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राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री का जवाब

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 "हमारी सरकार का उद्देश्य नागरिकों के सामने आने वाली समस्याओं का स्थायी समाधान प्रदान करना और उन्हें सशक्त बनाना है"

 "हम आधुनिक भारत के निर्माण के लिए अवसंरचना, पैमाने और गति के महत्व को समझते

"हमारी सोच खंडित नहीं है, हम प्रतीकवाद में विश्वास नहीं करते"


 "हम सफल हुए हैं और हम आम नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं"


 "डिजिटल इंडिया की सफलता ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है"


 "हमने राष्ट्रीय प्रगति के साथ क्षेत्रीय आकांक्षाओं पर भी ध्यान केंद्रित किया है"

"हमारा संकल्प है कि 2047 तक देश 'विकसित भारत' बने"

  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का आज राज्यसभा में जवाब दिया। प्रधानमंत्री ने अपने उत्तर की शुरुआत; राष्ट्रपति जी द्वारा अपने संबोधन में 'विकसित भारत' का विजन प्रस्तुत करके दोनों सदनों का मार्गदर्शन करने के लिए उन्हें धन्यवाद देते हुए की।

  प्रधानमंत्री ने कहा कि मैकेनिक तक हर प्रकार के रोजगार की संभावनाएं, engineer से लेकर के श्रमिक तक हर किसी के लिए रोजगार के नए अवसर बने हैं और उसी के कारण youth विरोधी नीति लेकर के चले लोगों को आज youth नकार रहा है और वो youth की भलाई के लिए हम जिन नीतियों को लेकर के चले हैं, इसको आज देश स्वीकार कर रहा है।

आदरणीय सभापति जी,

यहां ये भी कहा गया…

आदरणीय सभापति जी,

यहां ये भी कहा गया कि सरकार की योजनाओं को उनके नामों को लेकर के आपत्ति उठाई। कुछ लोगों को ये भी परेशानी है कि नामों में कुछ संस्कृत touch है। बताइए इसकी भी परेशानी है।

आदरणीय सभापति जी,

मैंने किसी अखबार में पढ़ा था, मैंने कोई वेरीफाई तो नहीं किया है और वो रिपोर्ट कह रही थी 600 जितनी सरकारी योजनाएं सिर्फ गांधी-नेहरू परिवार के नाम पर हैं।

आदरणीय सभापति जी,

किसी कार्यक्रम में अगर नेहरू जी के नाम का उल्लेख नहीं हुआ तो कुछ लोगों के बाल खड़े हो जाते हैं। उनका लहु एकदम गर्म हो जाता है कि नेहरू जी का नाम क्यों नहीं दिया।

आदरणीय सभापति जी,

मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि चलो भाई हमसे कभी छूट जाता होगा नेहरू जी का नाम और छूट जाता होता तो हम ठीक भी कर लेंगे क्योंकि वो देश के पहले प्रधानमंत्री थे। लेकिन मुझे ये समझ नहीं आता है कि उनकी पीढ़ी का कोई व्यक्ति नेहरू सरनेम रखने से डरता क्यों है? क्या शर्मिंदगी है नेहरू सरनेम रखने से? क्या शर्मिंदगी है? इतना बड़ा महान व्यक्तित्व अगर आपको मंजूर नहीं है, परिवार को मंजूर नहीं है और हमारा हिसाब मांगते रहते हो।

आदरणीय सभापति जी,

कुछ लोगों को समझना होगा ये सदियों पुराना देश सामान्‍य मानवी के पसीने और पुरुषार्थ से बना हुआ देश है, जन-जन की पीढ़ियों की परंपरा से बना हुआ देश है। ये देश किसी परिवार की जागीर नहीं है। हमने मेजर ध्यानचंद जी के नाम पर खेल रत्न का पुरस्कार कर दिया, अंडमान में नेताजी सुभाष के नाम पर, स्वराज के नाम पर हमने द्वीपों का नामकरण किया, हमें गर्व हो रहा है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान के लिए देश गर्व करता है, हम गर्व करते हैं।

इतना ही नहीं, जो लोग आए दिन हमारे देश की सेना को नीचा दिखाने का मौका नहीं छोड़ते, हमने इन द्वीपों को परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले सेनानियों के नाम कर दिया है। आने वाली सदियों तक कोई हिमालय की चोटी, एक एवरेस्‍ट व्यक्ति के नाम पर एवरेस्‍ट बन गई, मेरे द्वीप समूह मेरे परमवीर चक्र विजेता, मेरे देश के सेनानियों के नाम कर दिया ये हमारी श्रद्धा है, ये हमारी भक्ति है और उसको ले करके हम चलते हैं। और इससे आपको तकलीफ है और तकलीफ व्यक्त भी हो रही है। हरेक के तकलीफ व्यक्त करने के रास्ते अलग होंगे, हमारा रास्ता है सकारात्मक।

