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वातायन-वैश्विक संगोष्ठी-86 ‘रंगीन परों वाला सपना’ डॉ० नासिरा शर्मा की पुस्तक का विमोचन!

 


 लंदन : संगोष्ठी डॉ० नासिरा शर्मा जी का बाल कहानी संग्रह ‘रंगीन परों वाला सपना’ जो वनिका पब्लिकेशन से प्रकाशित, के विमोचन पर केन्द्रित थी। वातायन-यूके द्वारा आयोजित पुस्तक लोकार्पण गोष्ठी की शुरुआत डॉ.दिविक रमेश जी की अध्यक्षता में संपन्न हुई, जिसमें मुख्यवक्ता के रूप में भी स्वयं डॉ० रमेश जी उपस्थित रहे। डॉ० नासिरा शर्मा जी की गरिमामयी उपस्थिति से लोकार्पण संगोष्ठी में उर्जा का संचार होता रहा। पुस्तक पर चर्चा पर आये विद्वानों में वनिका पब्लिकेशन की निदेशिका डॉ० नीरज शर्मा जी,’अभिव्यक्तिविश्वं’ की करता-धरता पूर्णिमा वर्मन जी के साथ कहानी पाठ के लिए कहानी वाचक के रूप में बालिका सुहानी यादव मौजूद रहीं। वातायन की संस्थापक दिव्या माथुर जी के कुशल एवं आत्मीय संयोजन और डॉ पद्मेश गुप्त जी के संक्षिप्त स्वागत-भाषण और ऋचा जैन जी के मुखर संचालन में इस संगोष्ठी की सारगर्भित सफलता निश्चित ही थी। जिसमें सम्मलित थे विश्व भर से जुड़े लेखक, विद्वान,श्रोता और मीडियाकर्मी।


 चूँकि लोकार्पण बाल कहानी संग्रह का था तो ऋचा जैन जी ने पैग्विन वाला पुलोवर दिखाया। जो ख़ास इसी मौके ले लिए उन्होंने धारण किया गया था। उसके बाद वातायन की संयोजिका दिव्या माथुर जी ने बिल्कुल बाल सुलभ ढंग से लाल रंग का ‘रेनडियर’ वाला स्वेटर पहना और लेखिका ने ‘बनीरेबिट’ का हेयर बैंड लगया। जिसको देखकर सभी जनों ने खूब मन-मोदन किया ।


  डॉ० पद्मेश गुप्त जी ने मेहमानों का स्वागत करते हुए मंच ऋचा जैन जी को सौंप दिया। जिसको बखूबी सम्हालते हुए ऋचा जैन जी ने डॉ० नासिरा शर्मा जी का भव्य लेखकीय परिचय देते हुए उनका वातायन के आभासी मंच पर स्वागत किया। तदुपरांत बारी-बारी मुख्य वक्ता के साथ-साथ सभी वक्ताओं और कहानी वादिका सुहानी यादव को मच पर आवाज़ दी। 


  सर्वप्रथम ‘रंगीन परों वाला सपना’ पुस्तक का आवरण खोलकर विमोचन किया गया। साथ में पुस्तक की प्रकाशक नीरज शर्मा जी ने अपना तथ्यपूर्ण वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने रेखांकित करते हुए कहा कि बाल साहित्य रचने वाले लेखक को बालमनोविज्ञान की जानकारी होना ज़रूरी है। साथ में रबिन्द्रनाथ टैगोर जी का कथन भी याद किया,“ठीक से देखने पर बच्चों से ज्यादा पुराना कोई नहीं दिखता।” यानी कि कितनी भी दुनिया बदलती जा रही हो किन्तु बच्चों के बचपने की परम्परायें पुरातन हैं और बनी रहेगीं। आपने कहा बच्चों को यथार्थ और सत्य सिखाने के लिए भारी-भरकम आदर्शवादी लेखन न होकर कोमल मन का साहित्य ज्यादा कारगर सिद्ध होगा। जैसा कि हमारी वरिष्ठ लेखिका नासिरा आपा ने अपनी कृति ‘रंगीन परों वाला सपना’ में कहानियों को रचा है। 


  उसके बाद बाल साहित्य को लिखने और महसूस करने वाली छोटी-सी साहित्यकार सुहानी ने बेहद परिपक्व आवाज़ और बेहतर आरोह-अवरोह के साथ कृति की शीर्ष कहानी’ रंगीन परों वाला सपना’ का पाठ किया तो गोष्ठी में आये मेहमानों ने उसकी दिल खोलकर तारीफ़ की। उसके वाद संचालक महोदया ने पूर्णिमा वर्मन जी को आदर के साथ मंच पर बुलाया। 


