- पाँच दिनों में आयोजित हुए 32 सत्र, 100 से अधिक साहित्यकारों व रंगकर्मियों की रही भागीदारी
- भाषा में अगर रफ़्तार है तो रचना पाठक तक पहुँच जाती है : मनोज कुलकर्णी
भोपाल। 6 से 10 सितम्बर तक हिन्दी भवन में राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा आयोजित पाँच दिवसीय किताब उत्सव का बुधवार को समापन हुआ। इस दौरान 5,000 से अधिक पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाने के साथ ही 32 सत्रों में लेखक-पाठक संवाद, परिचर्चाएँ, रचना-पाठ, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और पुस्तक लोकार्पण के कार्यक्रम हुए जिसमें भोपाल शहर और देश-प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आनेवाले 100 से अधिक साहित्यकारों व रंगकर्मियों और हजारों की संख्या में पुस्तकप्रेमियों की भागीदारी रही।
पाठ और चर्चा के साथ कार्यक्रम की शुरुआत
किताब उत्सव के अंतिम दिन कार्यक्रम की शुरुआत ‘पाठसुख’ सत्र के साथ हुई। इस दौरान मनोज कुमार पांडेय ने अपने कहानी-संग्रह ‘प्रतिरूप’, तसनीफ़ हैदर ने अपने उपन्यास ‘नया नगर’ और सुमेर सिंह राठौर ने अपनी किताब ‘बंजारे को चिट्ठियाँ’ से अंशपाठ किया।
दूसरे सत्र में उस्मान ख़ान के कविता-संग्रह ‘इच्छाओं के जीवाश्म’ के सन्दर्भ में मनोज कुमार पांडेय ने उनसे चर्चा की। इस अवसर पर उस्मान ख़ान ने कहा कि मैं अलग-अलग जगह रहा हूं ऐसे में मेरी कविता की भाषा किसी एक जगह की नहीं है। भाषा में कोई शब्द अश्लील नहीं होता है। कविता में सब कुछ कहा जा सकता है, उसमें कुछ की मनाही नहीं है। कई ऐसी इच्छाएं है जो दब गई है, ऐसे में इस किताब में इन्हीं इच्छाओ का संदर्भ है। गांवों में बहुत समय रहता है पढ़ने के लिए। ऐसे में ये एक बार में लिखी जा सकती है। पूरी सभ्यता के केंद्र में कविता है। कहानी कहना आसान है पर एक अच्छी कविता लिखने में वक्त लगता है।
नीलेश रघुवंशी की पुस्तक ‘गद्य का पानी’ का लोकार्पण
तीसरे सत्र में नीलेश रघुवंशी की डायरी विधा में लिखी गई पुस्तक ‘गद्य का पानी’ का लोकार्पण हुआ। इस पुस्तक में नीलेश रघुवंशी के लंबे समय से लिखे गए आलोचनात्मक लेख संजोए गए हैं। लोकार्पण के अवसर पर लीलाधर मंडलोई ने कहा, कोई भी कला इश्क की तरह होती है, जब आना होता है तभी आती है। नीलेश का आत्मस्वीकार जायज़ है। उनकी कविताओं में खोने की पीड़ा तथा पाने की दरकार साफ़ दिखाई देती है।
नीलेश रघुवंशी ने इस अवसर पर कहा, मैंने वर्षों से लिखे गए अपने लेखों को इस पुस्तक में संजोया है। मैं लिखती हूं क्योंकि लिखते-लिखते मुझे वह कुंजी मिल जाती है जिससे बाहर का रास्ता खुलता है। शम्पा शाह ने पुस्तक को रूसी कवि मरीना सोतायेवा को समर्पित किए जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि संवेदना, ठहर पाना और खुद से प्रश्न करना ही लेखनी की खूबसूरती है। वहीं, विजय बहादुर सिंह ने कहा, मुग्धता और आलोचना में फर्क है। पाठक के रूप में अपने इंप्रेशन लिखना हर किसी का हक है। यही रचना को जीवंत बनाता है।