कभी-कभी- अब ये सदन है, एक प्रकार से राज्यों का महात्मय है। हम पर ऐसे भी आरोप लगाए जाते हैं कि हम राज्यों को परेशान करते हैं।

आदरणीय सभापति जी,

मैं लंबे अर्से तक राज्‍य का मुख्‍यमंत्री रह करके आया हूं। Federalism का क्‍या महत्‍व होता है वो भली भांति समझता हूं। उसको जी करके आया हूं। और इसलिए हमने cooperative competitive federalism पर बल दिया है। आओ हम स्पर्धा करें, हम आगे बढ़ें, हम सहयोग करें हम आगे बढें, उस दिशा में हम चले आएं। हमने हमारी नीतियों में national progress का भी ध्यान रखा है और regional aspiration को भी address किया है। National progress and regional aspiration इसका perfect combination हमारी नीतियों में दिखा है क्योंकि हम सब मिल करके 2047 तक एक विकसित भारत का सपना पूरा करने के लिए चल पड़े हैं।

लेकिन जो लोग आज विपक्ष में बैठे हैं उन्होंने तो राज्यों की अधिकारों की धज्जियां उड़ा दी थीं। जरा में कच्चा चिट्ठा आज खोलना चाहता हूं। जरा इतिहास उठा करके देख लीजिए, वो कौन पार्टी थी, वो लोग कौन सत्ता में बैठे थे जिन्‍होंने आर्टिकल 356 का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया। 90 बार चुनी हुई सरकारों को गिरा दिया। कौन हैं वो, कौन हैं जिन्होंने किया, कौन हैं जिन्होंने किया, कौन हैं जिन्होंने किया।

सम्‍मानीय सभापति जी,

एक प्रधानमंत्री ने आर्टिकल 356 का 50 बार उपयोग किया, आधी सेंचुरी कर दी। वो नाम है श्रीमती इंदिरा गांधी का। 50 बार सरकारों को गिरा दिया। केरल में आज जो लोग इनके साथ खड़े हैं जरा याद कर लीजिए थोड़ा वहां माइक लगा दीजिए। केरल में वामपंथी सरकार चुनी गई जिसे पंडित नेहरू पसंद नहीं करते थे। कुछ ही कालखंड के अंदर चुनी हुई पहली सरकार को घर भेज दिया। आज आप वहां खड़े हैं, आपके साथ क्या हुआ था जरा याद कीजिए।

आदरणीय सभापति जी,

जरा डीएमके के मित्रों को भी बताता हूं। तमिलनाडु में एमजीआर और करुणानिधि जैसे दिग्गजों की सरकारें, उन सरकारों को भी इन्‍हीं कांग्रेस वालों ने बर्खास्त कर दिया था। एमजीआर की आत्मा देखती होगी आप कहां खड़े हो। यहां पर पीछे बैठे हैं इस सदन के वरिष्ठ सदस्य और जिनको मैं हमेशा एक आदरणीय नेता मानता हूं, श्रीमान शरद पवार जी। 1980 में शरद पवार जी की आयु 35-40 साल की थी। एक नौजवान मुख्‍यमंत्री मां की सेवा करने के लिए निकला था, उनकी सरकार को भी गिरा दिया गया था, आज वो वहां हैं।

हर क्षेत्रीय नेता को उन्होंने परेशान किया और एनटीआर, एनटीआर के साथ क्‍या किया। यहां कुछ लोग आज कपड़े बदले होंगे, नाम बदला होगा, ज्योतिषियों की सूचना के अनुसार नाम बदला होगा। लेकिन कभी वो भी उनके साथ थे। उन एनटीआर की सरकार को और वो तब, वो तबियत के लिए अमेरिका गए थे, अपनी हेल्थ के लिए गए थे, आपने एनटीआर की सरकार को गिराने का प्रयास किया। ये कांग्रेस की राजनीति का स्तर था।

आदरणीय सभापति जी,

अखबार निकाल कर देख लीजिए, हर अखबार लिखता था कि राजभवनों को कांग्रेस के दफ्तर बना दिए गए थे, कांग्रेस के हेड क्वार्टर बना दिए गए। 2005 में झारखंड में एनडीए के पास ज्यादा सीटें थीं लेकिन गवर्नर ने यूपीए को शपथ के लिए बुला लिया था। 1982 में हरियाणा में भाजपा और देवीलाल के पास pre poll उनका एग्रीमेंट था, उसके बावजूद भी गवर्नर ने कांग्रेस की सरकार के लिए निमंत्रण दिया था। ये कांग्रेस के past और आज-आज देश को गुमराह करने की बातें कर रहे हैं।

