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नवदिवसीय नवकार महामंत्र की आराधना,धर्म का बंधन ही करेगा रक्षा: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

 

 राजगढ़ (धार)। नवकार आराधना के अंतिम दिन मुनिश्री ने कहा कि आज नवकार आराधना का अंतिम दिन है और श्रावण सुदी पूणिर्मा के अवसर पर रक्षाबंधन का पर्व भी है । लोग रेशम के धागे की राखी बांधकर भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा का वचन देता है । अहंकार, क्रोध, मान, माया, लोभ के चलते रेशम से बने धागों के बंधन तो एक बार टुटने की सम्भावना रहती है पर धर्म के क्षेत्र में नवकार की आराधना का साथ रहे और व्यक्ति धर्म के बंधन से युक्त हो तो हर कठिन परिस्थिति और संकट के समय में धर्म उसकी रक्षा करता है । धर्म करने वाली आत्मा अपने साधना के मार्ग के कारण स्वयं को संयमित रखती है और धर्म उस समय संयम के कारण उसके कल्याण मागर् को प्रशस्त करता है । जिन शासन में आचायर् को महाराजा कहते है । आचायर् भगवन्त के दशर्न मात्र से ही व्यक्ति का सम्यकदशर्न शुद्ध और निमर्ल हो जाता है । आचायर् भगवन्त अपने साथ धर्म दण्ड रखते है । तपस्वी लोग आचायर्श्री के धर्म दण्ड का नाप करके मोक्ष दण्ड तप किया करते है । उक्त बात गच्छाधिपति आचायर्देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने राजेन्द्र भवन राजगढ़ के प्रवचन में कही । आपने कहा कि साधक के कपड़े बहुत ही प्रभावशाली होते है । साधना के सभी उपकरण भी प्रभावशाली होते है । इन सभी का प्रभाव रहस्य के रुप में रहता है । संयम का अर्थ अंकुश है हम संयम जीवन में पांच इन्द्रियों अंकुश लगाते है । स्वाद इन्द्रिय पर अंकुश लगाने के लिये आयंबिल तप करके हम शरीर को कष्ट देते है । साधना के मार्ग में कठिनाई और कष्ट आते ही है । तपस्या के साथ क्रिया और विधि करना नितांत आवश्यक है । अन्न प्राप्ति के लिये व्यक्ति को झुठ भी बोलना पड़ता है । अनेक पापाचार करना पड़ते है । अन्न का अनादर करने से जीवन में दोष लगता है । हमारे पुण्य प्रबल है तभी हम पेट भरकर खाना खाते है । कभी-कभी इंसान अहंकार के कारण अन्न का अनादर कर देता है । क्रोध के आवेश में विवेक शुन्य हो जाता है । जब भी गुरु भगवन्त कोई बात कहे उनके वचनों पर विश्वास करना चाहिये क्योंकि गुरु भगवन्त हमेशा भाषा समिति का उपयोग करते है । जीवन में भाग्योदय धमर् के कारण ही होता है । नवकार महामंत्र ही व्यक्ति के भाग्य को चमकाता है । पुण्य प्रबल करने के लिये नवकार महामंत्र की आराधना ही सवोर्त्तम मार्ग है ।

नवकार महामंत्र के अंतिम दिन एकासने का लाभ श्री मथुरालालजी प्यारचंदजी मोदी परिवार ओर श्री बसंतीलाल पुखराजजी मेहता परिवार ने लिया । एकासने के लाभार्थी का बहुमान राजगढ़ श्रीसंघ की ओर से बहुमान के लाभार्थी मेहता परिवार ने किया । मुनिश्री की प्रेरणा से नियमित प्रवचन वाणी का श्रवण कर श्रीमती पिंकी सुमितजी गादिया राजगढ़ ने अपनी आत्मा के कल्याण की भावना से महामृत्युंजय तप प्रारम्भ किया था, आज उनका 31 वां उपवास है ।

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