सीमा कपूर की आत्मकथा पर चर्चा
अगले सत्र में सीमा कपूर की आत्मकथा ‘यूँ गुज़री है अब तलक’ पर आरती ने उनके साथ बातचीत की। इस दौरान सीमा कपूर ने कहा कि ज़िन्दगी हमेशा खूबसूरत होती है यह हमारे ऊपर है कि हम उसे सुख के साथ जीते हैं या सुख के साथ। उन्होंने कहा कि स्त्री को कहने और अभिव्यक्त होने में सक्षम होना चाहिए। ज़िंदगी लंबी होती है और इसमें हमेशा कोई न कोई नया मोड़ सामने आता है। मुझे आज भी लगता है कि मैं किसी भी उम्र में नया काम शुरू कर सकती हूँ क्योंकि सबसे ज़रूरी है, खुद को जानना। जो हो चुका है उसे पकड़कर बैठे रहना ठीक नहीं।
सीमा कपूर ने कहा कि कोई भी आत्मकथा, दूसरी आत्मकथा का जवाब नहीं होती। मैंने लिखना तब शुरू किया, जब औरतों की आत्मकथाएँ लिखी ही नहीं जा रही थीं। यह अलग बात है कि उसे छपकर आने में समय लगा।
काव्य-संध्या के साथ हुआ कार्यक्रम का समापन
पाँचवे सत्र में पराग मांदले के कहानी-संग्रह ‘बाकी सब तो माया है’ पर चर्चा हुई। सत्र में लेखक के साथ मनोज कुलकर्णी और हेमन्त देवलेकर बतौर वक्ता मौजूद रहे। बातचीत के दौरान पराग मांदले ने कहा, कई बार हम परिस्थितियों में पीछे हटना नहीं चाहते, लेकिन यह मजबूरी बन जाती है। ऐसे क्षणों में पीछे हटना ही आगे बढ़ने की नई ऊर्जा और उत्साह का रास्ता खोलता है।
मनोज कुलकर्णी ने कहा, विपरीत धारा में कुछ हासिल करना आसान नहीं होता। एक कहानीकार के रूप में आपको लगातार बदलना पड़ता है। स्त्री की संवेदनशीलता से समय के समकाल को पकड़ना बेहद कठिन काम है। भाषा में अगर रफ़्तार है तो रचना पाठक तक पहुँच जाती है। कहानी को हमेशा अंत तक ले जाना ज़रूरी नहीं, उसे खुला छोड़ना भी एक संभावना है। वहीं, हेमंत देवलेकर ने कहा कि पराग की लेखनी और व्यक्तित्व में गांधी का प्रतिबिंब दिखाई देता है।
कार्यक्रम का समापन काव्य-संध्या के साथ हुआ जिसमें कुमार अम्बुज, नीलेश रघुवंशी, अनिल करमेले, पवन करण, सविता भार्गव, आरती, वसन्त सकरगाए, आस्तीक वाजपेयी, श्रुति कुशवाह, अरुणाभ सौरभ, चित्रा सिंह, धीरेन्द्र सिंह फ़ैयाज़ और नेहल शाह ने कविताएँ पढ़ीं।
2022 में हुई थी ‘किताब उत्सव’ की शुरुआत
गौरतलब है कि ‘किताब उत्सव’ शृंखला की शुरुआत राजकमल प्रकाशन के 75वें स्थापना वर्ष में भोपाल से ही हुई थी। 2022 और 2023 के बाद भोपाल में यह तीसरा आयोजन था। इसका उद्देश्य पाठकों और लेखकों के बीच संवाद को प्रोत्साहित करना है। यह एक ऐसा मंच है जहाँ पाठक अपने प्रिय लेखकों के साथ-साथ अपनी पसंदीदा किताबों से भी जुड़ पाते हैं।
श्रृंखला के अंतर्गत पिछले चार वर्षों में भोपाल सहित पटना, मुम्बई, लखनऊ, जयपुर, राँची, चंडीगढ़, जालंधर और वाराणसी जैसे 9 प्रमुख शहरों में 11 सफल आयोजन हो चुके हैं। इस शृंखला के चौथे संस्करण की शुरुआत भी भोपाल से हो रही है। इस वर्ष भी यह सिलसिला अनेक शहरों तक पहुँचेगा।