़ाएँगे और समय के साथ धीरे-धीरे यह कार्य प्रारम्भ किया पहले 51 का लक्ष्य रखा तथा उसके पश्चात 108 माटी के गणेश जी का निर्माण प्रारम्भ किया तथा समय के साथ बीज गणेश जी का निर्माण किया गया । व्यास परिवार के पिताश्री प्रहलाद व्यास का कहना है कि माटी के गणेश जी के लिए अच्छे से गुथी हुई माटी में गाय का गोबर मिलाया जाता है तथा कंडे की राख व घास तथा लुग्दी मिलायी जाती है और इस घोल को अच्छे से मिलाया जाता है तत्पश्चात् इस मिश्रण से गणेश जी बनाए जाते है । परिवार के अंतराष्ट्रीय कलाकार राहुल व्यास का कहना है कि सभी कार्यों में उनके सम्पूर्ण परिवार के साथ-साथ उनकी संस्था कलाग्रह का महत्वपूर्ण सहयोग रहता है । राहुल के विद्यार्थी विष्णु द्वारा माटी तैयार की जाती है तथा संस्था के कई विद्यार्थियों द्वारा माटी के बीज गणेश जी का निर्माण किया जाता है यह प्रशिक्षण अंतराष्ट्रीय कलाकार राहुल व्यास द्वारा दिया जाता है । राहुल की धर्मपत्नी परिधि व्यास द्वारा गणेश जी को अंतिम स्वरूप में लाया जाता है तथा रंगो द्वारा सजाया जाता है । इस कार्य में कलाग्रह के देवेंद्र मारू, आंशी बजाज आदि का सहयोग रहा ।
कहा जाता है गणेश चतुर्थी पर माटी और गोबर के गणेश की स्थापना करना शास्त्र सम्मत है। इनमें पंचतत्व का वास माना जाता है। गोबर में महालक्षमी का वास माना गया है। इससे घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली का आगमन होता है।विगत कई दशकों से प्लास्टर आफ पेरिस से निर्मित भगवान गणेश की मूर्ति बनाकर उन्हें गाढ़े रंग से चित्रित कर उनकी स्थापना की जाती है। इसके बाद उनका विसर्जन नदियों, कुएं और बावड़ियों में किया जाता है। इन मूर्तियों की बजाय माटी की मूर्ति स्थापित करने का संकल्प लें। स्थापना के बाद विसर्जन के लिए छह इंच ऊंचा बर्तन लें, उसमें स्वच्छ जल और थोड़ा गंगा जल, गो मूत्र, इत्र एवं हल्दी कुमकुम डाल दें। इसके बाद मूर्ति का योथपचार पूजन कर विसर्जित कर दें। एक दो दिन मूर्ति को पानी में रहने के बाद गमलों में प्रवाहित कर दें। इससे जलीयजीव के लिए घातक प्लास्टर आफ पेरिस से उनका बचाव होगा तथा माटी में दबा हुआ बीज जब एक वृक्ष का आकार लेगा तब साथ-साथ वृक्षारोपण भी होगा ।