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खाली स्टेडियम में गूंजती जीत, जब देश के लिए सोना जीतने वाली बेटी ज्योति याराजी अकेली रह गई

क्रिकेट और फुटबॉल के शोर के बीच एथलेटिक्स की उस चैंपियन की कहानी, जिसने तिरंगे के लिए दौड़कर इतिहास रचा, लेकिन पदक लेते वक्त उसकी आंखों में तालियों की जगह आंसू थे। 

भीड़ से भरे स्टेडियम, तालियों की गूंज और कैमरों की चकाचौंध, यही दृश्य अक्सर हम खेल की जीत से जोड़ते हैं। लेकिन कभी-कभी इतिहास ऐसे भी क्षण रचता है, जहाँ जीत तो होती है, पर उसे देखने वाला कोई नहीं होता। एक खाली सा मैदान, कुछ गिने-चुने चेहरे और मंच पर खड़ी एक खिलाड़ी-जिसकी आँखों में गर्व से ज़्यादा अकेलापन छलक रहा होता है।

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में भारतीय एथलीट ज्योति याराजी पदक लेते हुए दिखाई देती हैं। न कोई शोर, न जयकार, न तिरंगा लहराती भीड़। वह अकेली खड़ी हैं अपने देश के लिए स्वर्ण जीतने के बाद भी। उसी पल उनकी आँखें नम हो जाती हैं। शायद खुशी से, शायद इस सवाल से कि जिस देश के लिए उन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगाया, वहाँ उस पल उनके साथ खड़े होने वाला कोई क्यों नहीं था।

जहाँ क्रिकेट और फुटबॉल के लिए हजारों लोग सड़कों पर उतर आते हैं, वहीं एथलेटिक्स जैसी कठिन और संघर्षपूर्ण विधा में देश को गौरव दिलाने वाली यह बेटी खामोशी में अपना पदक थामे खड़ी रही। यह सिर्फ एक पदक समारोह नहीं था, यह हमारे खेल-संस्कृति और प्राथमिकताओं पर एक मौन प्रश्न था।

यह दृश्य सिर्फ एक वीडियो नहीं, बल्कि हमारे खेल-संस्कारों पर एक मौन सवाल है। क्या देश के लिए जान लगाकर दौड़ने वाले खिलाड़ियों का सम्मान भी उतना ही जरूरी नहीं? ज्योति याराजी उन एथलीट्स में से हैं जो बिना शोर, बिना दिखावे, लगातार मेहनत करते हुए तिरंगे का मान बढ़ा रही हैं। उनका संघर्ष चमकदार मंचों से दूर, साधारण हालातों में पनपा है, जहां हर कदम के साथ आर्थिक तंगी, संसाधनों की कमी और सामाजिक उपेक्षा खड़ी रही।

आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में जन्मी ज्योति याराजी एक साधारण परिवार से आती हैं। पिता निजी सुरक्षा गार्ड हैं और मां घरेलू सहायिका। सीमित संसाधनों के बावजूद ज्योति ने बचपन से ही खेल को अपना सपना बनाया। शुरुआती दिनों में लॉन्ग जंप से शुरुआत करने वाली ज्योति ने बाद में 100 मीटर बाधा दौड़ को चुना और यहीं से उनके जीवन की दिशा बदल गई। कठिन प्रशिक्षण, अनुशासन और असफलताओं से जूझते हुए उन्होंने खुद को निखारा।

साल 2023 और 2025 की एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर ज्योति ने साबित किया कि वे सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि भारत की उम्मीद हैं। बारिश, खाली स्टेडियम और दबाव-कुछ भी उनकी रफ्तार को रोक नहीं सका। एशिया की “हर्डल क्वीन” कहलाने वाली ज्योति का सफर आज भी जारी है।

ज्योति याराजी की कहानी उन तमाम खिलाड़ियों की आवाज़ है, जिन्हें देश के लिए सब कुछ देने के बाद भी वह सम्मान नहीं मिलता, जिसके वे हकदार हैं। उनकी आंखों में झलकते आंसू हमें यह याद दिलाते हैं कि असली नायक अक्सर खामोशी में इतिहास रचते हैं। यह कहानी सिर्फ खेल की नहीं, बल्कि उस संवेदनशीलता की मांग है, जो हर उस खिलाड़ी को मिलनी चाहिए जो तिरंगे के लिए अकेले भी खड़ा होने का साहस रखता है।

 

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