झाबुआ: श्री ऋषभदेव बावन जिनालय पौषधशाला में गुरु समर्पण चातुर्मास के अंतर्गत प्रतिदिन धर्म की गंगा प्रवाहित हो रही है। पूज्य जैनाचार्य श्री ऋषभचंद्र सूरीश्वरजी म.सा.के शिष्य पूज्य मुनिराज श्री रजतचंद्र विजयजी म.सा.ने धर्मसभा को सम्बोधित कर कहा कि आज का मानव स्वार्थी और चपल बन गया है स्वयं के लिए तो फुल चाहता है दूसरों के लिए कांटे । स्वयं के लिए स्वर्ग व दूसरों के लिए नरक की कामना करता है। स्वयं के लिए अच्छा व औरों के लिए बुरा। खुद सुख चाहता है व अन्यो के लिए दुख वी इच्छा रखता है। ऐसे व्यक्ति जो दूसरों के लिए गड्डा खोदता है स्वयं ही उसमें गीर जाता है। इस संदर्भ में मुनिश्री ने सटीक उदाहरण भी सुनाया। मुनि श्री सिंदूर प्रकर ग्रंथ के आधार पर प्रवचन देते हुए बताते हैं मनुष्य जीवन दुर्लभ व मूल्यवान है। आज दूसरे क्रम का दृष्टांत देते हुए कहा की एक बार जुए में हारा हुआ खोया हुआ धन पुन: पाना मुश्किल है उसी तरह से मानव जीवन भी पुनः मिलना मुश्किल है। धर्म निष्ट व्यक्ति मधुर व्यवहार एवं मिठी वाणी बोलता है। व्यक्ति एक-एक पैसा बचाता है फालतू खर्चे नहीं करता है ये सावधानी तो रखता है किन्तु मूल्यवान समय व्यर्थ गवाता है। मुनिश्री रजतचंद्र विजयजी म.सा. ने जिनवाणी के महत्व को समझाते हुए कहा कि एक वाक्य भी सुज्ञ व्यक्ति को जगा देता है इस विषय पर नमि राजर्षि का प्रेरणास्पद प्रसंग सुनाया। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मुनिश्री को सुनने पहुंच रहे हैं। मुनिश्री जीतचंद्र विजयजी ने सुंदर गीत गाया।
लब्धि तप व मासक्षमण की सुंदर तपस्याएं आराधक कर रहे हैं। गौतम स्वामीजी की आरती सुभाषजी कोठारी, प्रभावना कमलेशजी कोठारी एवं संचालन यशवंतजी भंडारी ने किया।