आदरणीय सभापति जी,

मैं इस बात को जानना चाहता हूं, मैं एक गंभीर विषय की ओर अब ध्यान देना भी चाहता हूं। महत्वपूर्ण विषयों को मैंने स्पर्श किया है और आज देश में आर्थिक नीतियों की जिनको समझ नहीं है, जो 24 घंटे राजनीति के सिवाय कुछ सोचते नहीं हैं, जो सत्ता के खेल खेलना यही जिनको सार्वजनिक जीवन का काम दिखता है, उन्होंने अर्थनीति को अनर्थनीति में परिवर्तित कर दिया है।

मैं उनको चेतावनी देना चाहता हूं और मैं इस सदन की गंभीरता के साथ उनसे कहना चाहता हूं कि अपने respective state को जाकर समझाएं कि ये गलत रास्ते पर न चले जाएं। हमारे पड़ोस के देशों का हाल देख रहे हैं कि वहां पर क्या हाल हुआ है। अनाप-शनाप कर्ज ले करके किस प्रकार से देशों को डुबो दिया गया। आज हमारे देश में भी तत्‍कालीन लाभ के लिए अगर भुगतान करेगी तो आने वाली पीढ़ी करेगी, हम तो कर्ज करो, जीपीओ वाला खेल, आने वाला देखेगा, ये कुछ राज्यों ने अपनाया है। वो उनका तो तबाह कर देंगे देश को भी बर्बाद कर देंगे।

अब देश, अब कर्ज के तले दबते जा रहे हैं। ये देश आज दुनिया में कोई उनको कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है, ये मुसीबतों से गुजर रहे हैं।

मैं राजनीतिक, वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, दलों के विषय में एक-दूसरे के प्रति शिकायतें थोड़ी हो सकती हैं, लेकिन देश की आर्थिक सेहत के साथ खिलवाड़ मत कीजिए। आप ऐसा कोई पाप मत कीजिए जो आपके बच्चों के अधिकारों को छीन ले और आज अपना मौज कर लें और बच्‍चों के नसीब में बर्बादी छोड़कर चले जाएं, ऐसा करके न जाएं। आज आपको पॉलिटीकली ...मैंने तो देखा एक मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि भई अब ठीक है मैं निर्णय कर रहा, अभी मुसीबत मुझे तो आएगी 2030-32 के बाद आएगी, जो आएगा वो भुगतेगा। क्या कोई देश ऐसे लता है क्या। लेकिन ये जो युक्ति बन रही है वो बहुत चिंता का विषय है।

आदरणीय सभापति जी,

देश की आर्थिक सेहत के लिए राज्यों ने भी अपनी आर्थिक सेहत के संबंध में discipline का रास्ता चुनना पड़ेगा और तभी जा करके राज्‍य भी इस विकास की यात्रा का लाभ ले पाएंगे और उनके राज्यों के नागरिकों का भला करने में हमें भी सुविधा हो जाएगी, ताकि हम उन तक लाभ पहुंचाना चाहते हैं।

आदरणीय सभापति जी,

2047 में ये देश विकसित भारत में ये हम सबका संकल्प है, 140 करोड़ देशवासियों का संकल्प। अब देश पीछे मुड़ करके देखने को तैयार नहीं है, देश लंबी छलांग मारने को तैयार है। जिनकी दो वक्त की रोटी का सपना था उसको आपने address नहीं किया, हमने उसको address किया है। जिसको सामाजिक न्‍याय की अपेक्षा थी आपने address नहीं किया, हमने address किया है। जिन अक्सर अवसरों को तलाशता था, उन अवसरों को उपलब्ध कराने के लिए हमने अनेक कदम उठाए हैं और आजाद भारत का जो सपना है उस सपने को पूरा करने के लिए हम संकल्पबद्ध हो करके चलें,

और आदरणीय सभापति जी,

 देश देख रहा है, एक अकेला कितनों को भारी पड़ रहा है। अरे नारे बोलने के लिए भी उनको डबल करना पड़ता है। आदरणीय सभापति जी, मैं conviction के कारण चला हूं। देश के लिए जीता हूं, देश के लिए कुछ करने के लिए निकला हुआ हूं। और इसलिए ये राजनीतिक खेल खेलने वाले लोग, उनके अंदर वो हौसला नहीं है, वो ढूंढ रहे हैं बचने का रास्ता खोज रहे हैं।

आदरणीय सभापति जी,

 राष्‍ट्रपति जी के उम्‍दा भाषण को, राष्‍ट्रपति जी के मार्गदर्शक भाषण को, राष्‍ट्रपति जी के प्रेरक भाषण को इस सदन के अंदर अभिनंदन करते हुए, धन्यवाद करते हुए, आपका भी आभार व्यक्त करते हुए अपनी बात को समाप्त करता हूं।
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