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जगत को आलौकित करें उसे आदित्य कहते हैं ,जीवन को आलौकित करें उसे साहित्य कहते हैं: मुनिश्री रजतचंद्र विजयजी



 झाबुआ। श्री ऋषभदेव बावन जीनालय मे चातुर्मास हेतु विराजित प.पू. गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद्बिजय ऋषभचंद्र सूरीश्व़रजी म.सा.के आज्ञानुवर्ती शिष्य प.पू. मुनिराज *श्रीरजतचंद्र विजयजी* म.सा.ने धारा प्रवाह प्रवचन देते हुए कहा मानव जीवन अति दुर्लभ है जैसे विविध प्रकार के अनाज के रखे ढेर में थोड़े सरसों के दाने मिलाने के बाद बुढ़ी औरत उसमें सरसों के दाने बिनने बैठी किन्तु अलग न कर सकी, वैसे ही मानव जीवन दुर्लभ है पुनः नहीं मिलने वाला है। मुनिश्री ने कहा जगत को आलौकित करें उसे आदित्य कहते हैं जीवन को आलौकित करें उसे साहित्य कहते हैं। सोमप्रभ सूरिजी ने सिन्दुर प्रकर जैसे अनुपम काव्य छंद से जुड़े ग्रंथ की अनुपम सोगात हमें दी है। यह एक जीवन भी कम पड़ जायेगा सम्पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति के लिए। मुनिश्री ने कृष्ण जन्माष्टमी पर कहा कृष्ण का उपदेश एवं राम का जीवन अनुकरणीय है। अपना व्यक्तित्व कृष्ण जैसा गुणग्राही बनाये जिनको मरे हुए कुत्ते के दांत भी चमकते नजर आये थे। मुनिश्री ने कृष्ण के जीवन पर प्रकाश डाला । मुनि श्री ने बताया 31 अगस्त मंगलवार को दोपहर मे 12 बजे प.पू. गच्छाधिपति परोपकार सम्राट आचार्य देव श्रीमद्विजय ऋषभचंद्र सुरीश्वरजी महाराजा के स्मृति में दीपक एकासना का आयोजन होगा। जिसका लाभ विणाबेन विमल जी कटारिया परिवार को प्राप्त हुआ । जब तक दीपक प्रकट रहेगा ( अंदाजित 15 मी. ) तब तक आहार ग्रहण करना है एवं पांच द्रव्य से यह आराधना करनी है। इसमें तीनों समय देववंदन प्रवचन व प्रतिक्रमण होंगे। ऊं ह्लीं श्री महावीर स्वामीने नमः की 20 माला तथा 12 - 12 स्वस्तिक, खमासमणा ,काउसग्ग करना होंगे । अरिहंत पद की तरह सभी करे । मासक्षमण की तपस्या कु. श्रुति महेश शाह को साता पूर्वक चल रही है,उनके आज 19 उपवास हुए हैं। आगामी पर्युषण महापर्व में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आराधक अट्ठाई आदि तप करने की तैयारी कर रहे हैं।

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