( अक्षय भण्डारी,एडिटर टाइम्स ऑफ मालवा)
4 जून 1983 को एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, सरकार ने धार जिले के सरदारपुर में खरमोर अभ्यारण्य की घोषणा की। इस अभ्यारण्य में 14 गांवों को अधिसूचित किया गया था, जिसका उद्देश्य खरमोर पक्षी (Lesser florican) और उसके आवास की रक्षा करना था। इस घोषणा के बाद, उम्मीद थी कि इस दुर्लभ और सुंदर पक्षी की प्रजाति को संरक्षण मिलेगा और यह अपनी प्राकृतिक पारिस्थितिकी में सुरक्षित रह सकेगा।
हालांकि, अभ्यारण्य की घोषणा के बाद के चार दशकों में, इस क्षेत्र के ग्रामीणों ने कई समस्याओं का सामना किया है। अधिसूचना के तहत आने वाले गांवों में रहने वाले लोग अपनी निजी कृषि भूमि का क्रय-विक्रय नहीं कर पा रहे हैं। भूमि की रजिस्ट्री पर रोक ने इन ग्रामीणों की आर्थिक गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित किया है। जमीन का लेन-देन रुक जाने से न केवल किसान परेशान हैं, बल्कि इसके चलते कई विकास परियोजनाएँ भी इस क्षेत्र में नहीं आ पा रही हैं।
ग्रामीणों की समस्याएँ यहीं खत्म नहीं होतीं। निजी भूमि पर पाबंदियों के कारण, कई परिवारों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा है। वे अपनी जमीन बेचकर या गिरवी रखकर अपनी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते। इसके अलावा, सरकारी योजनाओं और परियोजनाओं का लाभ भी इन गांवों तक नहीं पहुंच पा रहा है। अधिसूचना के कारण भूमि के कानूनी विवादों में वृद्धि हुई है, जिससे विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न हो रही है।
अभ्यारण्य की स्थापना के बावजूद, खरमोर पक्षी की स्थिति में सुधार की बजाय गिरावट आई है। घास के मैदानों का तेजी से विनाश हो रहा है, क्योंकि इन्हें कृषि और शहरी विकास के लिए परिवर्तित किया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन ने भी इस पक्षी की समस्याओं को बढ़ा दिया है। अनियमित बारिश, तापमान में बदलाव और मौसम की अन्य अप्रत्याशित स्थितियों ने घास के मैदानों की पारिस्थितिकी को अस्थिर बना दिया, जिससे खरमोर की प्रजनन और भोजन की स्थितियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। खेतों में कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के व्यापक उपयोग से भी खरमोर की आबादी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अवैध शिकार और अन्य मानवीय हस्तक्षेप ने भी इस पक्षी के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है।
सरकार और विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों द्वारा घास के मैदानों को संरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन ये प्रयास अपर्याप्त साबित हो रहे हैं। घास के मैदानों की सुरक्षा और पुनर्स्थापना के लिए ठोस नीतियों और कार्यक्रमों की आवश्यकता है। स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में शामिल करना आवश्यक है। जागरूकता कार्यक्रम, शिक्षा अभियान, और सतत कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को संरक्षण में सहयोगी बनाया जा सकता है। सरकार द्वारा कठोर कानून और नीतियाँ बनाई जानी चाहिए जो घास के मैदानों और खरमोर के आवास को संरक्षित करें। संरक्षण क्षेत्रों की स्थापना और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए।
खरमोर पक्षी की संकटग्रस्त स्थिति एक गंभीर पर्यावरणीय चेतावनी है। इसके आवास का संरक्षण केवल इस पक्षी की ही नहीं, बल्कि समूची पारिस्थितिकी प्रणाली की सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। सत्ता और समाज की संयुक्त जिम्मेदारी है कि वे खरमोर पक्षी और उसके जैसे अन्य संकटग्रस्त प्राणियों के संरक्षण के लिए गंभीरता से कदम उठाएँ। केवल ऐसे प्रयासों से ही हम अपनी जैव विविधता को संरक्षित कर सकते हैं और पृथ्वी को एक स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण प्रदान कर सकते हैं।
इस लेख के माध्यम से हम सभी को जागरूक करना चाहते हैं कि प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए खरमोर जैसे पक्षियों का संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है। विकास और बदलती प्रकृति के चलते हम कहीं न कहीं अपनी प्राकृतिक धरोहर को खोते जा रहे हैं। अब समय आ गया है कि हम इस दिशा में गंभीरता से सोचें और ठोस कदम उठाएँ, ताकि न केवल खरमोर पक्षी बल्कि इस क्षेत्र के ग्रामीणों का जीवन भी सुधर सके।