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बुज़ुर्गों के लिए मानसिक शांति के साथ ही शारीरिक शांति का भी सुखद माध्यम बनी संस्था बीइंग रेस्पॉन्सिबल
बुज़ुर्गों के लिए मानसिक शांति के साथ ही शारीरिक शांति का भी सुखद माध्यम बनी संस्था बीइंग रेस्पॉन्सिबल
Kapil Rajora
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इंदौर, 22 जून, 2023: इंदौर स्थित समाजसेवी संस्था बीइंग रेस्पॉन्सिबल अपनी अनूठी पहल के चलते काफी चर्चा में है। संस्था द्वारा संचालित अपने तीनों डे केयर सेंटर्स व इंदौर के अन्य आनंदम सीनियर सिटीज़न सेंटर में मालिश की सेवाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं। निःस्वार्थ भाव से की जा रही यह पहल पूर्णतः निःशुल्क है, जिसका इन संस्थाओं के तमाम सदस्य भरपूर लाभ ले रहे हैं। हफ्ते में एक निश्चित दिन इन सेंटर्स पर मालिश की सुविधा देने का परिणाम यह हुआ है कि संस्था से जुड़े बुज़ुर्गों को शरीर की अकड़न और जोड़ों के दर्द से काफी हद तक राहत मिली है।
बीइंग रेस्पॉन्सिबल के कपिल राजोरा कहते हैं, "शहर में कई डे केयर सेंटर्स वर्षों से संचालित हो रहे हैं, जो बुज़ुर्गों के लिए सेवा भावना रखते हैं। इन सेंटर्स में एक-दूसरे का साथ पाकर मानसिक दुःख-दर्द तो दूर हो जाते हैं, लेकिन शारीरिक समस्या पर कुछ कम ही असर देखने को मिलता है। उम्र के इस पड़ाव में यदि सबसे अधिक तकलीफ दायक है, तो वह है जोड़ों का दर्द। बहुत कम ही लोग होंगे, जो घर में मालिश संबंधी सेवाएँ ले पाते होंगे। बुज़ुर्गों की इस समस्या को बीइंग रेस्पॉन्सिबल ने पहचानने की कोशिश की है, जो फलतः सफल साबित हो रही है। इन्हें खुश देखकर मन को जो खुशी मिलती है, उसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं है।"
चारों सेंटर्स में मालिश की यह सुविधा देने वाले अर्जुन महर कहते हैं, "जोड़ों का दर्द बुज़ुर्गों के बीच सबसे सामान्य समस्या है, जिसमें घुटनों के दर्द की सबसे अधिकता देखी जाती है। मालिश के बाद सदस्यों के चेहरों पर जो सुकून देखने को मिलता है, वह मेरी सारी मेहनत सफल कर जाता है। बीइंग रेस्पॉन्सिबल की इस पहल से जुड़ना मेरे लिए गर्व की बात है।"
शहर में वर्तमान समय में डे केयर सेंटर्स का चलन काफी तेजी से बढ़ा है, इसका सीधा कारण है अकेलापन। नई पीढ़ी यानि नाती-पोते मोबाइल और आईपैड में सीमित होकर रह गए हैं, वहीं बहु-बेटों को दो पैसे कमाने के लिए अधिकांश समय घर से बाहर ही बिताना पड़ता है। घर में अकेली रह जाती है बुज़ुर्ग पीढ़ी। शारीरिक रूप से कमजोर ये बुज़ुर्ग धीरे-धीरे मानसिक परेशानियों का सामना करने को मजबूर हो जाते हैं, जिसका प्रत्यक्ष कारण है कि दो बातें करने के लिए उनके पास कोई नहीं होता। इस प्रकार, यह समझा जा सकता है कि उम्र के इस विशेष पड़ाव में अपने हमउम्रों का साथ सबसे अधिक मायने रखता है। 60 वर्षों या उससे अधिक का तजुर्बा रखने वाले लोग इन संस्थाओं से जुड़ते हैं, और एक रंग में रंगकर जीवन के खूब आनंद लेते हैं। एक-दूसरे से घुलने-मिलने के साथ ही मालिश की इस निःशुल्क सुविधा ने उनकी महफिल में चार चाँद लगा दिए हैं।
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