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राजकमल प्रकाशन द्वारा आयोजित ‘किताब उत्सव’ का दूसरा दिन
राजकमल प्रकाशन द्वारा आयोजित ‘किताब उत्सव’ का दूसरा दिन


- ‘मकबूल फ़िदा हुसेन : जीवनी और विचार’ पुस्तक का हुआ लोकार्पण
- ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ शृंखला में जुड़ीं तीन नई पुस्तकें
- हर युग का साहित्य अपने समय की चुनौतियों से उपजता है : ज्ञान चतुर्वेदी
भोपाल। हिन्दी भवन में जारी पाँच दिवसीय किताब उत्सव के दूसरे दिन आयोजक राजकमल प्रकाशन ने इस वर्ष को ‘हिन्दी उपन्यास का स्त्री-वर्ष’ घोषित किया। इस वर्ष राजकमल 8 महत्वपूर्ण स्त्री कथाकारों के उपन्यास प्रकाशित करेगा।
राजकमल प्रकाशन की ओर से कहा गया कि 21वीं सदी स्त्रियों की सदी है। वे बोल रही हैं, लिख रही हैं और दुनिया के नक्शे पर अपनी वाजिब जगह बना रही हैं। उनकी कहानियाँ अब केवल दुख और तन्हाई तक सीमित नहीं, बल्कि बेज़ुबानों की आवाज़ और अपने सुख-दुख की निर्भीक अभिव्यक्ति भी बन रही हैं।
सदी का एक चौथाई बीतने पर राजकमल प्रकाशन समूह इस वर्ष को ‘स्त्री वर्ष’ के रूप में मना रहा है। राजकमल इस निरंतर बनती हुई सदी को ‘स्त्री-सदी’ कहते हुए गौरवान्वित है, क्योंकि आने वाली सदियों की धड़कनें भी इसमें गूँज रही हैं।
स्त्री-वर्ष में प्रकाशित होंगे ये उपन्यास
1. गीतांजलि श्री : सह-सा
2. जया जादवानी : इस शहर में इक शहर था
3. सोवा लिम्बू : शुकमाया हाङमा
4. वन्दना राग : सरकफन्दा
5. प्रत्यक्षा : शीशाघर
6. अलका सरावगी : कलकत्ता कॉस्मोपॉलिटन : दिल और दरार
7. अनामिका : दूर देश के परिंदे
8. सुजाता : साबूत घर
सत्र में रेखा कास्तवार, नीलेश रघुवंशी और वन्दना राग से मनोज कुमार पांडेय ने स्त्री-लेखन के अनुभवों और बदलते साहित्यिक परिदृश्य पर बातचीत की। वहीं सत्र का संचालन तस्नीफ़ हैदर ने किया।
इससे पहले, दोपहर 2 बजे से आयोजित कार्यक्रम के छह सत्रों में ‘मकबूल फ़िदा हुसेन : जीवनी और विचार’, ‘रोशनी की शिनाख़्त’ और ‘नया साहित्य, नई संभावनाएं’ और ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ शृंखला की तीन नई पुस्तकों का लोकार्पण हुआ और ‘धर्मान्तरण : आंबेडकर की धम्म यात्रा’, ‘फ़ोटो पत्रकारिता’ पुस्तकों पर चर्चा हुई।
‘मकबूल फ़िदा हुसेन : जीवनी और विचार’ का लोकार्पण
किताब उत्सव के दूसरे दिन कार्यक्रम के पहले सत्र में मशहूर चित्रकार अखिलेश की किताब ‘मकबूल फ़िदा हुसेन : जीवनी और विचार’ का लोकार्पण हुआ। इस दौरान लेखक के साथ उदयन वाजपेयी और नीलेश रघुवंशी मंच पर मौजूद रहे।
उदयन वाजपेयी ने साहित्य और कला के संबंध पर बात करते हुए कहा कि भारत में कला केवल नकल तक सीमित नहीं रही है, बल्कि यह अपनी मौलिकता और अनंत संभावनाओं के साथ विकसित होती रही है। नीलेश रघुवंशी ने कहा कि जीवनियाँ केवल घटनाओं का ब्यौरा नहीं होतीं, बल्कि वे हमें पुराने समय से परिचित कराते हुए व्यक्ति के विचार और उसके व्यक्तित्व की जड़ों तक ले जाती हैं। इस जीवनी में कलाकार के जीवन के साथ-साथ उनके विचार भी समान रूप से दर्ज किए गए हैं।
अखिलेश ने मकबूल फ़िदा हुसेन के जीवन और जन्म से जुड़े कई रोचक प्रसंग साझा किए। उन्होंने कहा कि इस किताब में एक कलाकार के निजी जीवन और उनकी कलात्मक दृष्टि को गहराई से समझने का प्रयास किया गया है।
ज्ञान चतुर्वेदी के नए व्यंग्य-संग्रह का लोकार्पण
