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वाराणसी के प्रदुम शुक्ला ने 19 साल की उम्र में लिखीं दो प्रेरक किताबें, युवाओं को आत्मविकास की ओर मोड़ रहे हैं

युवा पीढ़ी को लेकर अक्सर कहा जाता है कि वह आजकल तकनीक में तो तेज़ है, लेकिन आत्मनिरीक्षण और अनुशासन जैसे मूल्यों से दूर होती जा रही है। हालांकि, वाराणसी के 19 वर्षीय प्रदुम शुक्ला इस धारणा को एक नई दिशा दे रहे हैं। किशोरावस्था में दो किताबें लिख कर उन्होंने यह दिखाया है कि आज का युवा सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित नहीं, बल्कि विचारों से भी समाज को प्रभावित कर सकता है।


प्रदुम की पहली किताब ‘ख़ुद से आगे’ ( Khud Se Aage ) एक हिंदी आत्मविकासपरक पुस्तक है, जिसमें उन्होंने अपने अनुभवों के ज़रिए यह समझाने की कोशिश की है कि कैसे सोच की सीमाओं को तोड़कर, आदतों और अनुशासन के बल पर व्यक्ति खुद को बेहतर बना सकता है। दूसरी किताब ‘The Power to Outgrow’ अंग्रेज़ी में है, और यह पुस्तक भी उन्हीं विषयों को एक वैश्विक युवा पाठक वर्ग के लिए प्रस्तुत करती है।

2006 में जन्मे प्रदुम की परवरिश वाराणसी में हुई। उन्हें बचपन से ही टेक्नोलॉजी और नई चीज़ों को समझने का शौक रहा है। पुराने मोबाइल और कंप्यूटर के पुर्जों को खोलना, जोड़ना और कुछ नया बनाना उनके लिए एक खेल जैसा था। इसी रुचि ने उन्हें तकनीक के साथ-साथ रचनात्मकता की ओर भी आकर्षित किया।

फिलहाल वे ग्रेटर नोएडा स्थित IIMT ग्रुप ऑफ कॉलेजेज़ में बीटेक की पढ़ाई कर रहे हैं। साथ ही, वे एक स्वतंत्र डिजिटल न्यूज़ प्लेटफॉर्म Desh Crux के संस्थापक हैं, जहाँ वे युवाओं की सोच और सामाजिक मुद्दों पर खबरें और विश्लेषण साझा करते हैं।

प्रदुम की किताबों में कोई भारी-भरकम दर्शन नहीं है, न ही वे किसी विचारधारा को थोपने की कोशिश करते हैं। उनके लेखन की खासियत यही है कि वह सीधे जीवन से जुड़े अनुभवों से निकला हुआ है। वे उन सवालों को उठाते हैं जिनसे हर युवा कभी न कभी गुजरता है — जैसे, “मैं क्या बनना चाहता हूँ?”, “डर से कैसे बाहर आऊँ?” या “मैं अपनी आदतों को कैसे बेहतर बना सकता हूँ?”

जब उनसे पूछा गया कि वे लेखन को कैसे देखते हैं, तो उनका जवाब था:

“लेखन मेरे लिए एक प्रक्रिया है, खुद से संवाद करने की। अगर मेरी किताबें किसी एक व्यक्ति को भी खुद के बारे में सोचने पर मजबूर करें, तो मैं मानूंगा कि मेरा प्रयास सार्थक है।”

प्रदुम शुक्ला जैसे युवाओं की कहानियाँ यह दिखाती हैं कि सोचने और सीखने की भूख अगर सही दिशा में लगे, तो उम्र कभी बाधा नहीं बनती। वाराणसी की यह प्रतिभा आने वाले समय में युवाओं के बीच प्रेरणा का स्रोत बन सकती है — एक लेखक के रूप में भी, और एक विचारशील नागरिक के रूप में भी।
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