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वातायन संगोष्ठी-84 स्मृति एवं संवाद श्रृंखला: सुनामधन्य लेखक भीष्म साहनी

 


  लंदन : संगोष्ठी स्मृति एवं संवाद श्रृंखला-19 के तहत सुनामधन्य लेखक, नाटककार, कथाकार भीष्म साहनी जी पर केन्द्रित थी। वातायन-यूके द्वारा आयोजित  स्मृति एवं संवाद श्रृंखला की शुरुआत डॉ रेखा सेठी जी की अध्यक्षता में संपन्न हुई, जिसमें भारत के वरिष्ठ साहित्यकार प्रियदर्शन जी ने मुख्य वक्ता की भूमिका निभाई। वातायन की संस्थापक, दिव्या माथुर जी के सुन्दर संयोजन एवं ऋचा जैन जी के स्वागत-भाषण एवं कुशल संचालन में इस संगोष्ठी की शोभा और सफलता निश्चित थी। इस वैश्विक संगोष्ठी में सम्मलित थे विश्व भर से जुड़े लेखक, विद्वान और मीडियाकर्मी।






  भीष्म साहनी जी के कथा साहित्य पर डॉ रेखा सेठी जी बेहद रोचक जानकारी प्रस्तुत करते हुए शुरुआत की। डॉ सेठी ने जो प्रश्न वरिष्ठ साहित्यकार प्रियदर्शन जी के समक्ष रखे, उनके उन्होंने बहुत शोधपरक उत्तर देकर सम्वाद श्रृंखला को आगे बढ़ाया। यूँ तो भीष्म साहनी जी के रचना संसार से वे सब लोग परिचित होंगे जो साहित्य में रुचि रखते होंगे लेकिन जब प्रियदर्शन जी ने उनके कथा संसार में से ‘गंगू का जाया’, ‘हानूश’, ‘माता-विमाता’, ‘ओ हरामजादे’, ‘चीफ़ की दावत’ जैसी कई कहानियों के शिल्प, संवाद और उनकी सघन व भावनात्मक बनावट-बुनावट पर जो बारीकी से बात रखी। साहनी जी के शिल्प को लेकर उठे प्रश्न के जवाब में आपने कहा, “शिल्प सरोकार से निर्मित होता है,” मतलब लेखक के सरोकार ही इतने गहरे थे कि उनको बुनने में शिल्प अपने आप बनता गया। 


   दोनों संवादकर्ताओं की बातचीत तथ्यपरक तो थी ही साथ में अपने वरिष्ठ रचनाकार के प्रति उनकी सद्भावना को भी अलग से रेखांकित किया  जा सकता था। बात करते हुए जब प्रियदर्शन जी ने भीष्म जी के उपन्यासों में से ‘वसंती’ और ‘माधवी’ को याद करते हुए डॉ रेखा सेठी जी से अपना अभिमत प्रकट करने को कहा तो डॉ सेठी ने बताया कि जब भीष्म जी ने वसंती और माधवी की रचना की थी तब स्त्रीवादी लेखन का इतना हल्ला नहीं था लेकिन फिर भी माधवी में स्त्री के अधिकार, अस्मिता, सौन्दर्यबोध और स्त्री का स्वायत्त को महसूस किया जा सकता है। 


  ऋचा जैन जी का ये कहना कि “डॉ रेखा सेठी जी और प्रियदर्शन जी को सुनते हुए थोड़े समय में ही श्रोता ‘इम्पावर्ड’ महसूस करने लगता है,” सौ प्रतिशत सार्थक और सही लगा। कुल मिलाकर भीष्म साहनी जी के रचना संसार पर डॉ सेठी जी और प्रियदर्शन जी की जानकारी से भरी सुन्दर और सार्थक बातचीत ने श्रोताओं को खूब आकर्षित किया, जिनकी बहुत सी शंकाओं का समाधान भी कुशल वक्ताओं ने बख़ूबी किया।  


  श्रोताओं में विश्व भर के लेखक और विचारक सम्मिलित हुए, जिनमें प्रमुख हैं: प्रो टोमियो मिज़ोकामी, डॉ लुदमिला खोखोलवा, अनूप भार्गव, डॉ मनोज मोक्षेन्द्र, डॉ अरुण अजितसरिया, डॉ जय शंकर यादव, डॉ शैलजा सक्सेना, डॉ० वरुण कुमार, डॉ फ़िरोज़ ख़ान, विजय नागरकर, प्रवीर भारती, गाथा सक्सेना, विवेक मणि, तितिक्षा शाह, जय वर्मा, अरुण सब्बरवाल, शन्नो अग्रवाल, रेनू यादव, एच. मालीस्वरी बाई, महादेव कोलूर, दीक्षा गुप्ता, आस्था देव, दुर्गा प्रसाद, क्षमा पांडे, इत्यादि।  


प्रस्तुति: कल्पना मनोरमा,  पुरस्कृत अध्यापिका एवं स्वतंत्र लेखिका, जिनकी साहित्य, संगीत और भ्रमण में रूचि है। kalpanamanorama@gmail.com

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