कार्यक्रम के दौरान डॉ. बसु ने अपनी पुस्तक से चयनित अंशों का पाठ किया और कारगिल युद्ध के दौरान एक सैन्य सर्जन के रूप में अपने अनुभव साझा किए। उनकी प्रस्तुति ने युद्ध के मानवीय पक्ष, सैनिकों की भावनात्मक दृढ़ता तथा युद्धक्षेत्र में आने वाली नैतिक और चिकित्सकीय चुनौतियों को अत्यंत सजीव रूप में प्रस्तुत किया। उनके शब्दों में साहस, करुणा और कर्तव्यबोध की गहरी झलक देखने को मिली। पुस्तक पाठ के पश्चात एक सारगर्भित परिचर्चा आयोजित की गई, जिसमें डॉ. अरूप रतन बसु के साथ संवाद किया गया। इस चर्चा का संचालन ह्यूमन्स ऑफ़ जमशेदपुर से अमरनाथ योगी तथा पोएट्स ऑफ़ जमशेदपुर से मोंद्रिता चटर्जी ने किया। परिचर्चा में युद्ध, कर्तव्य, मानवता और युवाओं के लिए ऐसे अनुभवों की प्रासंगिकता जैसे विषयों पर गहन विचार-विमर्श हुआ, जिसमें श्रोताओं ने भी उत्साहपूर्वक भाग लिया।
यह आयोजन साहस, सेवा और कथात्मक स्मृतियों को समर्पित एक सशक्त श्रद्धांजलि के रूप में सामने आया, जिसने यह सिद्ध किया कि साहित्य व्यक्तिगत अनुभवों को सामूहिक इतिहास से जोड़ने का एक प्रभावशाली माध्यम है। कार्यक्रम में विद्यार्थियों, पाठकों, रक्षा विषयों में रुचि रखने वालों तथा शहर के जागरूक नागरिकों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। कार्यक्रम का समापन श्रोताओं के साथ संवाद और पुस्तक हस्ताक्षर सत्र के साथ हुआ। ह्यूमन्स ऑफ़ जमशेदपुर और पोएट्स ऑफ़ जमशेदपुर ने कर्नल डॉ. अरूप रतन बसु के प्रति उनके अमूल्य अनुभव साझा करने हेतु तथा उपस्थित सभी श्रोताओं के प्रति इस संध्या को सार्थक और स्मरणीय बनाने के लिए आभार व्यक्त किया।



