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समर्पित आराधक को नवकार फलश्रुति प्रदान करता है-मुनि रजतचन्द्र विजय जी



 झाबुआ: श्री नमस्कार महामंत्र की आराधना के तीसरे दिन प.पू.गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री ऋषभचंद्रसूरीजी म.सा.सुशिष्य प.पू.मधुरवक्ता मुनिराज श्री रजतचंद्र विजयजी ने गुरुतत्व पर प्रकाश डालते कहा गुरु नौका के समान स्व एवं पर  को तिराते हैं। सब्जी खरिदने की भूल से एक समय की रसोई बिगड़ेगी ।व्यापार करने की भूल से एक वर्ष बिगड़ेगा ।किंतु गुरु करने की भूल में भवो भव बिगड़ जायेगा । सुगुरू सदमार्ग पर बढ़ाते हुए सद्गगति कराते हैं संसार ऊपर से मोहक भीतर से भयानक है। ऊपर से प्यारा व अंदर से खारा ऐसा यह संसार छोड़ने जैसा है । समर्पित आराधक को नवकार फलश्रुति प्रदान करता है। संसार में कल से आज ज्यादा प्रगति पर है ,धर्म में कल से आज पिछड़े हुए हैं। मंदिर में मौन पूर्वक आराधना करने से विधि सफल बनती है। आराधक को आराधना का भाव रखकर जीवन उन्नतिपथ पर बढ़ाना चाहिये। स्वाद की लोलुपता ना छूटे तो तप विफल हो जाता है ।एक नवकारसी का तप करने से 100 वर्ष के नर्क का आयुष्य टूट जाता है। दादा गुरुदेव राजेंद्र सुरीजी म.सा.नवकार के परम आराधक थे। पर से परम की और आगे बढ़े। स्वार्थी नहीं परमार्थी बने तो मानव जीवन सफल बन सकता है। नवकार की शक्ति पर असीम चमत्कृत जिनदास सेठ का उदाहरण मुनिश्री ने रोचक शैली में सुनाया जिसे सुन सभी अभिभूत हो गए। बाहर से पधारे अतिथि सुखराज जी कबदी मुंबई ( बदनावर शंखेश्वर पुरम तीर्थ के अध्यक्ष) एवं बाबूलालजी धुमडिया ट्रस्टी मोहनखेड़ा का स्वागत समिति ने किया।मुनि जीतचंद्रजी ने गीत सुनाया । वीर गणधर लब्धि तप के बियासने का लाभ ज्ञानचंद जी मेहता एवं संजय जी कांठी की ओर से लिया गया इनका बहुमान गुरु समर्पण चातुर्मास समिति ने किया। गौतम स्वामीजी की आरती का लाभ सुभाष जी कोठारी ने लिया। नवकार की सुंदर आराधना के अंतर्गत नव युवक परिषद के महानुभाव ने दीप प्रज्वलित किया अशोक जी कटारिया का बहुमान हुआ। संचालन प्रदीप संघवी ने किया। पालीताणा में साध्वी जी श्री पुनीत प्रज्ञा श्रीजी के देवलोक गमन होने के अवसर पर चातुर्मास मे विराजित मुनि द्वय की निश्रा में चातुर्मास समिति की ओर से मौन पूर्वक 12 नवकार जपकर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया।


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