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श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में सूरि मंत्र आराधना के बाद महामांगलिक का हुआ भव्य आयोजन,शब्दों में माया होती है, पर आंखों में समर्पण होता है: आचार्य ऋषभचन्द्रसूरि

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     राजगढ़ (धार) म.प्र. । भगवान महावीर के शासन में मुक्ति का मार्ग लिखा हुआ है । जीवन में राग और द्वेष बन्धन है इन बंधनों से व्यक्ति को मुक्ति होना चाहिये क्योंकि यह बंधक इंसान की प्रगति में बाधक होते है । मौन रहकर व्यक्ति संसार के कई विवादों से मुक्त हो जाता है मौन साधना में व्यक्ति मान सम्मान अपमान सभी से बच सकता है । मौन का अपने आप में बड़ा महत्व है । उक्त प्रेरणादायी बात दादा गुरुदेव की पाट परम्परा के अष्ठम पट्टधर वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने पंच प्रस्थान सूरि मंत्र आराधना की चतुर्थ एवं पंचम पीठ की आराधना के अनुभव बताते हुये कही और कहां कि शब्दों में माया होती है, पर आंखों में समर्पण होता है । आंखों से प्रेम और विद्ववेश दोनों ही प्रदर्शित हो सकता है । शब्दों की यात्रा मन से प्रारम्भ होती है और इसी के माध्यम से हम प्रभु की साधना आराधना करके हम उस गन्तव्य की और पहुंच जाते है । शब्दों की यात्रा मन ही मन चलती है । इस लिये ईश्वर को मन की आंखों से प्रार्थना करना चाहिये । जीवन क्षण भंगुर है । दुनिया से कौन कब विदा हो जायेगा । कोई नहीं जानता है इस लिये व्यक्ति को सतर्क रहने की जरुरत है । व्यक्ति मुठ्ठी बाद कर दुनिया में आता है और हाथ खोलकर चला जाता है । इस लिये दान की भावना जीवन में जरुर रखना चाहिये जो दान करना है उसकी अनुमोदना में भी पीछे नहीं रहना चाहिये । गुरु ही परमात्मा तक पहुंचाने का उचित माध्यम है । परमात्मा को आज दिन तक किसी ने नहीं देखा है पर गुरु ही एक ऐसा सक्षम माध्यम है जो आत्मा का कल्याण करवा सकता है । दुनिया हमेशा दर्द देकर ही रुलाती है । नवजात शीशु ना रोऐ तो उसे चिमटी भरकर रुलाया जाता है । दुनिया में दूसरों की बुराई सुनने का मजा लोगों को बहुत आता है । निन्दा रस का स्वाद हर कोई लेना चाहता है । दूर्गंध फैलाना मानव की फितरत में है पर व्यक्ति को सुगंध फेलाना चाहिये । बिना योग्यता के व्यक्ति भक्ति भी नहीं कर पाता है ।






श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा तीर्थ के तत्वाधान में व दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पाट परम्परा के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में एवं कार्यदक्ष मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री रजतचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री रुपेन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जीतचन्द्रविजयजी म.सा. व साध्वी श्री किरणप्रभाश्री जी म.सा., साध्वी श्री सद्गुणाश्रीजी म.सा. के सानिध्य में आचार्यश्री की 25 दिवसीय मौन साधना के समापन पर महामांगलिक का भव्य आयोजन हुआ । जिसमें श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ के महामंत्री श्री फतेहलाल कोठारी, मेनेजिंग ट्रस्टी सुजानमल सेठ, कोषाध्यक्ष हुक्मीचंद वागरेचा, ट्रस्टी जयंतीलाल बाफना, बाबुलाल खिमेसरा, मेघराज जैन, संजय सराफ, मांगीलाल रामाणी, सांकलचंद तांतेड़ व तीर्थ की मंत्रणासमिति के सदस्य सेवतीलाल मोदी, भेरुलाल गादिया, संतोष चत्तर, प्रकाश सेजलमणी, रिंपल भाई, भरत भाई, सुनिल कोठारी, मनोहर मोदी, संजय कोठारी, राजेन्द्र खजांची एवं पी.सी. जैन, निरज जैन, संजय कांठी, संतोष नाकोड़ा, सुरेन्द्र कांकरीया, दीपक बाफना, मनोज सुराणा, भंवरलाल जैन, अशोक भटेवरा, माणक नादेचा, तीर्थ सहप्रबंधक प्रीतेश जैन सहित बड़ी संख्या में समाजजन महामांगलिक में उपस्थित रहे ।

कार्यक्रम में आचार्यश्री के सम्मुख प्रथम गहुंली भाटपचलाना निवासी श्री दीपककुमार ज्ञानमलजी रुणवाल परिवार ने की । आचार्यश्री से प्रथम नमस्कार महामंत्र का श्रवण पूर्व राज्यसभा सांसद श्री मेघराज चम्पालालजी जैन ने किया । आचार्यश्री की गुरु चरण पूजा झाबुआ निवासी श्री संजयकुमार नगीनलालजी कांठी परिवार ने की व आचार्यश्री को चातुर्मास एवं सूरि मंत्र आराधना की पूर्णाहुति पर कामली भीनमाल निवासी श्री संजयकुमार मनोहरलालजी वाणीगोता परिवार द्वारा ओढ़ाई गयी । इसके पश्चात् मुनिभगवन्तों एवं साध्वीवृंदों व श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट की ओर से समस्त ट्रस्टीगणों ने आचार्यश्री को कामली ओढ़ाई । सूरि मंत्र पट की आरती मोदरा बैंगलोर निवासी श्री कांतीलालजी मान्यवर परिवार ने उतारी । तीर्थ के कोषाध्यक्ष श्री हुक्मीचंद वागरेचा ने घोषणा करते हुये कहा कि रानीबैन्नूर कर्नाटक में श्री रवीन्द्रसूरि साधना कुटीर का निर्माण हमारे श्री लालचंदजी वागरेचा परिवार की ओर से करवाया जावेगा । स्वामीवात्सल्य का लाभ आहोर (राज.) श्रीमती फेंसीदेवी चम्पालालजी कंकुचैपड़ा परिवार मुम्बई ने लिया ।

कार्यक्रम में मुम्बई, बैंगलोर, बांसवाड़ा, इन्दौर, खाचरोद, नागदा, सूरत, अहमदाबाद, शिमोगा, रानीबैन्नूर, झाबुआ, ठाणे, भाटपचलाना, उज्जैन, पूना, रतलाम, जावरा, भीवण्डी, कल्याण, भायन्दर, आहोर, सुमेरपूर, राजगढ़ श्रीसंघ सहित कही शहरों के श्रावक-श्राविकाओं ने बड़ी संख्या में महामांगलिक का श्रवण किया ।


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