राजगढ़ (धार)। दादा गुरुदेव की पाट परम्परा के अष्टम पट्टधर गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचंद्र सूरीश्वर जी म सा के शिष्य एवं वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद्विजय हितेशचंद्रसुरीश्वरजी म सा के आज्ञानुवर्ती मुनिराज श्री जीतचन्द्र विजय जी म सा की निश्रा में प्रवचन चल रहे है ।
मुनिराज श्री जीतचन्द्र विजय जी म सा ने कहा कि आप दूर दूर से चातुर्मास आराधना हेतु पधारे है आप यहां से जरूर कुछ प्राप्त करके जाए । आत्मा को कैसे शुध्द बनाना है आत्मा पर लगे आवरण को कैसे हटाना है । हमारा मन कितने समय धर्म मे लगा हुआ है ये हमे खुद को सोचना है हम मन्दिर में बैठकर प्रभु की आराधना कर रहे है हमारा मन संसार मे भटक रहा है तो वो हमारी आराधना निष्फल हो जाएगी ।मन को आदेश देने का काम स्वयं का ही होता है ।जब धर्म करने का मन हो तब हमे मन और दिल का उपयोग करना है जब बात करना तब हमे मन और दिमाग का उपयोग करना है संसार की सारी वस्तुए नश्वर है सभी नष्ट होने वाली है जीवन मे अभिमान नही होना चाहिये जीवन मे स्वाभिमान होना जरूरी है ।
साध्वी श्री हर्षवर्धना श्रीजी म सा ने कहा कि संसार की सारी वस्तुये नश्वर है जो कपड़ा या गहने आपने आज पहने है वो गहने कल किसी ओर के हो सकते है कपडे गन्दे भी हो जाते है उनको हम धुलाई करके साफ करते है उसी प्रकार हमारी आत्मा को भी धर्मक्रिया करके हम शुध्द बना सकते है ।
दिनांक 29,30 ओर 31 जुलाई को पार्श्वनाथ अठमतप तेले की तपाराधना प्रारम्भ होगी । तीर्थ के मैनेजिंग ट्रस्टी सुजानमल सेठ ने आग्रह किया है कि अधिक से अधिक संख्या में श्री पार्श्वनाथ अठ्ठम तप की आराधना में जुड़कर धर्मोपाजन करे ।