मध्यप्रदेश : राज्य सरकारो द्वारा माननीय उच्चतम नयायालय के प्रकाश सिंह व अन्य के 2006 के निर्णय को लागू नही कर अवमानना करने पर दोषियो के विरूद्ध अवमानना कि कार्ययाही कर फैसले को शीघ्र लागू करने एवं उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी पुलीस थानो मे सी सी टी वी केमरे लगाने के निर्णय की अवमानना करने वाले दोषियो पर कार्यवाही करने एव शीघ्र फैसलो को लागू करने के संबंध में समाजसेवी अभय चोपडा ने एक पत्र श्रीमान प्रधानमंत्री महोदय भारत शासन नई दिल्ली, श्रीमान मुख्य न्यायाधीश महोदय सुप्रीमकोर्ट नई दिल्ली, श्रीमान ग्रहमन्त्री महोदय भारत शासन नई दिल्ली, श्रीमान कानून मन्त्री भारत शासन नई दिल्ली एवं श्रीमान सोलिस्टर जनरल महान्यायवादी भारत शासन नई दिल्ली को भेजा।
चोपडा ने पत्र में उल्लेख किया है कि भारत के संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय के निर्णय के क्रियान्वयन हेतू कार्यपालिका जबाबदार होती हैं। यह दोनों निर्णय कार्यपालिका से सम्बंधित है। अतः कार्य पालिका द्वारा सउद्देश्य अपने को बचाने के लिये जानबूझकर जनहित याचिकाओ के इस निर्णय को लागू नही किया गया है। जबकि ऐसे निर्णय जिसमे कार्यपालिका को अधिकार और शक्ति प्राप्त होती है एसे निर्णय को तुरन्त लागू करके दोहरा मापदण्ड अपनाती है। जो कि असंवेधानिक और गैर कानूनी है। सत्ता और ताकत के लिये जनप्रतिनिधियो और प्रशासनिक अधिकारियो का मजबूत गठजोड बन गया ह्रें। अतः जनहित वाले फैसलो और कानून का क्रियान्वयन करने के लिये माननीय उच्चतम न्यायालय और केन्द्र सरकार को समान्तर प्रभावी व्यवस्था लागू करना चाहिये जिससे हमारे संविधान और उसमे प्रदत्त मोलिक अधिकारो की रक्षा हो सके। पत्र में सभी जबाबदारो से मांग की है कि शीघ्रता शीघ्र कार्यवाही की जावे।
पत्र में बताया गया कि देश मे पुलीस सुधार लागू नही होने से पुलीस व्यबस्था निम्नतर स्तर पर है। सत्ताधारी दल के ईशारे पर सभी राज्यो के अकुशल पुलीसकर्मी स्वार्थी और दबाव मे काम करने वाले पुलीस अधिकारियो और तबादले के भय से सत्ताधारी दलो के ईशारे पर गैरकानूनी काम करके देश मे भय और आतंक साम्राज्य बनाकर देश मे कबिलियाई राज स्थापित करके लोकतन्त्र को चूर चुर कर दियाहै। पत्र में मांग की है कि इस सन्दर्भ मे नीचे वर्णित दो निर्णयो को शीघ्रता शीघ्र क्रियान्वयन करवाने के निर्देश दिये जावे।
चोपडा ने आगे बताया कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था मे केन्द्र सरकार और राज्य सरकारो की दृष्टि मे जनहित सर्वोपरि होता है माननीय न्यायालयो मे अधिवक्ता द्वारा जनहित मे फैसले के क्रियान्वयन हेतू पैरवी करना चाहिये लेकिन वह नही की गई और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय का पालन करवाने और पालन नही करवाने वाले दोषी अधिकारियो के विरूद्ध कार्यवाही नही करके अपने कृतव्यो का विधि के निर्देशों के अनुसार कार्यवाही नही की गई। अतः शीघ्र प्रभावी कार्यवाही के निर्देश दिये जाने की मांग की एवं शासन की निधि से गैरकानूनी और अवेधानिक तरीके से अवमानना करने वाले अधकारियों को मदद करने वालो के विरूद्ध वैधानिक कार्यवाही करने की मांग की है।
चोपडा ने उक्त सन्दर्भ मे दो निर्णय इस प्रकार बताये है कि उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार पोलिस थानों मे सी सी टी वी केमरे लगाना आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 02 दिसंबर, 2020 के फैसले के माध्यम से गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने, अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य केंद्रशासित प्रदेश के प्रत्येक पुलिस स्टेशन में आईपी आधारित सीसीटीवी निगरानी प्रणाली को लागू करने के लिए सभी राज्य पुलिस बलों की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। इस प्रक्रिया में हिरासत में प्रताड़ना के आरोपों से जुड़े मामलों से कुशलतापूर्वक निपटने में मदद मिलेगी। साथ ही देश के सभी पुलिस थानों में सीसीटीवी निगरानी के संबंध में उच्चतम न्यायालय के निर्णय की मुख्य विशेषताएं।
प्रत्येक पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए और पुलिस स्टेशन का कोई भी हिस्सा खुला नहीं छोड़ा जाना चाहिए, यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि सीसीटीवी कैमरे निम्नलिखित स्थानों पर लगाए जाएं। प्रवेश और निकास बिंदु, पुलिस स्टेशन का मुख्य द्वार, सभी लॉक-अप, सभी गलियारे, लॉबी, स्वागत क्षेत्र, सभी बरामदे, आउटहाउस, इंस्पेक्टर का कमरा, सब-इंस्पेक्टर का कमरा, लॉक-अप रूम के बाहर का क्षेत्र, स्टेशन हॉल, थाना परिसर के सामने, बाहर (अंदर नहीं) वॉशरूम, शौचालय, ड्यूटी ऑफिसर का कमरा, थाने का पिछला हिस्सा आदि कैमरे की निगरानी में रखा जावे। उन सभी कार्यालयों में भी सीसीटीवी लगाए जाए जहां आरोपियों से पूछताछ और पकड़े जाने की प्रक्रिया उसी तरह की जाएगी जैसे किसी थाने में होती है। सीसीटीवी सिस्टम जिन्हें स्थापित किया जाना है, उन्हें नाइट विजन से लैस होना चाहिए और आवश्यक रूप से ऑडियो के साथ-साथ वीडियो फुटेज भी शामिल होना चाहिए।
