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श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ अट्ठम तप आराधना का पारणा हुआ,जो अच्छे विचारों के साथ जीता है उसका जीवन सफल : मुनि पीयूषचन्द्रविजय

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  राजगढ़ (धार) । त्रिदिवसीय श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ अट्ठम तप की आराधना राजगढ़ श्रीसंघ में सानन्द सम्पन्न हुई । परमात्मा तत्व में मन लगना दुष्कर कार्य है मन चंचल प्रवृति का है, वह हमेशा भटकता है और उसका यह स्वभाव है । धर्म ध्यान के माध्यम से इसे हम सद् प्रवृति में लाने का प्रयास करते है । अषाढ़ी श्रावक प्रभु श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिमा का निर्माण पूर्ण विवेक और विनय के साथ में करवाता है । जिस प्रकार दूध में शक्कर घुल जाती है उसी प्रकार अषाढ़ी श्रावक भी प्रतिमा निर्माण के पश्चात् प्रभु की पूजा अर्चना एवं भक्ति में घुल गया था । अंतेमति सो गति । व्यक्ति के अंतिम समय में यदि सोच अच्छी रहती है, वह जीव मोक्ष गति को प्राप्त कर लेता है । शास्त्रों में श्री आदिनाथ प्रभु की आयु 84 लाख पूर्व बतायी है । अंतिम तीर्थंकर प्रभु श्री महावीरस्वामी ने नन्दन मुनि के भव में 11 लाख से भी ज्यादा मासक्षमण तप किये थे । उक्त बात श्री राजेन्द्र भवन राजगढ़ में गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने कही । आपने कहा कि भगवान की वाणी के प्रभाव से चोर के जीवन में भी परिवर्तन आ जाता है । जैसे रोहिणीयां चोर के जीवन में प्रभु वाणी के चार शब्दों से बदलाव आया था । यदि हमारा शरीर स्वस्थ नहीं है तो हम धर्म नहीं कर सकते है । समय का कोई भरोसा नहीं है इस लिये समय के रहते हर जीव को अपनी आत्मा के कल्याण के लिये धर्म क्रिया करते रहना चाहिये । देवलोक में देव व्रत, पच्चखाण, नियम ग्रहण करके तप नहीं कर सकते है पर प्रभु की भक्ति कर सकते है । गले की पुष्पों की माला जब मुरझाने लगती है तब देव अपने मृत्यु का समय 6 माह पूर्व ही जान लेते है अतः देवलोक में देव भी अमर नहीं होते है । प्रभु के दर्शन से अनन्तगुणा लाभ प्राप्त होता है । जयणापूर्वक किये गये कार्यो से कर्मबंध नहीं होते है । शुद्ध सामायिक का सुख पुनीया श्रावक के जीवन में था वह सुख श्रेणिक महाराजा के जीवन में भी नहीं था । जो जीव अच्छे विचारों के साथ जीता है उसका जीवन सफल हो जाता है ।

श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की उपासना के अन्तिम दिन सभी आराधकों ने मुनिश्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. की मांगलिक का श्रवण कर पारणा किया । सभी आराधक का बहुमान राजगढ़ श्रीसंघ की ओर से श्री पुखराजजी मांगीलालजी मेहता एवं श्री मथुरालालजी प्यारचंदजी मोदी परिवार द्वारा किया गया ।

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