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खरमोर अभयारण्य,सरदारपुर: क्या यही है मध्यप्रदेश में सुशासन?,14 ग्राम पंचायतों के साथ अन्याय,बाकी के साथ न्याय!



 (अक्षय भण्डारी की कलम)

धार जिले में स्थित सरदारपुर खरमोर अभयारण्य से जुड़े एक बड़े प्रशासनिक अन्याय का खुलासा हुआ है। खरमोर पक्षी के संरक्षण के नाम पर 14 ग्राम पंचायतों को 4 जून 1983 को वाइल्डलाइफ (प्रोटेक्शन) एक्ट 1972 की धारा 18 (1) के तहत अधिसूचित किया गया था। इसके बाद वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 20 के तहत इन ग्राम पंचायतों में भूमि की खरीदी-बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

ग्रामीणों के अधिकारों पर कुठाराघात

 इस अधिसूचना के कारण गुमानपुरा, बिमरोड, छडावद, पिपरनी, सेमल्या, केरिया, करनावद, सियावद, धुलेट, अमोदिया, सोनगढ़, महापुरा, टिमायची और भानगढ़ की हजारों की आबादी प्रभावित हो रही है। इन गांवों के निवासियों को अपनी ज़मीन बेचने या खरीदने की अनुमति नहीं है, जिससे उनका विकास अवरुद्ध हो गया है।

खरमोर की संख्या में भारी गिरावट, संरक्षण का औचित्य क्या?

 विगत 15 वर्षों से इन 14 ग्राम पंचायतों में खरमोर पक्षी की उपस्थिति दर्ज नहीं की गई है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, अभयारण्य में 2016 में 10, 2017 में 2, 2018 में 14, 2019 में 8, 2020 में 6, 2021 में 6 और 2022 में 5 खरमोर पक्षी देखे गए। ऐसे में सवाल उठता है कि जब यहां खरमोर पक्षी की संख्या नगण्य है, तो फिर इन ग्राम पंचायतों को इस अभयारण्य में क्यों रखा गया?

मनमानी शर्तें बनी बाधा

 17 जुलाई 2023 को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति की 73वीं बैठक में सरदारपुर खरमोर अभयारण्य की सीमाओं में संशोधन पर चर्चा की गई थी। 11 अगस्त 2023 को जारी पत्र के अनुसार, इस अभयारण्य के क्षेत्रफल को 348.12 वर्ग किमी से घटाकर 132.83 वर्ग किमी करने की सिफारिश की गई थी। लेकिन यह सिफारिश अभी तक लागू नहीं की गई।

  राज्य सरकार केवल सरदारपुर खरमोर अभयारण्य का क्षेत्रफल कम करने की अनुमति नहीं ले सकती, बल्कि उसे सोनवानी, बालाघाट, डॉ. भीमराव अंबेडकर, सागर, महात्मा गांधी अभयारण्य और बुरहानपुर के भी नोटिफिकेशन का प्रस्ताव भेजना होगा। इसके अलावा, कूनो और न्यू करमझिरी अभयारण्य में अतिरिक्त क्षेत्र जोड़ने की शर्त भी रखी गई है। ये शर्तें न केवल अनुचित हैं, बल्कि इस प्रक्रिया को लंबा और जटिल बना रही हैं।

संरक्षण कम, दोहरी नीति ज्यादा?

  सरदारपुर खरमोर अभयारण्य के संरक्षण के नाम पर जहां 14 ग्राम पंचायतों के लोगों को बंधन में रखा गया है, वहीं इसी अभयारण्य के पास धुलेट फोरलेन मार्ग पर 400/220 केवी पावर ग्रिड बिना वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अनुमति के स्थापित कर दिया गया। बताया जाता है कि विद्युत मंत्रालय (भारत सरकार) ने इस परियोजना के लिए अनुमोदन प्रदान कर दिया है। विद्युत अधिनियम, 2003 तथा भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 10 से 19 के प्रावधानों के अनुसार भूमि स्वामी की पूर्व सहमति आवश्यक नहीं है। तथापि, भूमि अधिग्रहण कार्यालय जिला मजिस्ट्रेट (भूमि अधिग्रहण), जिला धार द्वारा जारी आदेश दिनांक 31.03.2004 के अनुसार किया गया है। बताया जाता है कि इस संबंध में हालाँकि ईआईए की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन अभयारण्य के निकट होने के कारण पर्यावरण और वन्यजीव प्रभावों का प्रारंभिक मूल्यांकन किया गया था। मूल्यांकन ने पुष्टि की कि परियोजना से अभयारण्य या स्थानीय वन्यजीवों पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। किसी भी संभावित मामूली प्रभाव को दूर करने के लिए शमन उपाय लागू किए गए लेकिन कौन से कार्य शमन के किए गए वह दिखाई नहीं पड़ते हैं जबकि बताया जाता है कि पॉवर लाइने भूमिगत होना थी। जानकारी के मुताबिक, उपवनमण्डल कार्यालय सरदारपुर के कार्यालयीन अभिलेखों में पावर ग्रिड धुलेट निर्माण की अनुमति से सम्बंधित कोई पत्र उपलब्ध नहीं है।