उन क्षेत्रों में जहां या तो बिजली औरध्या इंटरनेट नहीं है, राज्योंध्संघ शासित प्रदेशों का यह कर्तव्य होगा कि वे सौरध्पवन ऊर्जा सहित बिजली उपलब्ध कराने के किसी भी तरीके का उपयोग करते हुए इसे यथासंभव शीघ्रता से उपलब्ध कराएं। इंटरनेट सिस्टम को स्पष्ट छवि संकल्प और ऑडियो का समर्थन करना चाहिए। सीसीटीवी कैमरा फुटेज को अधिकतम संभव अवधि के लिए 18 महीने तक संरक्षित किया जाना चाहिए लेकिन 12 महीने से कम नहीं होना चाहिए
एक निगरानी तंत्र बनाया जाना चाहिए जिससे एक स्वतंत्र समिति सीसीटीवी कैमरा फुटेज का अध्ययन कर सके और समय-समय पर अपनी टिप्पणियों की रिपोर्ट प्रकाशित कर सके। जिला स्तरीय निरीक्षण समिति के निम्नलिखित दायित्व होंगे। सीसीटीवी सिस्टम की स्वास्थ्य निगरानी और रिपोर्टिंग होगी। किसी भी मानवाधिकार उल्लंघन की जांच करने के लिए विभिन्न पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी से संग्रहीत फुटेज की समीक्षा करने के लिए जो हो सकता है लेकिन रिपोर्ट नहीं किया गया है।
प्रकाश सिंह विरूद्ध अन्य 2006 के निर्णय की अनुशंसा के अनुसार (1) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, रिबेरो समिति या सोराबजी समिति द्वारा अनुशंसित किसी भी मॉडल पर एक राज्य सुरक्षा आयोग का गठन करें। (2) तीन वरिष्ठतम में से राज्य के डीजीपी का चयन करें। विभाग के अधिकारी यूपीएससी द्वारा उस रैंक पर पदोन्नति के लिए सूचीबद्ध होते हैं और एक बार चुने जाने पर, उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख के बावजूद उन्हें कम से कम दो साल का न्यूनतम कार्यकाल प्रदान करते हैं। (3) परिचालन कर्तव्यों पर पुलिस अधिकारियों के लिए न्यूनतम दो वर्ष का कार्यकाल निर्धारित करें। (4) कानून और व्यवस्था पुलिस से अलग जांच पुलिस, दस लाख या उससे अधिक की आबादी वाले कस्बोंध्शहरी क्षेत्रों से शुरू होकर, और धीरे-धीरे छोटे शहरों, शहरी क्षेत्रों तक भी फैली हुई है। (5) पुलिस उपाधीक्षक के पद से नीचे के अधिकारियों के सभी स्थानांतरण, पोस्टिंग, पदोन्नति और अन्य सेवा से संबंधित मामलों को तय करने के लिए राज्य स्तर पर एक पुलिस स्थापना बोर्ड की स्थापना करें। (6) पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए राज्य और जिला स्तर पर पुलिस शिकायत प्राधिकरण का गठन करें। (7) सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को केंद्रीय पुलिस संगठनों (सीपीओ) के प्रमुखों के चयन और नियुक्ति के लिए उपयुक्त नियुक्ति प्राधिकारी के समक्ष रखे जाने के लिए एक पैनल तैयार करने के लिए संघ स्तर पर एक राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग का गठन करने का भी निर्देश दिया। इन बलों की प्रभावशीलता को उन्नत करने के उपायों की समय-समय पर समीक्षा करने के लिए अतिरिक्त जनादेश के साथ न्यूनतम दो वर्ष का कार्यकाल भी दिया जाना चाहिए, अपने कर्मियों की सेवा शर्तों में सुधार करना, यह सुनिश्चित करना कि उनके बीच उचित समन्वय है और बलों आम तौर पर उन उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है जिन्हें वे उठाए गए थे और उस संबंध में सिफारिशें करते थे।
चोपडा ने बताया कि जुलाई 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सभी राज्य पुलिस महानिदेशक के पद पर पदधारी की सेवानिवृत्ति की तारीख से कम से कम तीन महीने पहले यूपीएससी को रिक्तियों की प्रत्याशा में अपने प्रस्ताव यूपीएससी को भेज देंगे। राज्य यूपीएससी द्वारा तैयार किए गए पैनल में से किसी एक व्यक्ति को तुरंत नियुक्त करेगा। कोई भी राज्य अभिनय के आधार पर किसी व्यक्ति को डीजीपी के पद पर नियुक्त करने के विचार की कल्पना कभी नहीं करेगा क्योंकि कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक की कोई अवधा दअरणा नहीं है। हालांकि, कई राज्यों ने यूपीएससी की पैनल प्रक्रिया को दरकिनार करने के लिए कानून या कार्यकारी आदेश पारित किए।
चोपडा द्वारा पत्र के माध्यम से अनुरोध किया है कि मेरे आवेदन को याचिका शिकायत मानकर कार्यवाही किये जाने का निर्देश आप सभी जबाबदार पदाधिकारी दिये जाने के निर्देश दिये जावे।