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डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर, पहली बार 87 के पार पहुंचा


नई दिल्ली, 3 फरवरी 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए टैरिफ (आयात शुल्क) के असर से भारतीय रुपया सोमवार को पहली बार 87 के स्तर को पार कर गया। रुपया ₹87.14 प्रति डॉलर के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया, जिससे आर्थिक जगत में चिंता बढ़ गई है।

रुपये में गिरावट के मुख्य कारण

भारतीय मुद्रा की यह ऐतिहासिक गिरावट अमेरिकी व्यापार नीतियों और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण हुई है। अमेरिका द्वारा कनाडा, मैक्सिको और चीन से आयात पर भारी शुल्क लगाने के कारण डॉलर मजबूत हुआ, जिससे रुपये समेत अन्य एशियाई मुद्राओं पर दबाव बढ़ गया।

इसके अलावा, चीनी युआन में गिरावट और विदेशी निवेशकों (FII) द्वारा भारतीय शेयर बाजार में बिकवाली भी रुपये की कमजोरी का एक बड़ा कारण रही।

भारतीय बाजारों पर असर

रुपये की गिरावट के चलते भारतीय शेयर बाजार में भी भारी गिरावट देखी गई। सेंसेक्स 482 अंक और निफ्टी 151 अंक नीचे आ गया। इस गिरावट के पीछे विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय बाजार से पैसा निकालना मुख्य वजह रही।

रुपये के कमजोर होने से कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, और अन्य आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे महंगाई दर पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। व्यापार घाटा भी और बढ़ने की संभावना है, जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) पर दबाव पड़ सकता है

विशेषज्ञों की राय

RBL बैंक के ट्रेजरी प्रमुख अंशुल चंदक का कहना है कि रुपये पर दबाव अगले 6-8 हफ्तों तक बना रह सकता है। उनका कहना है कि अमेरिकी डॉलर की मजबूती के कारण वैश्विक निवेशकों का विश्वास भारतीय बाजारों पर कमजोर हुआ है, जिससे मुद्रा बाजार प्रभावित हुआ है।

मॉर्गन स्टेनली की एक रिपोर्ट में कहा गया कि अगर अमेरिका और अन्य देशों के बीच टैरिफ युद्ध और बढ़ता है, तो एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को गंभीर झटका लग सकता है

सरकार का संभावित रुख

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये की अधिक गिरावट को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है। साथ ही, सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा देने के लिए नई नीतियां लागू कर सकती है

इसके अलावा, व्यापार घाटे को नियंत्रित करने के लिए सरकार निर्यात को बढ़ाने पर ध्यान दे सकती है, जिससे रुपये पर दबाव कम किया जा सके।

आगे की राह

डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति के कारण वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बनी हुई है। भारतीय रुपये की यह गिरावट निकट भविष्य में और बढ़ सकती है, लेकिन सरकार और केंद्रीय बैंक की नीतियां इस पर कितना असर डालती हैं, यह देखना बाकी है।

रुपये की स्थिरता के लिए विदेशी निवेश आकर्षित करने और व्यापार नीति में सुधार लाने की जरूरत होगी। अगले कुछ महीनों में, भारतीय मुद्रा बाजार में और उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है।

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