- हेमन्त देवलेकर के नए कविता-संग्रह ‘प्रूफ रीडर’ का हुआ लोकार्पण
- हबीब तनवीर को किया याद, नगीन तनवीर ने रंग-संगीत से बाँधा समाँ
- ‘भोपाल की उर्दू’ विषय पर हुई चर्चा, वक्ताओं ने कहा भाषा को लोग बनाते हैं, सरकार नहीं
- विहान ड्रामा वर्क्स टीम ने सुनाई संगीतबद्ध कविताएँ
भोपाल। राजकमल प्रकाशन द्वारा हिन्दी भवन में आयोजित किताब उत्सव के पहले दिन बड़ी संख्या में पुस्तक-प्रेमियों की उपस्थिति रही। उत्सव का उद्घाटन सुबह 11 बजे हुआ, जिसके बाद दोपहर से शाम तक छह सत्रों में कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें विविध विषयों और पुस्तकों पर चर्चाएँ हुईं।
उद्घाटन सत्र में साहित्य और कला जगत की कई प्रतिष्ठित हस्तियाँ मौजूद रहीं, जिनमें गोविन्द मिश्र, विजय बहादुर सिंह, महेश कटारे, अब्दुल बिस्मिल्लाह, शिवमूर्ति, राजेश जोशी, रेखा कास्तवार, कुमार अम्बुज, मनोज रूपड़ा, सविता भार्गव तथा भोपाल क्षेत्र के अनेक पुस्तक-मित्र शामिल थे।
किताब अपने आप में एक आंदोलन है: महेश कटारे
सत्र को संबोधित करते हुए अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा, आज के समय में साहित्य को पढ़ना ज्यादा ज़रूरी हो गया है। उन्होंने कहा, विज्ञान जहाँ मस्तिष्क का विकास करता है, वहीं साहित्य हृदय को संवेदनशील बनाता है और भावनाओं को दिशा देता है। विजय बहादुर सिंह ने कहा, किताब अपने आप में एक आंदोलन है और वही हमें रोशनी की राह दिखाती हैं। महेश कटारे ने कहा, किताबें ही वर्णाक्षर का मूल स्वरूप हैं। विज्ञान परिणाम देता है, लेकिन साहित्य हमें उचित और अनुचित में भेद करने की समझ प्रदान करता है।
अब्दुल बिस्मिल्लाह की ‘स्मृतियों की बस्ती’
कार्यक्रम के पहले सत्र में अब्दुल बिस्मिल्लाह की कृति ‘स्मृतियों की बस्ती’ पर उनसे वंदना राग ने बातचीत की। त्रिलोचन द्वारा अब्दुल बिस्मिल्लाह को कवि कहे जाने के अनुभव के बारे में प्रश्न करने पर उन्होंने कहा कि ‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया’ लिखने के बाद मेरे भीतर का कवि जैसे गायब हो गया। लम्बे समय तक मेरी पहचान कवि के रूप में ही रही। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वे जयशंकर प्रसाद की ‘आँसू’ रचना से गहरे प्रभावित रहे हैं और कभी उसी छंद में कविताएँ लिखने का प्रयास भी किया था।
आगे की चर्चा में वंदना राग ने उनके बाल्यकाल के मंडला क्षेत्र से जुड़े अनुभवों पर प्रश्न किए। इस प्रसंग में अब्दुल बिस्मिल्लाह ने वहाँ की आदिवासी परम्पराओं से सीखने, चर्च जाने और रामचरितमानस पढ़ने पर डाँट खाने जैसी स्मृतियों को साझा किया।
स्मरण किया हबीब तनवीर का कृतित्व
अगले सत्र में हबीब तनवीर के नाटकों पर चर्चा हुई। इस अवसर पर नगीन तनवीर ने रंग-संगीत की प्रस्तुति दी, जिसे श्रोता मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे। सत्र में वक्ता के रूप में उदयन वाजपेयी उपस्थित थे, वहीं संचालन डॉ. विशाखा राजरकर ने किया।
इस दौरान उदयन वाजपेयी ने कहा कि हबीब तनवीर पारसी पैशन थिएटर की परंपरा से निकले हुए थे। वहीं नगीन तनवीर ने साझा किया कि ‘हिरमा की अमर कहानी’ जैसे नाटकों के लिए मेरे पिता ने अनेक मोटी-मोटी किताबें पढ़ीं। उनके हर नाटक के पीछे गहन शोध छिपा होता था।
आगे उदयन वाजपेयी ने हबीब तनवीर से हुई अपनी बहसों को याद करते हुए कहा कि उनसे बहस करने में हमेशा आनंद आता था। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि हबीब तनवीर के नाटकों में आदिवासी पात्र केवल अभिनय भर नहीं थे, बल्कि वे अपनी बहुमुखी प्रतिभा और जीवन-परक दृष्टि के कारण विशेषज्ञता के जाल में फँसे समाज को नई दिशा देने वाले प्रतीक थे।
आख्यान और उपन्यास पर विमर्श
इसके बाद आख्यान और उपन्यास के स्वरूप पर चर्चा हुई। इस दौरान अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि आख्यान और उपन्यास दोनों शब्द व्याख्या से आते हैं, लेकिन उनकी परिभाषा अलग है। आख्यान की व्याख्या आलोचक ही कर सकता है, जबकि उपन्यास की व्याख्या कोई भी कर सकता है। महाभारत को उन्होंने आख्यान और रामायण को महाकाव्य बताया। उनके अनुसार अंग्रेज़ी में जिसे मिथोलॉजिकल कहा जाता है, वही हिंदी में पुराणिक आख्यान है। उन्होंने यह भी कहा कि उपन्यास का मूल यूरोपीय नोवेल नहीं बल्कि रोमान है।
