धार (मध्य प्रदेश) : वन्यजीव संरक्षण की दुहाई देने वाली मध्यप्रदेश की मोहन सरकार और उसका वन विभाग खरमोर अभयारण्य को बचाने के लिए कितना गंभीर है, यह अब सबसे बड़ा सवाल बन गया है। इंदौर-दाहोद रेलवे लाइन के नए सर्वे ने इस अभयारण्य के अस्तित्व पर सीधा खतरा पैदा कर दिया है।
वन विभाग ने खुद जताई थी आपत्ति, फिर भी रेलवे बोर्ड ने जारी कर दी अधिसूचना!
वन विभाग के अधिकारी लगातार अभयारण्य की सुरक्षा के लिए सक्रिय नजर आ रहे थे। 30 जनवरी 2025 को रेलवे विभाग और वन विभाग के संयुक्त निरीक्षण में यह स्पष्ट हुआ कि प्रस्तावित रेलवे लाइन अभयारण्य से मात्र 27 मीटर की दूरी पर गुजरेगी, जो इको-सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) के बेहद करीब है। 3 फरवरी को तैयार की गई रिपोर्ट में विशेषज्ञों से विस्तृत अध्ययन की अनुशंसा की गई थी, साथ ही ग्रीन कॉरिडोर व साउंडप्रूफ दीवार का सुझाव दिया गया था। लेकिन अचानक 6 फरवरी को रेलवे बोर्ड ने पांच गांवों— पसावदा, बोदली, रूपाखेड़ा, जोलाना और मौलाना की जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना जारी कर दी!
अब सवाल यह उठता है कि आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों? क्या रेलवे बोर्ड को डर है कि कहीं कोई इस फैसले को कोर्ट में चुनौती न दे दे? या फिर रेलवे को यह चिंता है कि साउंडप्रूफ और ग्रीन कॉरिडोर बनाने का खर्च न बढ़ जाए?
क्या साउंडप्रूफ दीवार और ग्रीन कॉरिडोर पर्याप्त होंगे?
वन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, रेलवे लाइन खरमोर अभयारण्य के पानपुरा ईको-सेंसिटिव ज़ोन से खतरनाक रूप से करीब है—
- पॉइंट 196: 26.5 मीटर
- पॉइंट 197: 14.7 मीटर
- पॉइंट 200: 10.7 मीटर
- पॉइंट 205: 9.49 मीटर
- पॉइंट 209: 5.43 मीटर
- पॉइंट 213: 11.2 मीटर
- पॉइंट 214: 26.7 मीटर
मतलब, रेलवे लाइन अभयारण्य से बमुश्किल 1 किलोमीटर भी दूर नहीं है, जबकि कम से कम 3 किलोमीटर की दूरी जरूरी बताई गई थी! ऐसे में रेलवे की साउंडप्रूफ दीवार और ग्रीन कॉरिडोर भी अभयारण्य को बचाने में नाकाफी साबित होंगे।
मोहन सरकार के लिए बड़ी चुनौती!
अब देखना यह है कि वन्यप्राणियों के संरक्षण का दावा करने वाली मोहन सरकार इस फैसले को रोक पाएगी या फिर अभयारण्य को धीरे-धीरे खत्म करने के लिए छोड़ देगी?
रेलवे बोर्ड ने सरदारपुर से उमरकोट तक भले ही अधिसूचना जारी कर दी हो, लेकिन यदि 14 ग्राम पंचायतों को अभयारण्य मुक्त करने (De-notification) की प्रक्रिया होती है, तो प्रस्तावित नवीन खरमोर अभयारण्य भी खतरे में पड़ सकता है। क्योंकि नवीन अभयारण्य में वन विभाग के दो से तीन कक्ष ही होंगे, जो रेलवे लाइन के कारण प्रभावित हो सकते हैं।
अब सरकार को अपना रुख साफ करना होगा— संरक्षण की नीति या विकास के नाम पर विनाश?
सरकार को अब साफ करना होगा कि वह वन्यजीवों और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देना चाहती है या विकास के नाम पर अभयारण्य खत्म करने की अनुमति देगी। क्या सरकार वन विभाग की आपत्तियों और विशेषज्ञों की सिफारिशों को मानेगी, या रेलवे बोर्ड के दबाव में अभयारण्य को धीरे-धीरे खत्म करने का रास्ता चुनेगी?
अगर सरकार सच में संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है, तो उसे इस परियोजना की समीक्षा कर पर्यावरणीय प्रभावों का गहन अध्ययन कराना होगा और अभयारण्य की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। वरना यह साफ हो जाएगा कि वन्यजीव संरक्षण की बातें महज़ कागज़ी घोषणाएँ हैं और हकीकत में सरकार विकास के नाम पर अभयारण्य खत्म करने की ओर बढ़ रही है।