दूसरे सत्र में ज्ञान चतुर्वेदी के नए व्यंग्य-संग्रह ‘रोशनी की शिनाख्त’ का लोकार्पण हुआ। इस दौरान विजी श्रीवास्तव, मलय जैन और कुमार अम्बुज ने लेखक के साथ किताब पर चर्चा की।
वीजी श्रीवास्तव ने व्यंग्यात्मक लहजे में ज्ञान चतुर्वेदी के व्यक्तित्व और लेखन को रेखांकित किया। मलय जैन ने किताब से समाज, अफसरशाही और आज की युवा पीढ़ी पर तीखे तंज करते हुए व्यंग्यों का पाठ किया।
ज्ञान चतुर्वेदी ने कहा, हर युग का साहित्य अपने समय की चुनौतियों से उपजता है। आज लोकतंत्र के डब्बे में तानाशाही का राज है। उन्होंने कहा कि यह मेरे जीवन की दूसरी किताब है जिसका विमोचन हुआ है। यह मेरी पुरानी रचनाओं का संशोधित रूप है जिसे मैंने आज की पीढ़ी के संदर्भ में नया रूप दिया है। फिलहाल मैं ‘उन दिनों’ नामक उपन्यास और उत्तर प्रदेश के गांवों की कहानियों पर आधारित ‘भभूत’ लिख रहा हूँ।
कुमार अंबुज ने व्यंग्य और रचनात्मकता पर अपने विचार रखते हुए कहा, रोशनी और अंधेरा लगातार बदलते रहते हैं। हर रचना दो आयामों में होती है। व्यंग्य कभी-कभी अतिशयोक्ति तक चला जाता है, लेकिन ज्ञान चतुर्वेदी की रचनाएँ समाज में अच्छाई और आत्मबोध जगाने का कार्य करती हैं।
नया साहित्य,नई संभावनाएँ
अगले सत्र में राधावल्लभ त्रिपाठी की किताब ‘नया साहित्य, नई संभावनाएं’ का लोकार्पण हुआ। इस दौरान विजयबहादुर सिंह ने उनसे प्रश्न किया कि संस्कृत को छोड़कर हिंदी में लिखने का रहस्य क्या है। इसके उत्तर में राधावल्लभ त्रिपाठी ने अपने साहित्यिक सफर को साझा करते हुए बताया कि उनकी प्रारंभिक पृष्ठभूमि विज्ञान की रही है। शुरुआती दौर में उनकी रुचि संस्कृत साहित्य में थी, लेकिन समय के साथ उन्हें यह आभास हुआ कि हिंदी साहित्य में अभिव्यक्ति की अधिक व्यापकता और गहराई है। उनका मानना है कि जो व्यक्ति एक ही भाषा में लिखता है, वह कवि होता है, लेकिन जो कई भाषाओं में लिखता है, वह महाकवि कहलाता है। यह देश बहुभाषी है, इसलिए जितनी अधिक भाषाओं का ज्ञान होगा, अभिव्यक्ति उतनी ही समृद्ध होगी।
धर्म और लोकतंत्र विषय पर हुई चर्चा
इसके बाद ‘धर्मांतरण : आंबेडकर की धम्म यात्रा’ किताब के संदर्भ में लेखक रतनलाल और पत्रकार मनोज कुलकर्णी के बीच संवाद हुआ।
रतनलाल ने कहा कि आज के दौर में विचारों को खुलकर रखना कठिन है। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि आज आंबेडकर जीवित होते तो क्या वे वही सब कह पाते जो उन्होंने लिखा था या जेल में होते।
उन्होंने कहा कि आंबेडकर का संघर्ष केवल धर्म परिवर्तन तक सीमित नहीं था, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन था। रतनलाल के अनुसार आंबेडकर का मानना था कि हिंदू धर्म का ढांचा लोकतांत्रिक नहीं हो सकता। इसलिए उन्होंने धर्मांतरण को चुना और जाति के सवाल को राजनीतिक मुद्दा बनाया। संवाद में आंबेडकरवाद की समकालीन राजनीति और उसके विकृत रूपों पर भी चर्चा हुई।
यह विज़ुअल एक्सप्लोजन का दौर है : धनंजय चोपड़ा
अगला सत्र फोटो पत्रकारिता के बदलते परिदृश्य पर केंद्रित पुस्तक ‘सच दिखाने का सलीका’ पर चर्चा का था। इस अवसर पर विजयदत्त श्रीधर, प्रो. संजय द्विवेदी, प्रो. पवित्र श्रीवास्तव और लेखक धनंजय चोपड़ा मंच पर उपस्थित रहे। वक्ताओं ने कहा कि यह पुस्तक फोटो पत्रकारिता की पूरी यात्रा और उसकी जटिलताओं को सामने लाती है।
विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि तस्वीरों को बोलना चाहिए और यह पुस्तक फोटो पत्रकारिता पर समग्र कृति के रूप में सराही जाएगी तथा आने वाले समय के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ बनेगी।
प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि यह समय चित्रों का है। उन्होंने कहा, आदमी जैसा आधार कार्ड में दिखता है, वैसा फेसबुक पर नहीं होता। हर दिन एक नई तस्वीर सामने आती है और यही तस्वीरें हमारे समय का इतिहास दर्ज कर रही हैं।
पुस्तक के लेखक धनंजय चोपड़ा ने इस दौर को विज़ुअल एक्सप्लोजन करार दिया। उनके अनुसार अब फोटोग्राफ से जन-इतिहास लिखा जा रहा है। तस्वीरें कई बार शब्दों से अधिक प्रभावशाली हो जाती हैं और समाज के लिए एक हथियार का काम करती हैं।
पवित्र श्रीवास्तव ने कहा कि इसमें फोटो पत्रकारिता के तमाम पहलुओं की चर्चा की गई है। स्मार्टफ़ोन के आने के बाद हर कोई फोटोग्राफर बन गया है और भविष्य में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस आधारित टूल्स इस क्षेत्र में बड़े बदलाव लेकर आएंगे।
‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ शृंखला में तीन नई पुस्तकों का लोकार्पण
रविवार को कार्यक्रम के अंतिम सत्र में राजकमल प्रकाशन की पाठक-प्रिय शृंखला ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ की तीन नई पुस्तकों का लोकार्पण हुआ जिसमें मंज़ूर एहतेशाम, मधु कांकरिया और अलका सरावगी की पुस्तकें शामिल हैं। सत्र के दौरान मंज़ूर एहतेशाम की प्रतिनिधि कहानियाँ पुस्तक की सम्पादक वन्दना राग ने एक कहानी का अंशपाठ किया।
तीसरे दिन सोमवार को होंगे ये कार्यक्रम
किताब उत्सव के तीसरे दिन की कार्यक्रम की शुरुआत दोपहर 2 बजे शिवमूर्ति के बहुचर्चित उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ पर चर्चा से होगी। इस सत्र में कैलाश वानखेड़े उपन्यास के सन्दर्भ में लेखक से बातचीत करेंगे। अगले सत्र में निधि अग्रवाल के कहानी-संग्रह ‘प्रेम एक पालतू बिल्ली’ पर हेमंत देवलेकर और सविता भार्गव लेखक से संवाद करेंगे। तीसरा लीलाधर मंडलोई की आत्मकथा ‘जब से आँख खुली हैं’ पर चर्चा का होगा। इस सत्र में लेखक के साथ अब्दुल बिस्मिल्लाह, शिवमूर्ति, राजेश जोशी और रामप्रकाश त्रिपाठी बतौर वक्ता मौजूद रहेंगे। इसके बाद शाम 4 बजे संतोष चौबे की किताब ‘ग़रीबनवाज’ पर अब्दुल बिस्मिल्लाह और ज्ञान चतुर्वेदी लेखक के साथ चर्चा करेंगे।
अगले सत्र में लोकभारती प्रकाशन की नई कथा शृंखला ‘धरोहर कहानियाँ’ की 25 किताबों का पहला सेट लोकार्पित होगा। इसके बाद कुमार अम्बुज की कविताओं के सन्दर्भ में अनिल करमेले उनसे संवाद करेंगे। आख़िरी सत्र ‘शाम-ए-सुखन’ का होगा जिसमें आमिर अजहर, अपर्णा पात्रीकर, गौसिया सबीन, खुशबू श्रीवास्तव और संदीप श्रीवास्तव जैसे शायरों की महफिल जमेगी। वहीं डॉ. नुसरत मेहदी मुशायरे की अध्यक्षता करेंगी।
10 सितम्बर तक चलेगा ‘किताब उत्सव’
राजकमल प्रकाशन 6 से 10 सितम्बर तक हिन्दी भवन में ‘किताब उत्सव’ का आयोजन कर रहा है। पाँच दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में प्रतिदिन प्रातः 11 बजे से सायं 8 बजे तक पुस्तक प्रदर्शनी, लेखक-पाठक संवाद, परिचर्चाएँ, कविता-पाठ और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ आयोजित हो रही है।