राजगढ़ (धार) । संसार एक सागर है मानव सब तिनके इधर उधर से बहकर आये कौन यहां अब किसका । सागर का पानी खारा होने के कारण पीने योग्य नहीं होता है । इसी प्रकार संसार भी रहने योग्य नहीं है । संसार ओर सागर दोनों ही खारे है । समुद्र में सभी नदियों का जल मिल जाता है फिर यह पता नहीं चलता की कौन सा जल किस नदी का है । उपाध्याय भगवन्त विनयवान और गंभीर होते है । साधु-संतों को पढ़ाने का दायित्व उपाध्याय भगवन्त का होता है । साधु-साध्वी का जीवन कैसे सुन्दर बनाना है यह जिम्मेदारी उपाध्याय भगवन्त की होती है । शास्त्रों में तीर्थंकर के समतुल्य आचार्य भगवन्त को माना गया है । हमेशा स्वाध्याय करते रहना चाहिये । ज्ञान को यदि आगे बढ़ाना है तो स्वाध्याय नियमित होना चाहिये । क्योंकि स्वाध्याय भी तप की श्रेणी में आता है । विनय भी तप है । चरणों में बैठने वाला जीवन में सबकुछ विनय भाव के कारण पा लेता है । उक्त बात गच्छाधिपति आचायर्देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने राजेन्द्र भवन में कही । आपने बतलाया कि पहले के समय में लोग घर में खाते थे और अशुचि के लिये बाहर जाते थे और अब बाहर खा कर आते है और अशुचि हेतु घर में जाते है । आज हमारी मनः स्थिति बिगड़ती जा रही है । जहां शुद्धि होगी वहां गलत विचार उत्पन्न नहीं होगे । शुद्ध खाना खायेगें तभी मन शुद्ध रहेगा और अच्छे विचार आयेगें । विचार अच्छे रहे तो मनः स्थिति ठीक रहेगी । भाग्योदय का समय आने पर बुद्धि भी सही दिशा में काम करने लग जाती है । धर्म क्रिया की फल प्राप्ति के लिये धैयर् के साथ प्रतीक्षा करना पड़ती है । डिब्बे का दूध पीने से बुद्धि भी डिब्बे जैसी हो जाती है । विद्या हमेशा पात्र व्यक्ति को ही दी जाती है । ज्ञान उम्र में छोटे से भी लेने में संकोच नहीं करना चाहिये । जीवन से नकारात्मक विचारों को विसजिर्त करके सकारात्मक सोच हमेशा रखना चाहिये । कभी भी पाने की अपेक्षा जीवन में ना रखे क्योंकि अपेक्षा जब उपेक्षा में बदलती है तब बहुत कष्ट होता है । विद्या प्राप्ति के लिये सहजता, सरलता और विनयता होना बहुत जरुरी है ।
आज सोमवार को प्रवचन के दौरान मुनिश्री ने बताया कि 27 अगस्त को पाट परम्परा के षष्ठम पट्टधर गच्छाधिपति आचायर्देवेश श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का 10 वां पुण्यदिवस मनाया जावेगा । इस दिन सामुहिक सामायिक के साथ गुणानुवाद सभा होगी और दीपक एकासने का आयोजन श्री प्रकाशचंदजी बाबुलालजी कोठारी परिवार दत्तीगांव वालों की ओर से रखा गया है । 30, 31 व 01 सितम्बर तक त्रिदिवसीय दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की आराधना एकासने के साथ रखी गई है । इस आराधना में श्री कमलेशकुमार अनोखीलालजी चत्तर, श्रीमती मोहनबेन भैरुलालजी फरबदा, श्री पारसमल शांतिलालजी गादिया एवं पारणे का लाभ श्री कांतिलाल शांतिलालजी सराफ परिवार द्वारा लिया गया । मुनिराज श्री रजतचन्द्रविजयजी म.सा. एवं मुनिराज श्री जीतचन्द्रविजयजी म.सा. की निश्रा में आयोजित 25 अगस्त से 29 अगस्त तक गच्छाधिपति आचायर्देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के पांच दिवसीय पुण्योत्सव झाबुआ में पधारने हेतु राजगढ़ श्रीसंघ अध्यक्ष एवं श्रीसंघ के पदाधिकारियों को झाबुआ श्रीसंघ की ओर से श्री मनोहर मोदी एवं श्री अभय धारीवाल ने आग्रह करके निमंत्रण पत्रिका भेंट की । मुनिश्री की प्रेरणा से नियमित प्रवचन वाणी का श्रवण कर श्रीमती पिंकी सुमितजी गादिया राजगढ़ ने अपनी आत्मा के कल्याण की भावना से महामृत्युंजय तप प्रारम्भ किया था, आज उनका 33 वां उपवास है ।
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