वहीं महेश कटारे ने कहा कि यद्यपि उपन्यास का उदय पश्चिम में माना जाता है, भारत में भी इसका लेखन बहुत पहले से होता आया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जहां कथा कल्पित होकर गायी-सुनाई जाती है, वह गाथा या आख्यान कहलाती है, जैसे आल्हा। वहीं, जो आख्यान परख से परे हो, वह विशुद्ध रूप से उपन्यास है।
भाषा को लोग बनाते हैं, सरकार नहीं
चौथे सत्र में ‘भोपाल की उर्दू’ विषय पर चर्चा हुई। इस सत्र में वक्ता के रूप में राजेश जोशी और इक़बाल मसूद उपस्थित थे, जबकि संचालन बद्र वास्ती ने किया। इक़बाल मसूद ने भाषा की प्रकृति पर बोलते हुए कहा कि ज़बान लोग बनाते हैं। सरकार न तो इसे बना सकती है और न ही मिटा सकती है। ज़बान हमेशा आवाम की मोहताज होती है। उन्होंने आगे कहा कि भोपाल की बोली अनेक भाषाओं और बोलियों के मेल से बनी है, क्योंकि यहाँ अलग-अलग जगहों से आकर लोग बसे हैं। राजेश जोशी ने हिंदी और उर्दू के आपसी रिश्तों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिंदी-उर्दू संबंधों की शुरुआत उस समय हुई, जब भारतेंदु हरिश्चंद्र ने शाहजहाँ बेगम की शायरी को प्रकाशित किया।
भारतीय समाज का उजला अंधेरा पर चर्चा
अगले सत्र में कैलाश वानखेड़े के उपन्यास उजला अंधेरा के संदर्भ में बातचीत हुई। यह उपन्यास आधुनिक भारत की दलित बस्तियों की कहानियों को सामने लाता है।
लेखक कैलाश वानखेड़े ने बताया कि उपन्यास में दादी मुख्य किरदार हैं और तीन पीढ़ियों के एक साथ आने पर किसी एक को चुप रहना ही पड़ता है। उन्होंने कहा कि तकनीक के बावजूद मनुष्य अकेलापन महसूस करता है और ऐसे में गीत, संगीत और नाटक जीवन में संवाद और सहारा प्रदान करते हैं।
चर्चा में भाषा और शब्दकोश के इतिहास पर भी विचार हुआ। वानखेड़े ने कहा कि हिंदी के अस्तित्व और उसके संकट पर बहस जारी है। उनका विश्वास है कि समाज की पीड़ा और असमानता समय के साथ बदलेगी, और सामाजिक परिवर्तन धीरे-धीरे ही सही, निश्चित रूप से आएगा।
विहान ड्रामा वर्क्स टीम ने सुनाई संगीतबद्ध कविताएँ
अंतिम सत्र में विहान ड्रामा वर्क्स की टीम ने निराला, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी, मुक्तिबोध, श्रीकांत वर्मा, केदारनाथ सिंह की कविताओं की संगीतमय प्रस्तुति दी। इसी दौरान कवि-रंगकर्मी हेमन्त देवलेकर के नए कविता संग्रह ‘प्रूफ रीडर’ का लोकार्पण विजयबहादुर सिंह ने किया।
दूसरे दिन होंगे ये कार्यक्रम
किताब उत्सव के दूसरे दिन, रविवार दोपहर 2 बजे ‘मकबूल फ़िदा हुसेन : जीवनी और विचार’ पुस्तक का लोकार्पण होगा, जिसमें अखिलेश, उदयन वाजपेयी और नीलेश रघुवंशी वक्ता होंगे। इसके बाद ज्ञान चतुर्वेदी के नए व्यंग्य-संग्रह ‘रोशनी की शिनाख़्त’ का लोकार्पण होगा। जिसमें कुमार अम्बुज, मलय जैन और विजी श्रीवास्तव सहभागिता करेंगे। तीसरे सत्र में ‘नया साहित्य, नई सम्भावनाएँ’ विषय पर राधावल्लभ त्रिपाठी, विजय बहादुर सिंह और कुमार अम्बुज बातचीत करेंगे और इसी दौरान पुस्तक का लोकार्पण भी किया जाएगा। चौथा सत्र ‘हिन्दी लेखन का स्त्री-समय’ विषय पर केंद्रित होगा, जिसमें रेखा कास्तवार, वन्दना राग और नीलेश रघुवंशी से मनोज कुमार पांडेय चर्चा करेंगे।
इसके बाद शाम 5 बजे ‘धर्म और लोकतंत्र’ पर रतनलाल और मनोज कुलकर्णी का संवाद होगा, जिसका संदर्भ ‘धर्मान्तरण : आम्बेडकर की धम्मयात्रा’ रहेगा। छठे सत्र में ‘सच दिखाने का सलीक़ा : फ़ोटो पत्रकारिता’ विषय पर चर्चा होगी, जिसमें पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर, प्रो. संजय द्विवेदी, डॉ. पवित्र श्रीवास्तव और डॉ. धनंजय चोपड़ा अपने विचार साझा करेंगे। दिन का समापन ‘प्रतिनिधि कहानियाँ : कुछ और जिल्द’ के लोकार्पण से होगा, जिसमें मंज़ूर एहतेशाम, मधु कांकरिया, अलका सरावगी, वन्दना राग और सदफ हुसैन सहित कई साहित्यकार मौजूद रहेंगे।



