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कवयित्री यशोदा कुमारी द्वारा अजन्मी बच्ची की आवाज़ को शब्दों में ढालकर समाज को झकझोरती भावनात्मक कविता

 

एक बेटी की आवाज़ – यशोदा की मार्मिक कविता

एक बेटी की आवाज़ - समाज के लिए गूँजती पुकार

आज के समाज में जहाँ बेटियों के जन्म को अभी भी बोझ समझा जाता है, वहीं कवयित्री यशोदा कुमारी अपनी भावनाओं को एक अजन्मी बेटी की आवाज़ के रूप में प्रस्तुत करती हैं। उनकी सोच समाज के उन कठोर पहलुओं पर रोशनी डालती है जहाँ कन्या भ्रूण हत्या जैसी संवेदनहीन घटनाएँ आज भी जारी हैं। यशोदा यह संदेश देना चाहती हैं कि हर बेटी एक नई उम्मीद है, एक नया सपना है। उनके जन्म से पहले ही उनका अस्तित्व छीन लेना मानवता के विरुद्ध है। यह कविता एक माँ के निर्णय को चुनौती देती है और उसे यह एहसास कराती है कि बेटी भी उतना ही प्यार, सम्मान और जीवन की हक़दार है जितना बेटा।

यह रचना सिर्फ़ शब्दों का मेल नहीं, बल्कि एक मासूम जीवन की करुण पुकार है। यशोदा की भावनाएँ हर उस परिवार से सवाल पूछती हैं जो बेटों पर खुशियाँ मनाते हैं और बेटियों के आने पर मौन हो जाते हैं। यह कविता समाज को सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर क्यों बेटा मान-सम्मान और गौरव का प्रतीक है और बेटी अब भी सिर्फ जिम्मेदारी का प्रतीक मानी जाती है? उनकी यह कविता आज कई मंचों पर लोगों को जागरूक करने का माध्यम बन रही है। हर माँ तक यह संदेश पहुँचना चाहिए कि बेटी भी आशीर्वाद है, बोझ नहीं। आइए पढ़ते हैं यह दिल को छू लेने वाली कविता:

गर्भ समापन होगा कल तेरा माँ कन्या भ्रूण यह बोल उठी, मुझे जीना है, माँ. मुझे जीना है, माँ मुझे जीने दो माँ तू मुझे खुद से अलग न कर बाहर आने दो माँ उन लम्हों को छू लेने दो माँ जिसे मैंने महसूस किया जीने दो माँ, मुझे जीने दो जीने दो माँ, मुझे जीने दो.. दर्द भरी आहों से पूछू तुझसे एक सवाल? सब बेटे आने पर ख़ुशी मनाते क्यों????? मेरे आने पर रोते, क्यों, क्यों, क्यों......? माँ जीना है माँ, मुझे जीने दो जीना है माँ, मुझे जीने दो!
~ यशोदा कुमारी
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