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मोह के वशीभूत जीव संसार में भटकता है : मुनि पीयूषचन्द्रविजय

 


 राजगढ़ (धार) । संसार में जीव मोह माया के जाल में फंस कर उलझ जाता है । व्यक्ति मोह के चलते ना जाने कितने गलत निर्णय लेकर जीवन को बर्बाद करने में लगा रहता है । अंहकार, क्रोध, मान माया लोभ ये सब कषाय मानव के मस्तिष्क को शून्य बना देते है । उसे वास्तविकता से परिचित नहीं होने देते है । व्यक्ति सच का सामना नहीं कर पाता है और जब सच का सामना होता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है । व्यक्ति मान सम्मान पाने के लिये काफी प्रयास करता रहता है और उसकी प्राप्ति के लिये स्वयं को पतन की ओर धकेल देता है । इंसान हमेशा क्रोध की अग्नि में गलत निर्णय ही लेता है और एक गलत निर्णय उसके जीवन की दशा और दिशा दोनों ही बदलकर रख देता है । क्रोध के आवेश में इंसान अपना भला बुरा क्या होगा यह नहीं सोच पाता है । उसी गलत निर्णय के कारण जो नुकसान होता है उसकी भरपाई उम्र भर नहीं कर पाता । मोह के वशीभूत जीव संसार की भवभ्रमणा में भटकता रहता है । धन कमाने के चक्कर में अपनी सेहत का ख्याल नहीं रख पाता है ।      

 उक्त बात गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने कही । आपने बतलाया कि 84 लाख जीवयोनियों में भटकने के बाद हमें मानव का जन्म मिला है और इस भ्रमणा से मुक्ति के लिये ज्ञानियों ने धर्म के नियमों का पालन करके आत्मा के कल्याण का मार्ग बताया है । इंसान अपनी जिव्हा के स्वाद के लिये जमीकंद का उपयोग करता है साथ ही रात्रि भोजन करके स्वयं को नरक की ओर ले जाता है । शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि नरक के द्वार से हमें बचना है तो रात्रि भोजन व जमीकंद का त्याग करते हुये हमेशा जयणा के साथ जीना है तभी हमारी आत्मा का कल्याण संभव हो पायेगा । ज्ञानियों ने कहा कि हमे जो मानव जन्म मिला है उसमें नियमित सामायिक, प्रतिक्रमण व नियमों का पालन करते हुये जप तप करते हुये आत्मा के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते रहना चाहिये ।

राजगढ़ श्रीसंघ में 9 अगस्त 2021 सोमवार को श्री गौतमस्वामीजी के खीर एकासने का आयोजन श्री अनिलकुमार मनोहरलालजी खजांची परिवार की ओर से रखा गया है । नमस्कार महामंत्र की आराधना मुनिश्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. की निश्रा में 14 अगस्त से 22 अगस्त तक श्रीसंघ में करवायी जावेगी ।

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