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श्री राजेन्द्रसूरि गुरुपद आराधना का पारणा हुआ,आचार्य श्री ऋषभचन्द्रसूरि म.सा. की तीसरी मासिक पुण्यतिथि मनायी,पुण्य और भाव हो तभी दीक्षा संभव: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

 

  राजगढ़ (धार) । त्रिदिवसीय आराधना के पारणा अवसर पर हम दादा गुरुदेव के जीवन चरित्र का श्रवण कर रहे है । सोना जैसे-जैसे अग्नि में जाता है उसमें निखार आता है । दादा गुरुदेव ने अपने गृहस्थ जीवन में ही साधना प्रारम्भ कर दी थी । त्रिस्तुतिक परम्परा में जब भी कोई मुनि दीक्षा लेता है उनको ‘‘विजय‘‘ गौत्र से जानते है । आचार्यश्री के नाम के आगे विजय शब्द लगता है और मुनि के नाम के साथ विजय शब्द का उल्लेख आता है । वटवृक्ष के नीचे दीक्षा इस लिये दी जाती है कि वह मुनिभगवन्त या साध्वीवृंद साधना आराधना करके वटवृक्ष की तरह जिनशासन प्रभावना करके जिनशासन के नाम में अभिवृद्धि करें । उक्त बात गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने राजेन्द्र भवन में कही । आपने बतलाया कि मेरी स्वयं की दीक्षा हेतु प्रेरणा प्रदान करने वाले मुनिराज श्री जयशेखरविजयजी म.सा. थे और उन्होंने ही मुझे मुनिश्री ऋषभचन्द्रविजयजी म.सा. तक पहुंचाया था । लगभग एक से ढेड वर्ष तक मुझे दीक्षा हेतु इंतजार करना पड़ा । पुण्य हो, भाव हो तभी दीक्षा होती है । तिथी के हिसाब से आज आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. को देवलोकगमन हुये तीन माह व्यतीत हो चूके है आज उनकी तीसरी मासिक पुण्यतिथि है । उन्होंने मुझे सारे संस्कार देकर परिपक्व बनाया । बड़ी दीक्षा के लिये पंच प्रतिक्रमण, दशवैकालिक के चार अध्ययन एवं गौचरी के 42 दोष की जानकारी दीक्षित होने वाले साधु साध्वी को होना आवश्यक है । दादा गुरुदेव की बड़ी दीक्षा वि. संवत् 1909 में हुई थी । पांच वर्षो वे न्याय, व्याकरण आदि में निपूर्ण होकर गुरु ज्ञान गुण के दरिया बन चूके थे । वि.सं. 1924 आहोर नगर में मुनि श्री रत्नराजविजयजी म.सा. को आचार्य पदवीं प्रदान की गयी और वे आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. बने । यही से उनके जीवन में क्रांतिकारी विचारधारा प्रारम्भ हो गयी और वे मालवांचल में पधारकर जावरा नगर में छड़ी, पालकी आदि का त्याग करके क्रियोद्धार किया । प्रवचन माला में मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा. भी उपस्थित रहे । शुक्रवार से पर्युषण महापर्व प्रारम्भ हो रहे है मेरी समाजजनों से यह प्रेरणा है कि महिलाऐं आठ दिनों तक किसी भी प्रकार की सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री का उपयोग नहीं करें । आठांे दिनों तक सादगी पूर्ण जीवन जिये । श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में आचार्यदेव श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की तीसरी मासिक पुण्यतिथि के अवसर पर मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा. आदि ठाणा की निश्रा में तीर्थ के मेनेजिंग ट्रस्टी सुजानमल सेठ, महाप्रबंधक अर्जुनप्रसाद मेहता, अरविंद जैन, आनन्द सालेचा आदि की उपस्थिति में गुरुप्रसादी के रुप में फल वितरण किया गया ।

आज गुरुवार को दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की त्रिदिवसीय आराधना की पूर्णाहुति पर पारणे के लाभार्थी श्री कांतिलालजी सराफ परिवार राजगढ़ का बहुमान राजगढ़ श्रीसंघ की और से पुखराजजी मेहता परिवार द्वारा किया गया ।

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