शिक्षिका से कवयित्री तक का सफ़र, जहाँ जीवन के अनुभव बन गए शब्द और भावनाएँ बनीं कविता
बिहार की मिट्टी सदा से साहित्य, संवेदना और सशक्त भावनाओं की जननी रही है। इसी मिट्टी से उपजीं स्वाति सिंह, जो डेहरी ऑन सोन, जिला रोहतास, बिहार की निवासी हैं, आज अपनी काव्य पुस्तक “गूंज: एहसासों की अनकही पुकार” के माध्यम से हिंदी साहित्य में एक संवेदनशील और सशक्त स्वर के रूप में उभरकर सामने आई हैं। “गूंज” उसी साहित्यिक परंपरा की आधुनिक अभिव्यक्ति है, जहाँ शब्द केवल लिखे नहीं जाते, बल्कि जिए जाते हैं। बिहार की संस्कृति में भावनाओं को गहराई से महसूस करने की परंपरा रही है लोकगीतों की पीड़ा, मैथिली-भोजपुरी की मिठास और जीवन के संघर्षों से उपजी सच्चाई इन सभी का प्रभाव इस काव्य-संग्रह में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
स्वाति सिंह वर्तमान में विद्यालय में शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं। शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए भी उन्होंने लेखन को केवल शौक नहीं, बल्कि जीवन के अनुभवों को अभिव्यक्त करने का माध्यम बनाया। उनकी शैक्षणिक योग्यता एम.कॉम. और बी.एड. है, जिसने उनके विचारों को गहराई और लेखनी को परिपक्वता प्रदान की।
लेखन की शुरुआत के बारे में बात करें तो स्वाति सिंह का साहित्य से जुड़ाव जीवन के वास्तविक मूल्यों को समझने और उन्हें महसूस करने की प्रक्रिया से ही शुरू हुआ। विद्यार्थियों को पढ़ाते हुए, समाज को नज़दीक से देखते हुए और जीवन के सुख-दुख को आत्मसात करते हुए उन्होंने अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालना शुरू किया। यही अनुभव धीरे-धीरे उनकी कविताओं की आत्मा बन गए। “गूंज” की कविताएँ प्यार, दर्द, यादों, टूटन और उम्मीद के उन रंगों को उकेरती हैं, जो बिहार के आम जीवन से कहीं न कहीं जुड़े प्रतीत होते हैं। यहाँ संवेदनाएँ बनावटी नहीं, बल्कि वास्तविक अनुभवों से उपजी हुई हैं ठीक वैसे ही जैसे बिहार का जीवन, सादा लेकिन बेहद गहरा।
स्वाति सिंह की लेखनी में बिहार की सहजता, संघर्षशीलता और भावनात्मक सच्चाई साफ झलकती है। यह पुस्तक उन पाठकों के लिए है जो शोर में नहीं, खामोशी में भी अर्थ ढूँढते हैं; जो जीवन को केवल देखते नहीं, बल्कि गहराई से महसूस करते हैं। “गूंज: एहसासों की अनकही पुकार” केवल एक काव्य-संग्रह नहीं, बल्कि डेहरी ऑन सोन की मिट्टी से निकली वह आवाज़ है, जो आज हर संवेदनशील दिल में अपनी गूंज छोड़ रही है।