 पूर्णिमा वर्मन जी ने लेखिका की शान में,”आपकी कलम सिद्ध कलम है,जो लिखेगी दिल तक ज़रूर पहुँचेगा।” अगर इस पुस्तक की बात की जाए तो कहानियाँ उपदेशात्मक न होकर बेहद सरल मन की हैं, जैसे- हमारे बच्चे होते हैं। आपने संग्रह की तमाम कहानियों के शीर्षक पढ़कर उनके बारे में थोड़ी-थोड़ी तथ्यपूर्ण बात कही ताकि और पाठकों की कहानियों को पढ़ने की रुची बनी रहे। संग्रह की कहानी,’जंगल जलेबी’ को पढ़ते हुए आपने कहा कि उन्होंने उस फल पर एक लेख भी लिख डाला है। अंत में वर्मन जी ने संग्रह की सफलता पर लेखिका को ढेर सारी शुभकामनाएँ दीं।


 मुख्य वक्ता के रूप में डॉ० दिविक रमेश जी ने संयोजिका दिव्या माथुर, संचालिका ऋचा जैन और लेखिका नासिरा जी के प्रति आभार प्रकट करते हुए पुस्तक की अनेक विशेषताएँ बतायीं और सराहना की। उन्होंने लेखिका की महीन दृष्टि और करुणापूर्ण हृदय की तारीफ़ करते हुए कहा कि,”नासिरा जी का जुड़ाव मनुष्यों से ही नहीं अपितु प्रकृति से भी घना है। इस संग्रह की कहानियाँ पढ़ते हुए लेखिका के व्यापक अनुभव की आहट सभी को मिलेगी।” आपने संग्रह की तमाम कहानियों के वे तमाम अंश बोलकर सुनाए जिनमें जीवन धड़कता हुआ-सा महसूस हो रहा था। दिविक जी ने संग्रह की कहानियों के लिए एक बात और कही,”इन कहानियों में उन बच्चों को जुबान मिली है जो अपनी बात कह नहीं सकते। डॉ० दिविक रमेश जी ने पुस्तक पर ”दर्द और प्रेम के रिश्तों की कहानियाँ” नामक शीर्षक से अपने द्वारा लिखा वक्तव्यीआलेख पढ़ा। जिसमें संग्रह की तमाम खूबी परिभाषित हो सकीं।


 अंत में प्रसिद्ध लेखिका डॉ० नासिरा शर्मा जी ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया और अपने कहानी लेखन की शुरुआत उन्होंने बाल कहानी लेखन से हुई बताई। बच्चों के प्रति आपके मन का लगाव कहानियों में परिलक्षित होता है। इस संग्रह से जुड़ी भावनाओं को उन्होंने “सुनो बच्चो!” शीर्षक में दिल से कहा है। अंत में लेखिका ने जंगल जलेबी का स्वाद चखकर सभी देखें कहा। ताकि उनके अभिमत को समझ सकें। अंत में संचाल महोदया ऋचा जैन जी ने,”आपका सबका साथ हमारा सम्बल है।” कहते हुए गोष्ठी में आये हुए सभी जनों के प्रति आभार व्यक्त कर गोष्ठी का समापन किया। 


  श्रोताओं में विश्व भर के लेखक और विचारक सम्मिलित हुए, जिनमें प्रमुख हैं: प्रो टोमियो मिज़ोकामी,डॉ अरुण अजितसरिया,डॉ के.के.श्रीवास्तव,डॉ शिव पाण्डेय, विवेक मणि,डॉ मनोज मोक्षेन्द्र,डॉ लुदमिला खोखोलवा, कल्पना मनोरमा, शैल अग्रवाल,तितिक्षा शाह,अर्पणासंत सिंह,आराधना श्रीवास्तव,डॉ०सुषमा देवी,कैलाश बाजपेयी, सरिता पाण्डेय, आदेस गोयल, डॉ प्रभा मिश्रा, कादम्बरी, डॉ जय शंकर यादव, डॉ शैलजा सक्सेना, डॉ० वरुण कुमार, डॉ फ़िरोज़ ख़ान, विजय नागरकर, जय वर्मा, अरुण सब्बरवाल, शन्नो अग्रवाल, आस्था देव, दुर्गा प्रसाद, क्षमा पांडे, इत्यादि।  

 

 प्रस्तुति: कल्पना मनोरमा, अध्यापिका एवं पुरस्कृत स्वतंत्र लेखिका, जिनकी साहित्य, संगीत और भ्रमण में रूचि है। kalpanamanorama@gmail.com

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