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बारसा सूत्र का वाचन हुआ,संवत्सरी प्रतिक्रमण करके परस्पर किया मिच्छामि दुक्कड़म

 


 राजगढ़ (धार)। श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ के तत्वाधान में गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज वैराग्ययशविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जनकचन्द्रविजयजी म.सा. एवं साध्वी श्री सद्गुणाश्रीजी म.सा., साध्वी श्री संघवणश्रीजी म.सा., साध्वी श्री विमलयशाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा की निश्रा में पर्युषण महापर्व की आराधना चल रही है । पर्युषण पर्व की आराधना के अंतिम दिन भगवान महावीरस्वामी की मूल वाणी पर आधारित बारसा सूत्र का वाचन किया गया । मुनिश्री ने बताया कि उक्त सूत्र की रचना आचार्य श्री भद्रबाहुस्वामी द्वारा की गयी है । यह रचना प्राकृत अर्धमागधी भाषा में लिखी गयी है । इस सूत्र में प्रभु की मूल वाणी की 1200 गाथाऐं लिखी गयी है । शास्त्रों में कहा गया है कि कल्पसूत्र का जो भी श्रवण नहीं कर पाया या श्रवण करने में कही चूक हुई हो तो बारसा सूत्र का श्रवण कर लेने मात्र से कल्पसूत्र के श्रवण का लाभ प्राप्त हो जाता है । इस सूत्र को खड़े-खड़े वाचन करने का एवं खड़े-खड़े ही श्रवण करने का शास्त्रों में विधान बताया गया है । उक्त शास्त्र का वाचन वर्षभर में मात्र एक बार संवत्सरी महापर्व के दिन ही आचार्य भगवन्त, मुनि भगवन्त एवं साध्वीवृंदों के द्वारा ही किया जाता है ।






 पर्युषण पर्व के अंतिम दिन श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में बागरा निवासी शा. ओटमलजी सांकलचंदजी जैन परिवार द्वारा जिन मंदिर परिसर से बारसा सूत्र गाजते-बाजते प्रवचन मण्डप में लाया गया और लाभार्थी परिवार द्वारा बारसासूत्र की अष्टप्रकारी पूजा का विधान पूर्ण करवाकर पाट पर विराजित मुनि श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. को वाचन हेतु व्होराया गया । बारसा सूत्र की प्रथम ज्ञान पूजा- श्रीमती कमलाबेन कांतिलालजी मुम्बई, द्वितीय- श्रीमती सरोज के.एम. जैन धार, तृतीय- श्रीमती मंजुबेन अम्बोर एवं श्रीमती पदमाबेेन धार, चतुर्थ- श्री शेलेषकुमार रतनचंदजी मुम्बई, पंचम- श्री नवीनचंदजी रतनचंदजी बड़वानी द्वारा की गयी एवं बारसा सूत्र के ज्ञान की आरती श्री ओटमलजी साकलचंदजी जैन बागरा वालों ने उतारी । आरती के पश्चात् मुनि भगवन्तों एवं साध्वीवृंदों ने खड़े-खड़े बारसा सूत्र का वाचन किया । अट्ठाई की तपस्या करने वाले तपस्वीयों एवं श्रावक-श्राविकाओं ने भी खड़े-खड़े सूत्र का श्रवण किया । संवत्सरी महापर्व के अवसर पर लगभग सभी श्रावक-श्राविकाओं ने अपनी शक्ति अनुसार तप किया ।

 दोपहर में 3 बजे से वार्षिक संवत्सरी प्रतिक्रमण करके सभी श्रद्धालुओं ने संसार में रहने वाले जीव मात्र से मिच्छामि दुक्कड़ं करके क्षमायाचना की ।

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