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Image Source-dprmp |
धार जिले के सरदारपुर तहसील के
ग्राम राजौद के किसान दिनेश बग्गड़ के पिता शुरू से सब्जी व खाद्यान्न की खेती
करते आ रहे थे। पुराने जमाने से परम्परागत खेती करने के कारण उत्पादन अधिक नही हो
पाता था। यहीं परिणाम है कि उनकी माली हालत कमजोर थी। वे 5 भाई है और संयुक्त परिवार में रहते थे। बड़ा परिवार
होने के कारण आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता था। अब सभी भाई अलग-अलग रहते
है। वह कक्षा 12 वीं तक उज्जैन में पढ़ाई की। वह शुरू से ही कृषि
तथा बागवानी में रूचि रखते है। पढ़ाई छोड़कर खेती में लग गए। सभी भाई अलग-अलग होने
के बावजूद भी वापस में मिलजूल कर रहते है और सभी बाते छोड़कर खेती को किस तरह से
और बेहतर ढ़ंग से किया जाएं। इसके लिए सदैव चिंतन व विचार-विमर्ष किया करते है।
भाईयों के बीच आपस में विचार-विमर्ष करने के कारण खेती करने के अच्छे परिणाम सामने
आएं है।
इस कृषक ने 8 बीघा कृषि भूमि है और 2 कुएं तथा 2 ट्यूबवेल और एक 80 लाख लीटर पानी की क्षमता का पोण्डलेण्ड तालाब है। इस कृषि भूमि
में से 5 बीघा क्षेत्र में वर्ष 2012 में अमरूद के 1250 पौधे लगाएं गए है। यह पौधे वीएनआर बीही-1 प्रजाति के है और छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर से लाकर
लगाए गएं है। अमरूद की यह प्रजाति 2 वर्ष में फल देना शुरू कर देती है। अब तक 5 फसल ले चुके है। यह छटी फसल है। अमरूद फसल की
सिंचाई के लिए शुरू से ही ड्रीप लाईन बिछाई गई है। जैसे-जैसे यह फसल बड़ी होती
जाती है, वैसे-वैसे ड्रीप की लाईन भी बढ़ाई जाती है, ताकि अमरूद के पौधों को आवश्यकतानुसार पानी उचित
मात्रा में उपलब्ध होता रहे। अमरूद की फसल में सिंचाई के दौरान ड्रीप से
वेन्च्चूरी के माध्यम से घुलनशील खाद दिया जाता है। इस कृषक का कहना है कि मैंने
उद्यानिकी विभाग के माध्यम से ड्रीप सिंचाई योजना के अन्तर्गत वर्ष 2014 में एक हैक्टेयर में ड्रीप लाईन बिछाई थी। इसकी
लागत 70 हजार रूपये थी। जिसमें से उन्होने 35 हजार रूपये स्वयं खर्च किए थे और शासन द्वारा 35 हजार रूपये अर्थात 50 प्रतिशत का अनुदान लाभ दिया गया था। अमरूद के फलों को सुरक्षा
की दृष्टि से बांधना पड़ता है, जिससे फल की क्वालिटी बहुत अच्छी रहती है।
एक वर्ष में यूनिया उवर्रक 50 किलोग्राम, पोटाष 100 किलोग्राम, डी.ए.पी. 80 किलोग्राम खर्च होता है। डी.ए.पी. उवर्रक को गड्डा
खोदकर डाला जाता है। यूरिया और पोटाष को घोल कर ड्रीप के माध्यम से थोड़ा-थोड़ा
करके समय-समय पर डाला जाता है। अमरूद फसल में मुख्य रूप से रस चूसक कीट व इल्ली के
प्रकोप से बचाने के लिए एकटारा व फलोरोपायरीफास व एसीफेट दवाई का छिड़काव 2 से 3 बार किया जाता है। यह छिड़काव 20 दिन के अन्तराल में किया जाता है। इस फसल में फफूंद की रोकथाम
के लिए बावीस्टींन व मेनकोजेब दवाई का छिड़काव किया जाता है।
अमरूद के फल को
सुरक्षित रखने के लिए तीन स्तर पर बांधा जाता है। फसल की क्वालिटी में सुधार लाने
व सुदूर बाजार में बेचने में सुविधा होती है। जिससे फल खराब नही होता है और उसका
भाव भी अच्छा से अच्छा मिलता है। अमरूद को फोमनेट से बांधा जाता है। यह फोमनेट
राजकोट तथा बडौदा से क्रय कर उपयोग किया जाता है। फल को 20 किलोग्राम के बॉक्स में पैक करके विक्रय के
लिए जिले से बाहर दिल्ली, बम्बई, बैंगलोर, हैदराबाद, अहमदाबाद, जयपुर, इन्दौर आदि स्थानों पर विक्रय किया जाता
है। अमरूद का बाजार भाव लगभग 65 रूपये से 200 रूपये
प्रति किलो मिल जाता है। इस फसल की शुरूआत में प्रतिदिन औसतन 2 श्रमिक लगते है। फल बंधाई के दौरान करीब 15 श्रमिक प्रति बीघा लगाएं जाते है। अमरूद का
यह पौधा लगभग 50 किलोग्राम
फल देता है। एक बीघे में 250 पौधे लगाए जाते है। समय-समय पर कृषि वैज्ञानिकों से आवश्यकता पड़ने पर
आवश्यक सलाह ली जाती है। इस किसान को वर्ष 2013 में आत्मा योजना के तहत प्रधानमंत्री द्वारा जिले का सर्वश्रेष्ठ किसान का 51 हजार रूपये का पुरूस्कार प्रदाय किया गया
था। इस किसान का कहना है कि वह इस फसल से प्रति वर्ष शुद्ध रूप से 20 लाख रूपये की आय अर्जित कर लेते है। इस
किसान से कई किसानों ने प्रेरणा प्राप्त कर कृषि के क्षेत्र में आगे बढ़े हैं। वह
मात्र अमरूद की फसल लेते है और खाद्यान्न घर के उपयोग के लिए बाजार से प्रतिवर्ष
क्रय करते है। इस खेती से उनका पूरा परिवार खुश है।