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संसार काला नाग है,संयम हरा बाग है: मुनिश्री रजतचंद्र विजयजी म.सा.

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 झाबुआ। नमस्कार महामंत्र के 8 वें दिन परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद्विजय ऋषभचंद्र सूरीश्वरजी महाराजा साहेब के सुविनीत शिष्य प्रवचन प्रभावक मुनिराज श्री रजतचंद्र विजयजी म.सा ने संयम की सौरभ बिखेरने हुए कहा कि संसार काला नाग है संयम हरा बाग है यह जानते हुए भी कुछ लोग नाग जैसे संसार की मोहनिंदा मैं ही फंसे रहन चाहते है। उमास्वातिजी  तत्वार्थ ग्रंथ में कहते हैं कषाय योग निग्रह, कषाय को छोड़ना ही संयम है। संयम का अर्थ साधु वेश तो है ही साथ में आहार का संयम, सोने उठने बैठने बोलने का संयम भी जरूरी है। अनियंत्रित गाड़ी दुर्घटना को जन्म देती है अनियंत्रित वाणी से भी दुर्घटना हो सकती है, इसलिए तोल मोल के बोलिये। युवासंत मुनिराज श्री रजतचंद्र विजयजी म.सा. ने आगे कहा पाप करने में जितना विलंब हो रहा व धर्म करने में जितनी जल्दी हो उतना अच्छा। इस विषय पर तीसरे तीर्थंकर संभवनाथ प्रभु के शासनकाल का 8 वर्ष के बालक वाला दिक्षा लेकर उसी दिन आयुष्य पूर्ण कर देवलोक का स्वामी बनने वाला प्रसंग सुनाया। मुनि श्री ने कहां संयमी आत्मा को प्रणाम करके इंद्र सिहासन पर बेठते हैं। साधु बनाने के बाद शासन की स्थापना होती है। साधु - साध्वी के विलोप में धर्म का विच्छेद व हानी होता है। मुनिश्री ने याद दिलाया सोने चांदी हीरे मोती माणेक संसार के रत्न है, दर्शन- ज्ञान -व चारित्र संयम के रत्न है। संसार से छुटने का मार्ग सयंम है। चारित्रवान आत्मा की पांच रुकावटे है -स्वप्रशंसा, परनिन्दा, रसना आसक्ति,कामवासना व कषाय की आग ये दूषण संयम बाग को भस्म कर देता है इनसे सावधान रहें। मुनिश्री ने एक ओर रोचक प्रसंग सुनाया मात्र पांच दिन का आयुष्य शेष है ऐसा जानकर नल राजा के भाई कुबेर ने संयम लिया व मोक्ष पधारे। ये संयम महान है। जीत विजयजी ने गीत प्रस्तुत किया।सपना संघवी एवं श्रुतिशाह को मासक्षमण तप निरंतर जारी है। बड़ी संख्या मे लोग 33 दिवसिय गणधर लब्धितप एवं नमस्कार महामंत्र की नव दिवसीय आराधना कर रहे हैं । नवकार की आराधना यशवंत भंडारी द्वारा चल रही है। आज नवकार चित्र पर दीप प्रज्जवलन गुरु समर्पण चातुर्मास समिति  व नवकार ग्रुप ने किया। मुनिश्री के श्री मुख से धारा प्रवाह प्रवचन को सुनने श्रदालु उमड रहे हैं। प्रभावना गुरुभक्त की ओर से की गई।

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