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नोटों की 'गड्डी' का काला बाजार! दीपावली पर बैंकों में किल्लत,दलालों के पास भरमार—आखिर क्यों देनी पड़ती है अतिरिक्त रकम?

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विशेष रिपोर्ट: अक्षय भंडारी, एडिटर, टाइम्स ऑफ मालवा

    टाइम्स ऑफ मालवा (डिजिटल डेस्क): देश के बैंकिंग सिस्टम और मुद्रा वितरण प्रणाली की पारदर्शिता पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लग गया है, खासकर दीपावली जैसे महत्वपूर्ण त्योहार के आस-पास। ₹10 से लेकर ₹500 तक के "फ्रेश/नई नोटों की गड्डी" प्राप्त करने के लिए आम नागरिकों को उनके अपने बैंकों के बजाय, बाजार में सक्रिय अनधिकृत बिचौलियों और दलालों के पास जाना पड़ रहा है। यह बिचौलिए इस 'सुविधा' के बदले खुलकर कमीशन वसूल रहे हैं, जिसने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के व्यवस्थित मुद्रा वितरण के दावों की पोल खोल दी है।

1. त्योहारी सीज़न में कालाबाजारी: बैंक में 'ना', बाजार में 'हाँ'

  दीपावली जैसे बड़े त्योहारों, शादी-विवाह या बड़े आयोजनों के दौरान स्वच्छ और नए नोटों की मांग कई गुना बढ़ जाती है, क्योंकि लोग इसे शुभ मानते हैं या उपहार में देते हैं।

  • बैंकों का जवाब: जब ग्राहक अपनी बैंक शाखाओं से नए नोटों के लिए संपर्क करते हैं, तो उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। अक्सर यह कहकर टाल दिया जाता है कि "गड्डी में नोट उपलब्ध नहीं हैं" या "सिर्फ खुले नोट ही दिए जा सकते हैं।"

  • दलालों की उपलब्धता: हैरान करने वाली बात यह है कि बैंक से इनकार सुनने के तुरंत बाद, ये ही फ्रेश नोटों की गड्डियाँ बिचौलियों के पास आसानी से उपलब्ध होती हैं।

   बाजार सूत्रों के अनुसार, यह कमीशन प्रति गड्डी ₹100 से लेकर ₹500 तक लिया जा रहा है, जो नोटों के मूल्यवर्ग और उनकी 'नई' स्थिति पर निर्भर करता है। यह काला कारोबार सीधे तौर पर आम जनता की जेब पर बोझ डाल रहा है।

2. सवाल RBI की निगरानी पर: फ्रेश गड्डियाँ कहाँ से आती हैं?

  सबसे गंभीर और जाँच का विषय यह है कि जब नोटों की छपाई, वितरण और निगरानी की पूरी जिम्मेदारी RBI और वाणिज्यिक बैंकों की है, तो इतनी बड़ी संख्या में ये फ्रेश गड्डियाँ अनधिकृत दलालों के हाथों में कैसे पहुँच जाती हैं?

  यह विसंगति स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि वितरण प्रणाली में कहीं न कहीं गंभीर खामी मौजूद है:

  • संभावित मिलीभगत: क्या यह संभव है कि बैंक के कैश काउंटर या करेंसी चेस्ट (मुद्रा भंडार) में तैनात कुछ कर्मचारियों की सांठगांठ बिचौलियों से है?

  • वितरण का डायवर्जन: क्या RBI के मुद्रा प्रबंधन और वितरण की प्रणाली में कोई ऐसा कमजोर बिंदु है, जिसका फायदा उठाकर नोटों को सीधे आम ग्राहकों तक पहुँचने से पहले ही 'डायवर्ट' कर दिया जाता है?

  • कमजोर शिकायत तंत्र: वर्तमान में, आम जनता के पास इस तरह की कमीशनखोरी की शिकायत करने और त्वरित कार्रवाई देखने के लिए एक प्रभावी और सुलभ तंत्र का अभाव है।

3. जनता का शोषण कब रुकेगा? RBI को कठोर कदम उठाने की आवश्यकता

  भारतीय रिज़र्व बैंक के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं कि नोटों का विनिमय या वितरण हमेशा बिना किसी अतिरिक्त शुल्क या कमीशन के होना चाहिए। कमीशन लेना और देना दोनों ही अनैतिक और गैर-कानूनी हैं।

  यह मामला केवल कुछ रुपयों के कमीशन का नहीं है, बल्कि देश की बैंकिंग प्रणाली में विश्वास का है। आम जनता के साथ हो रहे इस सीधे शोषण को रोकने के लिए, RBI को तत्काल सख्त ऑडिट, बैंक कर्मियों की संदिग्ध गतिविधियों की गहन जाँच, और दोषियों पर कठोरतम कार्रवाई सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

   टाइम्स ऑफ मालवा आशा करता है कि RBI इस गंभीर विषय का संज्ञान लेगा और एक ऐसा पारदर्शी वितरण तंत्र स्थापित करेगा, ताकि आम नागरिक को अपने ही देश की मुद्रा को 'गड्डी' के रूप में लेने के लिए बिचौलियों के हाथों शोषित न होना पड़े।


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