होली में अलग अलग रंग चढ़ाता है। मन की धुलाई से ही व्यक्तित्व का रंग निखरता है l मनभेद दूर होता है। ठीक पतझड के बाद पहला त्यौहार होली है। भाई चारा, घुलमिलने का त्यौहार है होली।
होली जलाना मन के दहन का प्रतीक है। अपने भीतर वर्ष भर के विकारों को, मतभेद को व ईष्या को जलाने का त्यौहार है होली। मन के मैल के बुकवा को निकाल कर उसे होली में दहन किया जाता है। इसलिये यह मन के मैल को धोने का त्यौहार है। रागद्वेष गुस्से और गलतियो को मिठास में बदलने का मौसम है। अग्नि में जलकर खरा सोना पहचानने का त्यौहार है होली। हिंदू धर्म ग्रंथ अनुसार आज से हजारो वर्ष पूर्व इन त्यौहारों की संरचना की गई थी। होली के औचित्य समझना जरुरी है। हिरण्यकश्यप् की आदेश से अग्नि रोधी(फायर प्रुफ ) साड़ी पहन कर अग्नि में बैठने के उपरान्त होलीका भक्त प्रहलाद को उसके सद्गुणों के कारण जला नहीं पाती, बल्कि स्वयं जल जाती है। असत्य , अहंकार दंभ की हार और सरल, कोमल ह्रदय और ईश्वर पर परम आस्था रखने वाला प्रह्लाद की जीत होती है। यह जीत मानव कल्याण, आशा और आस्था की है जिसे होली के रूप में संसार मानता है। कड़क अग्नि में ही कोयला, कार्बन और हीरे की परख होती है। मन को चमकाने का त्यौहार है होली।
प्रो डॉ दिनेश गुप्ता - आनंदश्री
आध्यात्मिक व्याख्याता एवं माइन्डसेट गुरु, मुम्बई