राजगढ़ ( धार ) म . प्र .। भगवान श्री हरि की कर्मभूमि जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया । हरियाणा के जिला भिवानी में ग्राम बौन्दकलां है वहाँ के एक प्रतिष्ठित पं . रूड़मल गौड़ के नाम से विख्यात उच्च कुल ( जिनके अपनी स्वयं की भूमि पर स्वयं के अर्थ से बनाये गये शिवालय , कुएं व तालाब आज भी ग्राम में स्थापित है । तथा जिन्होंने अकाल के समय सदाव्रत ( सभी आओ - सभी पाओ ) जैसे बहुत से धर्म कार्यों का आयोजन किया । इसी कुल में जन्मे पं . कांशीराम गौड़ इनकी धर्मपत्नी का नाम था पतोरी बाई ।. इन्हीं भाग्यवान दम्पत्ति के यहाँ संवत् 1972 मिती भाद्रपद विदी 30 ( अमावस्या ) को जन्म हुआ । श्री गुरू श्री मुरलीधरजी महाराज की बात्य काल से ही धर्म के प्रति गहरी रूचि रही । पूज्य गुरूदेव ने हरियाणा के जिला भिवानी तथा बनारस ( काशी ) में वेद वेदांग व ज्योतिष का अध्ययन किया तथा कामरूप देश ( आसाम ) में आपने तान्त्रिक शिक्षा ग्रहण कर सिद्धियाँ प्राप्त की । मां कामक्षा देवी कालिकाजी आपकी इष्ट देवी थी । उसी कारण आपके द्वारा माँ कामक्षा देवी कालिकाजी का सिद्ध मंदिर माताजी मन्दिर बावड़ी वाले मन्दिर के नाम से राजगढ़ ( धार ) पर स्थापित किया था । संवत् 2005 से 2036 तक इनका कुटुम्ब वालों को पता नहीं चला । इस समय इनकी आयु 33 वर्ष थी । कामरूप देश से आकर गुरू महाराजने राजगद जिला धार म . प्र . में जा कर एक ब्रह्मचारी वेष धारण कर अपने जीवन को गरीब , मजदूर , तथा समाज की सेवा में समर्पित कर दिया । चार वर्ष तक अखण्ड तपस्या ( जिसमें अन्न त्याग दिया केवल एक समय थोड़ा दूध लेकर निर्वाह किया ) में लीन रहकर भय से ग्रस्त भूत - प्रेत के डरावने स्थान को पवित्र मन्दिरों के रूप में प्रतिस्थापित कर राजगढ़ कि धर्म प्राण जनता को देवी माँ जगदम्बे , शिवालय , श्री गणपति , श्री राधाकृष्ण , श्री सन्तोषी माता , श्री भैरवनाथ श्री बजरंग बली , का भव्य मन्दिर प्रतिष्ठित करवाकर हजारों - हजार जन समुदाय को धर्ममय वातावरण से जोड़कर भक्ति साधना का नया मार्ग परिलक्षित किया ।अम्बिका माता के प्रांगण में अब हर वर्ष नवरात्रि को हजारों भक्त गरबा नृत्य का आनन्द लेकर भाव भक्ति मय हो जाते हैं तथा इसी श्री माताजी मन्दिर से नाम से पिछले 22 वर्षों से 15 दिवसीय एक भव्य मेला लगता है । जिसमें दूर दूर से व्यापारी आते है तथा उच्च किस्म के मवेशियों कि प्रदर्शनी लगती है । हजारों भक्तो में भक्ति , प्रेम , सेवा , तथा मानवता का दीप प्रज्जवलित करने वाले श्रद्धेय गुरूदेव श्री श्री 1008 श्री मुरलीधर महाराज को अपनी महायात्रा का 3 माह पूर्व ही पूर्वाभास हो गया था । इसलिए आपने अपने सभी भक्तो को पूर्व में ही अवगत कर दिया था । पोष सुदी सप्तमी को अपने आपको ईश्वराधीन कर पूज्य गुरूदेव नेश्री सवंत 2037 पोष सुदी सप्तमी सोमवार दि . 12 जनवरी 1981 को अपने आपको ब्रह्मलीन कर पूज्य गुरूदेव ने अमिट याद बन कर अपनी नश्वर देह का परित्याग किया । आप मनोहर व तेजस्वी मूर्ति रूप में आज इसी स्थान पर विराजमान है । तथा अब अपने भक्तों को अदृश्य शक्ति द्वारा धर्ममय बनाए हुवे है । तथा मन्सा महादेव कि व्रत कथा का यह चतुर्थ संस्करण गुरू महाराज कि ही तपस्या , साधना , परोपकार का फल है । आज भी आपका सुक्ष्म सानिध्य प्राप्त होता है । गुरू महाराज ने अपने भक्तों को यह व्रत बताया जिसके परिणाम स्वरूप भक्तों कि मन इच्छाओं कि पूर्ति होती है । आज भी इस व्रत को विधि पूर्वक श्री माताजी मन्दिर राजगढ़ ( जहाँ भगवान शिव परिवार सहित विराजमान है । ) में आकर कथा श्रवण करते है ।अब इस स्थान पर स्वामी श्री मुरारीलालजी गोड़ ( भारद्वाज ) मानव सेवा व भक्ति में लीन है । जो कि आयुर्वेद ओषधियों द्वारा सभी वर्गकी निःशुल्क सेवा कर रहे हैं । यहाँ आने वाले पुराने तथा अलग अलग बिमारी से ग्रस्त रोगी गुरू महाराज श्री श्री 1008 श्री मुरलीधरजी तान्त्रिकाचार्य व आपके द्वारा सिद्ध मन्दिर कि महिमा से रोग मुक्त होते है । नाम लेने से गुरू का बहुत तरे है और भी तर जाएगें निष्काम निस्वार्थ भाव से मानव सेवा जो करते है जगत में उसको प्रभु स्वयं मिल जाएगें परम पूज्य गुरू महाराज को बारंबार नमन् । लेखक - पुरूषोत्तम गौड़ ( भारद्वाज )
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International Day of Families 2021: श्री श्री 1008 श्री गुरू महाराज मुरलीधरजी महाराज की संक्षिप्त जीवनी अपने जन्म स्थान बौन्द कलां ( हरियाणा प्रान्त ) से पांच धाम एक मुकाम बावड़ी राजगढ़ का सफर
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