राजगढ़ (धार) म.प्र.। गुरु की प्रतिमा भले ही मिट्टी की हो यदि शिष्य के ह्रदय में विराजित हो जाये तो शिष्य की आत्मा का कल्याण हो जाता है । भक्त गुरु के मुख मण्डल का दर्शन करता है पर पूजा तो गुरु चरणों की ही की जाती है क्योंकि गुरु के चरण अंगुठे में उर्जा व चरण अंगुठे में शक्ति विद्यमान होती है । गुरु की दृष्टि मात्र से ही भक्तों के संकटों का निवारण हो जाता है । उक्त बात गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने गुरु पूर्णिमा पर प्रवचन देते हुये कही । आपने कहा कि श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ के मालिक तो दादा गुरुदेव है हम तो यहां पर मात्र पहरेदार है । गुरु की महिमा अनन्त है उनका महिमा मण्डन सामान्य व्यक्ति की शक्ति से परे है । गुरु का महत्व अनूठा होता है । गुरु आज्ञा में संशय की कोई गुंजाईश नहीं रहती है, इसी कारण आज मैं इस मुकाम पर हूं । जो जीव जन्म मृत्यु के भवसागर से मुक्त होना चाहता है, वही जीव गुरु की शरण स्वीकार करता हैं । मेरे जीवन में भी मुझे पाट परम्परा के पंचम पट्टधर आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की शरण आत्मा के कल्याण के लिये प्राप्त हुई । यदि पाचवें पट्टधर आचार्यश्री का सानिध्य मुझे नहीं मिला होता तो मैं जीवन में श्री मोहनखेड़ा तीर्थ की विकास यात्रा का सहभागी नहीं बन पाता । जो व्यक्ति आत्मोन्मुखी रहता है वही हमेशा गुरु के समीप रहता है और गुरु से दूर रहकर भी वह उनका सानिध्य प्राप्त कर लेता है । जिस प्रकार गुरु द्रोणाचार्य से दूर रहकर भी एकलव्य ने एकाग्रता के कारण धर्नुविद्या सीखकर अपने गुरु का सानिध्य पाया ।
इस अवसर पर कार्यदक्ष मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने गुरु महिमा का वर्णन करते हुये कहा कि जैन धर्म के साथ-साथ विभिन्न धर्मो के लोग भी गुरु पूर्णिमा का महोत्सव मनाते है । जिसके जीवन में गुरु नहीं होता है उनका जीवन शुरु ही नहीं होता है । गुरु शिष्य के जीवन की खोट को ज्ञान की चोट से बाहर करके शिष्य का जीवन संवार देते है और सच्चे गुरु वही होते है जो शिष्य के चित्त पर विशेष रुप से ध्यान देते है ।
कार्यक्रम में आचार्यश्री के सम्मुख प्रतापगढ़ निवासी शुभम चण्डालिया परिवार की ओर से गहुंली की गयी । गुरु चरण पादुका व पाट पर विराजित आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की चरण पूजा बामनिया निवासी श्री श्रेणिक जी लुणावत परिवार इन्दौर ने की । कार्यक्रम के अन्त में प्रभु श्री पाश्र्वनाथ भगवान व दादा गुरुदेव की आरती श्री रणजीतमल घेवरचंदजी वजावत परिवार विशाखापट्टनम् वालों की ओर से उतारी गई ।