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लोभ सर्व पाप का पिता है - मुनिराज श्री रजतचन्द्र विजयजी

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 झाबुआ। वीर गणधर लब्धि तप समापन  त्रिदिवसीय महोत्सव के प्रथम दिन धर्मसभा में पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद्विजय ऋषभचंद्र सूरीश्वरजी म.सा. ओजस्वी वक्ता मुनिराज श्री रजतचंद्र विजयजी म.सा.ने कहा तप करने वाली आत्मन आहार के लोभ पर विजय पाता है। उत्तराध्ययन ग्रंथ में भी वीर भगवान ने फरमाया जहां लाहो ताहा लोहो जहां लाभ होगा वहां लोभ बढेगा। लोभ सर्व पाप का पिता ( बाप )है। लोभी आत्मा मम्मण सेठ की तरह जीवन हार जाती है । लोभ प्रवृत्ति में अत्यधिक डूबे ये सातवी  नर्क के महेमान बने। पूज्य मुनिराज श्री रजतचंद्र विजयजी ने आगे कहा व्यक्ति को कितना भी मील जाये फीर भी संतोष नहीं होता है। जिसके पास कुछ नहीं वो सो पाना चाहता है, सो वाला हजार पाने की लालसा करता है, हजार वाला लाख, लाख वाला करोड़ों व करोड़ वाला अरबपति बनना चाहता है । सेठ राजा, राजा चक्रवर्ती चक्रवर्ती इंद्र, इंद्र सौधर्मैन्द्र बनना चाहता है, फिर भी उसे संतुष्टि नहीं होती। इसलिए तप करके कषाय को स्वाहाः करें। मुनिश्री ने बाल्यावस्था में अध्ययन के समय सुने हुए स्वर्ग के सुंदर लडु वाला लोभ विषयक प्रसंग सुनाया। तपोत्सव के पहले दिन पुण्योत्सव एवं तपोत्सव की सुंदर आकर्षक रंगीन पत्रिका का शुभमुहूर्त मुनिद्वय के वासक्षेप पश्चात गुरु समर्पण चातुर्मास समिति श्री संघ सदस्यो ने किया। मुनिश्री ने मंत्रोच्चार किया। पहला निमंत्रण श्री आदिनाथ जी महावीर प्रभु गौतम स्वामी गुरुदेव राजेंद्रसुरिजी गुरुदेव ऋषभचंद्रसूरीजी म.सा को दिया गया। इस अवसर पर सुभाष कोठारी, मुकेश रुनवाल,उत्तम लोढ़ा,मनोहर छाजेड़,यशवंत भंडारी,मनोज मनोकामना,राकेश मेहता,संजय कांठी,शैलेश शाह,भरत बाबेल,संजय  व धरमचंद महेता,सोहन लाल कोठारी, रमेश बांढिया,प्रदीप संघवी अशोक जैन, सुरेश कांठी, राजेश मेहता,अर्पित कांकरेचा,गट्टु भाई शाह, दिलीप संघवी मौजूद थे। संगीतमय पत्रिका लेखक के पश्चात प्रभुजी व गुरु मंदिर में बाजते गाजते पत्रिका रखी गई। मुनिश्री जीतचंद्र विजयजी ने विधिकारक हर्षद भाई व प्रकाश भाई ने भक्ति गीत गाये। सुरि ऋषभ पुण्योत्सव प्रथम गहुली का चढ़ावा बोला गया। गौतम स्वामी आरती का लाभ मोरवी से पधारे गुरु भक्त प्रमिलाबेन जैन को प्राप्त हुआ।

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