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जयंती पर विशेष - अखंड भारत के निर्माता –सरदार वल्लभभाई पटेल




  भारत के इतिहास में सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम एकता, दृढ़ता और राष्ट्र निर्माण के प्रतीक के रूप में अमर है। वे न केवल स्वतंत्र भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री थे, बल्कि उन्होंने जिस दूरदर्शिता और संगठन कौशल से बिखरी रियासतों को एक सूत्र में पिरोया, वह कार्य उन्हें “अखंड भारत का निर्माता” बनाता है।

भारत की एकता के मसीहा

     सरदार पटेल देश की एकता और अखंडता के मसीहा माने जाते हैं। भारत के नवनिर्माण में उनका योगदान अनुपम है। बचपन से ही वे साहसी, निडर और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले थे। राष्ट्रीय एकता दिवस पर हम उनकी सेवाओं और योगदान को नमन करते हुए भारत की अखंडता के प्रति अपने संकल्प को दोहराते हैं। नई पीढ़ी के लिए यह आवश्यक है कि वह उनके जीवन, संघर्ष और योगदान को जाने।
     कम लोग जानते हैं कि सरदार पटेल के पिताश्री झबेरभाई झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में रहकर 1857 की क्रांति में लड़े थे। शायद वही देशभक्ति का बीज उनके भीतर भी अंकुरित हुआ। यदि सरदार पटेल की कूटनीति और नेतृत्व न होता, तो आज भारत एक शांतिपूर्ण और संगठित राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में नहीं होता।

भारतीय प्रशासनिक तंत्र के वास्तुकार

   आज भारत के प्रशासनिक ढांचे की जो नींव है, उसे मजबूत करने का श्रेय सरदार पटेल को जाता है। उन्होंने स्वतंत्र भारत की सिविल सेवा को दिशा दी। 21 अप्रैल 1947 को दिल्ली के मेटकाफ हाउस में भारतीय प्रशासनिक सेवा के पहले बैच को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था —

“अब आपका कर्तव्य है कि आप भारत के आम आदमी को अपना समझें।”

   सरदार पटेल ने यह महसूस किया कि अनुभवी और निष्ठावान सिविल सेवक ही देश की स्थिरता सुनिश्चित कर सकते हैं। उन्होंने आधुनिक भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) को राष्ट्र की रीढ़ के रूप में स्थापित किया। इसी कारण उन्हें ‘संरक्षक संत’ कहा गया।

भारत निर्माता के रूप में पटेल

      सरदार पटेल न केवल स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि वे आधुनिक भारत के निर्माता भी थे। उन्होंने कहा था —

“सामूहिक प्रयास से हम अपने देश को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकते हैं, जबकि एकता की कमी हमें नई विपत्तियों के सामने ला खड़ा करेगी।”

   अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद 562 देशी रियासतों को भारत में मिलाना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन पटेल ने अपने अद्वितीय नेतृत्व और कूटनीतिक कौशल से इसे संभव किया। हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जैसी जटिल रियासतों के मामलों को उन्होंने विवेकपूर्ण तरीके से सुलझाया।

    खेड़ा, बोरसद और बारडोली के किसानों के “नो टैक्स” आंदोलन का नेतृत्व करके उन्होंने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी। बारडोली आंदोलन के बाद ही उन्हें “सरदार” की उपाधि मिली।

  अगर सरदार पटेल न होते तो भारत आज दो हिस्सों में बँटा होता — एक लोकतांत्रिक और दूसरा रियासती। परंतु उन्होंने भारत को अखंड रूप दिया, जिससे स्वतंत्रता, समानता और न्याय की भावना देशभर में फैली।

सूझबूझ और दृढ़ निश्चय से हुआ भारत का एकीकरण

  स्वतंत्रता के बाद की अराजक स्थिति में सरदार पटेल ने असाधारण धैर्य, विवेक और निर्णायक शक्ति का परिचय दिया। उन्होंने एक जटिल राजनीतिक समस्या को बिना किसी बड़े संघर्ष के सुलझाया। भारत का संघीय स्वरूप उनके नेतृत्व की ऐतिहासिक उपलब्धि है। लॉर्ड माउंटबेटन ने भी भारत के एकीकरण को “स्वतंत्र भारत की पहली बड़ी सफलता” बताया था।

 पटेल व्यावहारिक सोच, यथार्थवाद और राष्ट्रभक्ति के अनूठे संगम थे।

हैदराबाद और जूनागढ़ का समाधान

   जब रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया गया, तब कई रियासतों ने स्वतंत्र रहने का सपना देखा। हैदराबाद के निजाम ने पाकिस्तान में शामिल होने की इच्छा जताई, लेकिन पटेल ने   “ऑपरेशन पोलो” के माध्यम से सितंबर 1948 में हैदराबाद का भारत में विलय सुनिश्चित किया।
इसी तरह, जूनागढ़ रियासत के पाकिस्तान में जाने की घोषणा को भी उन्होंने सधे हुए राजनीतिक कदमों से विफल किया।

सरदार पटेल — एक बहुआयामी व्यक्तित्व

   सरदार पटेल एक दूरदर्शी राजनेता, सशक्त प्रशासक, कुशल वार्ताकार और जनसेवक थे। उनका जीवन राष्ट्र समर्पण की मिसाल है। उन्होंने भारतीय जनमानस में यह विश्वास भरा कि “एकता में ही शक्ति है।”

  आज जब भारत प्रगति और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तब सरदार पटेल की नीतियाँ और उनके आदर्श और भी प्रासंगिक हो उठते हैं। उन्होंने जिस अखंड भारत का सपना देखा था, वह आज हमारे सामने साकार रूप में खड़ा है।


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