राजगढ़ (धार)। आज रविवार को गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. की पावनतम निश्रा में राजेन्द्र भवन के पास मंदिर परिसर में श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति में श्री पार्श्वनाथ जिन मंदिर के नवीन निर्माण हेतु शिला पूजन का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ । इस कार्यक्रम में नवग्रह पाटला, अष्टमंगल और दशदिग्पाल पूजन के पश्चात् विभिन्न दिशाआें में स्थापित की जाने वाली शिलाओं के साथ मुख्य शिला का पूजन राजगढ़ श्रीसंघ के श्री पुराणी परिवार द्वारा किया गया । उक्त श्री पार्श्वनाथ जिन मंदिर के नवीन निर्माण का त्रिस्तुतिक जैन संघ ने पुराणी परिवार को शुभाज्ञा प्रदान की गयी है । शिलापूजन का विधि विधान हेमन्त वेदमुथा विधिकारक द्वारा किया गया ।
नवकार आराधना के द्वितीय दिन मुनिश्री ने कहा कि नवकार महामंत्र के दूसरे पायदान पर नमो सिद्धाणं पद आता है कि हम संसार में रहे सभी सिद्ध परमात्मा को नमन करते है । इस पद के आठ गुण है व इसका वर्ण लाल है । नवकार को समझने के लिये हमारा ह्रदय कोमल होना चाहिये हमारी आत्मा पर भव-भव से लगे हुये रोगों को यह महामंत्र मिटाता है और कोई नयी बिमारी उत्पन्न नहीं होने देता है । यदि एकाग्रता के साथ इसका ध्यान किया जाए तो यह महामंत्र देवताओं को भी हिलाने की ताकत रखता है । एक नवकार मंत्र के जाप से 500 सागरोपम तक के पापों का नाश हो जाता है । उक्त बात गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने राजेन्द्र भवन में कही । आपने कहा कि राजगढ़ श्रीसंघ में आज श्री पार्श्वनाथ नूतन जिन मंदिर हेतु शिला पूजन हुआ है और यह मंदिर शीघ्र ही बने ऐसा संकल्प लाभार्थी परिवार का होना चाहिये । मंदिर बनाने में यदि लाभार्थी परिवार का मजबूत संकल्प हो तो मंदिर दो माह में बन सकता है । शत्रुंजय तीर्थ की यात्रा के दौरान उदयन महामंत्री ने प्रभु के समक्ष प्रतिदिन एकासना, भूमि संथारा और चौथे व्रत की तीन प्रतिज्ञा जिन मंदिर निर्माण तक के लिये ली थी । वह प्रतिज्ञा युद्ध में जख्मी होने के कारण पुरी नही कर पाये वो प्रतिज्ञा उनके पुत्र दोनों ने पूरे करने का अपने पिता को वचन दिया ।
नवकार महामंत्र के द्वितीय दिन एकासने का लाभ श्रीमती मांगुबेन फुलचंदजी अम्बोर परिवार की और से लिया गया । राजगढ़ श्रीसंघ में मुनिश्री की प्रेरणा से नियमित प्रवचन वाणी का श्रवण कर श्रीमती पिंकी सुमितजी गादिया राजगढ़ ने अपनी आत्मा के कल्याण की भावना से महामृत्युंजय तप प्रारम्भ किया था, आज उनका 24 वां उपवास है ।