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पर्यावरण को बचाने के लिए आध्या (Aadhya Paul) की नई पहल, बनीं आशा की किरण


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कम उम्र में असाधारण कार्य करना केवल प्रतिभा की निशानी नहीं, बल्कि सामाजिक और वैश्विक चेतना का संकेतभी होता है।ऐसा ही एक विलक्षण उदाहरण हैं मुंबई की रहने वाली आध्या पॉल (Aadhya Paul) की, जिनकी सोच वैज्ञानिकदृष्टिकोण और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना उन्हें उनके समय से आगे खड़ा करती है। पर्यावरण संरक्षण औरनवाचार के क्षेत्र में उनका कार्य न केवल सराहनीय है, बल्कि आने वाले समय के लिए एक दिशा भी तय करता है।आध्या पर्यावरण संरक्षण के लिए एक प्रेरणादायक स्रोत के रूप में उभरी हैं। उनकी पहल और नवाचारों ने उन्हें इसक्षेत्र में आशा की किरण बना दिया है।

 

आध्या पॉल का सबसे प्रभावशाली योगदान उस समय सामने आया जब उन्होंने वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या कोसमझते हुए एक हाइड्रोजन-सौर ऊर्जा से चलने वाली हाइब्रिड टॉय कार का निर्माण किया।यह परियोजना किसीविज्ञान प्रदर्शनी की सामान्य प्रविष्टि नहीं थी, बल्कि यह एक व्यवहारिक और वैज्ञानिक समाधान था जो यह दर्शाताहै कि किस तरह एक बच्चा भी ऊर्जा संकट और प्रदूषण के मुद्दे पर गंभीर योगदान दे सकता है।इतना ही नहीं, इसनवाचार की गुणवत्ता और उपयोगिता को पहचानते हुए एक प्रमुख कंपनी ने इस टॉय कार को एक शैक्षणिक किट(साइंस DIY किट) के रूप में व्यावसायिकरूप से विकसित करने का निर्णय लिया, जो अपने आप में एक बड़ीउपलब्धि है।

 

पर्यावरणीय मुद्दों पर उनके काम की गहराई केवल तकनीकी सीमाओं तक सीमित नहीं है।उन्होंने "अनमासकिंगरियलिटी" नामक एक पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्होंने अपने साथियों के बीच किये गए सर्वे के आधार परपर्यावरणीय समस्याओं को उजागर किया है।इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें केवल समस्याओं की बातनहीं की गई है, बल्कि आध्या ने अपने स्वयं के नवाचारों और समाधानों को भी विस्तार से प्रस्तुत किया है।इससे यहपुस्तक एक चेतना फैलाने वाला माध्यम बन जाती है, खासकर युवा पीढ़ी के लिए।

 

इसके अलावा, फास्ट फैशन से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण और जल की बर्बादी को लेकर भी उन्होंने एक अत्यंतजागरूकता से भरा कार्य किया है।आमतौर पर कपड़ों में डाई गतिविधियों में उपयोग होने वाले रंग और केमिकलपर्यावरण के लिए नुकसानदायक होते हैं।लेकिन आध्या ने इसमें भी नवाचार करते हुए प्राकृतिक फूलों से तैयारकिया गया एक जैविक डाई (नेचुरल डाई) विकसित किया है, जो न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित है, बल्किइससे रंगे कपड़ों को बार-बार धोने की आवश्यकता भी नहीं होती। यह कार्य वस्त्र उद्योग और घरेलू उपभोक्ताओंदोनों के लिए एक स्थायी विकल्प प्रदान करता है।

 

आध्या का वैज्ञानिक दृष्टिकोण उनके शैक्षणिक प्रदर्शन में भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।उन्होंने विज्ञान भारतीऔर एनसीइआरटी  द्वारा आयोजित विद्यार्थी विज्ञान मंथन (वीवीएम) में लगातार दो वर्षों (2024 और 2025) मेंहिमालयन ज़ोन से राष्ट्रीय रैंक 1 हासिल किया है। इसके साथ ही उन्हें भास्कर छात्रवृत्ति से भी सम्मानित किया गयाहै, जो देश के होनहार वैज्ञानिक विद्यार्थियों को दी जाती है। सीएसईआर की कैंप-नास्ता परीक्षा में उन्होंने 2023 और2024 में राज्य टॉपर और 2025 में राष्ट्रीय टॉपर बनकर एक और कीर्तिमान स्थापित किया।

 

होमी भाभा बालवैज्ञानिक प्रतियोगिता, जो विज्ञान के क्षेत्र में सबसे कठिन परीक्षाओं में गिनी जाती है, उसमें 2024 मेंउन्हें स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ।इसके अतिरिक्त, साइंस ओलंपियाड फाउंडेशन द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय विज्ञानओलंपियाड में उन्होंने इंटरनेशनल रैंक 1 प्राप्त किया, जो यह दर्शाता है कि उनका दृष्टिकोण केवल राष्ट्रीय ही नहीं, वैश्विक स्तर पर भी मान्यता प्राप्त कर चुका है।

 

इतना ही नहीं, उन्होंने विभिन्न विज्ञान और गणित प्रतियोगिताओं में 100 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पदकजीते हैं।इन सबके अलावा, वह दो पेटेंट फाइलिंग भी कर चुकी हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनकी सोच न केवलनवोन्मेषी है बल्कि उसे औद्योगिक और तकनीकी रूप से संरक्षित करनेकी क्षमता भी है।

 

आध्या पॉल की यात्रा केवल पुरस्कारों की सूची नहीं है, बल्कि यह उस विचार की परिणति है जिसमें एक बच्चीपर्यावरण, शिक्षा और समाज के लिए एक स्थायी और सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में कार्य कर रही है।उनकी सोच में विज्ञान, प्रकृति और मानवीय मूल्यों का सुंदर समावेश है, जो उन्हें एक साधारण बालिका से हटकरएक प्रेरणास्रोत बनाता है।

हमारी धरती को हरा-भरा रखने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारों की नहीं, बल्कि हम सबकी है - इसी सोच को हकीकत मेंबदलने के लिए आध्या पॉल ने एक नई मुहिम, 'प्लैनेट पल्स' (planetpals.in) की शुरुआत की है।यह मंच बच्चोंऔर युवाओं को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जहाँ उन्हें मजेदार औररचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से प्रकृति से जुड़ना सिखाया जाता है। 'प्लैनेट पल्स' के ज़रिए आध्या का लक्ष्य हैकि हर बच्चा एक 'ग्रीन गार्जियन' बनकर अपने समुदाय और ग्रह के भविष्य को सुरक्षित करे।

 

आज जब विश्व जलवायु परिवर्तन, प्लास्टिक प्रदूषण, फास्ट फैशन की बर्बादी और ऊर्जा संकट से जूझ रहा है, ऐसेसमय में आध्या जैसी युवा वैज्ञानिकों की सोच और प्रयास हमें एक नई आशा देते हैं। उनका कार्य न केवल अन्यबच्चों को प्रेरित करता है, बल्कि नीति-निर्माताओं और समाज के हर वर्ग के लिए एक जागरूकता का संदेश भी है।

 

वह एक ऐसी मिसाल हैं जो यह दर्शाती हैं कि भारत की नई पीढ़ी न केवल सोच सकती है, बल्कि नवाचार करकेधरातल पर प्रभावी परिवर्तन भी ला सकती है।

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