  ग़ज़ब की बात तो तब हो गई कि राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड व राज्य वन्यजीव बोर्ड ने इसी पॉवर ग्रिड 400/220 से ही सरदारपुर खरमोर अभयारण्य (348.12 वर्ग किमी) एवं इसके 16.97 वर्ग किमी इको-सेंसिटिव ज़ोन में 220 केवी ओवरहेड पावर लाइन बिछाने की अनुमति राजपत्र अधिसूचना दिनांक 28.08.2020, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, एवं अन्य पर्यावरणीय प्रावधानों का उल्लंघन है। मेसर्स स्प्रिंग वायु विद्युत प्रा. लि. ने अनुमति प्राप्त करते समय 3.03 किमी भूमिगत केबल बिछाने की बात कही थी, परंतु 11.05 किमी ओवरहेड लाइन इको-सेंसिटिव ज़ोन को प्रभावित कर रही है। वन विभाग ने कंपनी के औचित्य पत्र की अनदेखी कर अनुशंसा दे डाली।


 इसके अतिरिक्त, मोबाइल टॉवर भी अभयारण्य के अधिसूचित क्षेत्र में बिना वन विभाग की अनुमति के स्थापित कर दिए गए हैं।

नए सर्वे वाली इंदौर-दाहोद रेल परियोजना से अभ्यारणय को खतरा

 नए सर्वे के आधार पर इंदौर-दाहोद रेल परियोजना खरमोर अभयारण्य व इको-सेंसिटिव ज़ोन से मात्र 27 मीटर की दूरी पर प्रस्तावित है। इसको लेकर हमने पत्राचार किए थे और आपत्ति जताई थी कि धार जिले के सरदारपुर में प्रस्तावित नवीन खरमोर अभयारण्य और वर्तमान खरमोर अभयारण्य के पास प्रस्तावित इंदौर-दाहोद रेल परियोजना की नई सर्वे वाली रेल लाइन नजदीक होने से वन्यप्राणियों की जीवनशैली पर नकारात्मक असर होगा और उनकी संख्या घट सकती है। इसे दृष्टिगत रखते हुए नए सर्वे पर प्रस्तावित इंदौर-दाहोद रेल परियोजना पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए।

 जानकारी मुताबिक सरदारपुर वनमंडल अधिकारी महोदय के पत्र क्र ११२८४ दिनांक १८/१२/२४ के पालनार्थ दिनांक ३०.०१.२५ को वन अमले द्वारा रेलवे के कर्मचारियो श्री तपेश राय और श्री यतेन्द्र शर्मा के साथ खरमोर अभ्यारणय के अधिसूचित क्षेत्र और इको सेंसिटिव जोन में मौका स्थल निरिक्षण किया गया वन परिक्षेत्र कार्यालय के पत्र क्र ४१६ दिनांक ०३/०२/२०२५ में निरिक्षण रिपोर्ट वरिष्ट कार्यालय प्रस्तुत कर दी गई है उक्त पत्र में उल्लेख किया गया है की रेलवे लाइन खरमोर अभ्यारण्य के ESZ के नजदीक से गुजर रही है एवं विषय विशेषज्ञों से खरमोर पक्षी पर रेलवे के कम्पन एवं ध्वनि प्रदुषण का क्या प्रभाव पड़ेगा उसके अध्ययन हेतु लेख किया गया गया है साथ ही ध्वनि रोधी दीवार या ग्रीन कॉरिडोर निर्माण जैसे किसी प्रावधान हेतु अनुसंशा की गई है.लेकिन ध्वनि रोधी या ग्रीन कॅरियोडोर जैसी व्यवस्था पर्याप्त नही ,वही जानकारी अनुसार नए सर्वे वाली रैलवे लाइन लगभग 1 किमी से कम है । वही हमारे द्वारा सूचना का अधिकार में मिली जानकारी के अनुसार रेलवे लाइन के संचालन से रेलगाड़ियों की तेज आवाज (120-125 dB) और कंपन, विशेष रूप से अभ्यारण्य के समीप, खरमोर पक्षी जैसे संवेदनशील प्राणियों की जीवनशैली में व्यवधान उत्पन्न करेगी। रेल लाइन निर्माण और परिचालन से वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास खंडित होंगे, जिससे उनका प्रजनन और भोजन खोजने की प्रक्रिया बाधित होगी। पिछले 15 वर्षों से खरमोर पक्षी की संख्या में लगातार गिरावट देखी गई है। यदि रेल लाइन इस क्षेत्र से गुजरती है, तो इस प्रजाति के पूर्ण विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाएगा। 

  रेलवेबोर्ड उतावली नए सर्वे से ही दिखाई दे रही है जबकि पुराने सर्वे से होकर भी इंदौर दाहोद रेल लाइन सरदारपुर से उमरकोट की ओर मिलाई जा सकती है पुराने सर्वे में खरमोर अभ्यारणय आ रहा है लेकिन अगर रेलवेबोर्ड चाहे तो अभ्यारणय छोड़कर भी रेल लाइन अनुमति लेकर निकाल सकती है । जिसमे ग्रीन कॅरियोडोर व साउंड प्रूफ दीवार व अन्य शर्तो पर अनुमति मिल सकती है।

आखिर न्याय कब तक?

  सरदारपुर खरमोर अभयारण्य की अधिसूचित सीमाओं को संशोधित करने और 14 ग्राम पंचायतों को इस बेड़ी से मुक्त करने की मांग अब तेज़ हो गई है। केंद्र सरकार की गैरज़रूरी शर्तों को हटाकर इस प्रक्रिया को शीघ्र पूरा किया जाना चाहिए। यह केवल सरदारपुर की जनता का नहीं, बल्कि पर्यावरणीय न्याय और सुशासन का भी प्रश्न है।

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