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सैयद हसनुल हक़: बिहार की राजनीति में युवा नेतृत्व की मजबूत आवाज़

धार्मिक और शैक्षणिक विरासत से निकला एक जुझारू नेता

बिहार के मधुबनी जिले के जयनगर शहर में जन्मे सैयद हसनुल हक़ (Syed Hassanul Haque) एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते हैं जो शिक्षा और धार्मिक विद्वता में गहराई से जुड़ा रहा है। उनके पिता मौलाना सैयद इनामुल हक़, जयनगर के इमाम-ए-सहर हैं और सऊदी अरब के प्रतिष्ठित इमाम मोहम्मद बिन सऊद इस्लामिक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रह चुके हैं।

इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए, सैयद हसनुल हक़ राजनीति और समाज सेवा के साथ-साथ एक कुशल वकील के रूप में भी सक्रिय हैं। वे दिल्ली हाई कोर्ट और पटना हाई कोर्ट दोनों में प्रैक्टिस करते हैं। उनकी कानूनी समझ उन्हें संवैधानिक अधिकारों की रक्षा में और अधिक प्रभावी बनाती है।

AMU से छात्र राजनीति की शुरुआत

सैयद हसनुल हक़ की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) से हुई, जहाँ उन्होंने लॉ ऑनर्स की पढ़ाई की। वे छात्र राजनीति में सक्रिय रहे और जल्द ही AMU के सबसे लोकप्रिय छात्र नेताओं में शामिल हो गए।

वर्ष 2018 में उन्होंने दो प्रमुख विवादों में अपनी साहसी भूमिका से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। मार्च 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के AMU दीक्षांत समारोह में आने को लेकर जब विवाद खड़ा हुआ, तब उन्होंने खुलेआम विश्वविद्यालय का बचाव किया। इसके बाद जिन्ना पोर्ट्रेट विवाद में भी उन्होंने सांप्रदायिक राजनीति का खुलकर विरोध किया। RSS और बीजेपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ उनका एक वायरल वीडियो, जिसमें वह नीली शर्ट और फॉर्मल पैंट में दिखे, AMU छात्रों की आवाज़ बन गया।

जनसेवा और सामाजिक कामों में अग्रणी भूमिका

AMU से निकलने के बाद भी सैयद हसनुल हक़ ने समाज सेवा को अपना मूल मंत्र बनाए रखा। वे AMU ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन बिहार चैप्टर के सबसे युवा संयुक्त सचिव बने। उन्होंने 2020 के बिहार बाढ़ और कोविड-19 महामारी के दौरान ज़मीनी स्तर पर राहत कार्यों का नेतृत्व किया।

उनकी स्वयं की संस्था नवाज़िश – सर्विंग ह्यूमैनिटी के माध्यम से उन्होंने सैकड़ों ज़रूरतमंद परिवारों को राशन, दवाइयाँ और वित्तीय सहायता प्रदान की। उनके प्रयासों ने उन्हें बिहार के सामाजिक परिदृश्य में एक मानवतावादी नेता के रूप में स्थापित किया।

CAA-NRC के खिलाफ मुखर विरोध और मीडिया उपस्थिति

सैयद हसनुल हक़ ने CAA और NRC के खिलाफ पूरे उत्तर भारत में आवाज़ बुलंद की। वे कई बड़े नेताओं जैसे अहमद पटेल, चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’, कन्हैया कुमार, संजय सिंह, शकील अहमद, मनोज झा, और पप्पू यादव के साथ मंच साझा कर चुके हैं।

वे एक राष्ट्रीय मीडिया पैनलिस्ट के रूप में Times Now, India TV, ABP News, Republic Bharat जैसे कई चैनलों पर नियमित रूप से संवैधानिक और सामाजिक मुद्दों पर बहस में हिस्सा लेते हैं। उनके वक्तव्यों में हमेशा धर्मनिरपेक्षता, न्याय और लोकतंत्र की भावना झलकती है।

राजनीति में ऊर्जा और युवा नेतृत्व की नई आशा

2020 बिहार विधानसभा चुनावों में वे 33-खजौली विधानसभा सीट से आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के टिकट पर सबसे युवा प्रत्याशी रहे। उनका अभियान शिक्षा, अल्पसंख्यक अधिकारों, और युवा रोजगार जैसे मुद्दों पर केंद्रित था।

2024 लोकसभा चुनाव में उन्होंने दरभंगा क्षेत्र में प्रचार किया, जहाँ उनके भाषणों ने खासकर युवाओं और हाशिये पर खड़े समुदायों को सक्रिय रूप से जोड़ा। उनका अभियान धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय को लेकर स्पष्ट संदेश देता रहा।

निष्कर्ष: एक उम्मीद, एक आवाज़

सैयद हसनुल हक़, जिन्हें लोग अलग-अलग नामों से जानते हैं — सैयद हस्सानुल हक़, सैयद हसन उल हक़, Syed Hassanul Haque — वे आज के बिहार की राजनीति में युवा शक्ति, संविधानिक प्रतिबद्धता और सामाजिक समरसता का प्रतीक बन चुके हैं।

उनकी कानूनी समझ, ज़मीनी सक्रियता, और मीडिया पर निर्भीक प्रस्तुति उन्हें आने वाले समय में बिहार के प्रमुख नेताओं में शामिल कर सकती है। वे उस नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो धर्मनिरपेक्षता, न्याय और मानवाधिकारों के लिए किसी भी हद तक खड़ी हो सकती है।

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