फिल्म समीक्षा: Romanticc Tukde
कलाकार: पंकज बेरी, निकुंज मलिक, अमिया कश्यप, भक्ति पुन्जानी, धामा वर्मा, ब्रजेश झा, विवेकानंद झा
लेखक: शहज़ाद अहमद, वरदराज स्वामी
निर्देशक: वरदराज स्वामी
निर्माता: विजय बंसल, प्रिया बंसल
रिलीज:3 नवम्बर 2023
रेटिंग: 3/5
Romanticc Tukde Movie Review: अभी अभी एक बहुत खूबसूरत हिंदी फीचर फ़िल्म रिलीज हुई है। फ़िल्म का टाईटल है “रोमांटिक टुकड़े (Romanticc Tukde)” . फ़िल्म समीक्षक होने की हैसियत से कम से कम शब्दों में कहूँ तो ये फ़िल्म “रोमांटिक टुकड़े (Romanticc Tukde)” बहुत इम्प्रेसिव मूवी है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आगे मैं इस फ़िल्म पर बात करने वाला हूँ। फ़िल्म छोटे बजट की है, पर प्यार से बनाई गई है। फ़िल्म रोमांटिक टुकड़े के निर्देशक हैं वरदराज स्वामी (Varadraj Swami), जो कि हिंदी सिनेमा के एक तेज़ी से उभरते हुये फिल्म निर्देशक हैं|
ये ऐसा माना जाता है कि किसी फिल्म का निर्देशक यदि स्क्रीन प्ले राईटर हो और वो तकनीकी रूप से भी मज़बूत हो तो वो अपनी फिल्म के साथ एक्सपेरिमेंट ज़रूर कर सकता है| क्योंकि उसे फ़िल्म मेकिंग की चीज़ों पर पकड़ होती है। निर्देशक वरदराज स्वामी (Varadraj Swami) एक अच्छे राईटर भी हैं| इन्होंने माँझी द माउन्टेन मैन लिखी थी| ये नई टेक्नोलॉजी को बखूबी समझते हैं, और उनका इस्तेमाल करना जानते हैं|
इससे पहले वरदराज स्वामी द्वारा निर्देशित हिंदी फीचर कबाड़ द कॉइन भी बेहद उम्दा और एक अलग मिजाज़ की फिल्म थी, जो कि दर्शकों को ख़ूब पसंद आई थी। इस बार वरदराज स्वामी अपनी महत्वकांक्षी हिंदी फ़िल्म रोमांटिक टुकड़े लेकर आये हैं दर्शकों के सामने। फिल्म रोमांटिक टुकड़े की कहानी कहने को तो बिहार की पृष्ठभूमि पर आधारित है, मगर वास्तव में कहानी में उन्होंने जिस समस्या को दर्शाया है| वो देश, काल, समय से परे जाकर हर जगह की कहानी बन गई है| और यही कारण है कि हमें ये कहना पड़ेगा कि वरदराज स्वामी ने अपनी फिल्म “रोमांटिक टुकड़े (Romanticc Tukde)” के माध्यम से एक बार फिर से अपने डायरेक्शन का लोहा मनवाया है।
बिहार के एक गाँव की कहानी है फिल्म रोमांटिक टुकड़े। इमोशन से लबालब भरी है ये फ़िल्म। वुमेन इंपावरमेंट की बात करती हुई, ये फ़िल्म “रोमांटिक टुकड़े” आज भी देश में औरतों पर हो रहे घरेलू उत्पीड़न की ज्वलंत समस्या से रूबरू करा कर दर्शकों को झकझोर देती है। फ़िल्म के खूबसूरत स्क्रीन प्ले का कमाल है कि पर्दे पर कहानी दो तीन लेयर में चलती है, पर दर्शकों को समझने में कोई परेशानी नहीं होती।
वस्तुतः रोमांटिक टुकड़े की कहानी भारतीय सिनेमा की कथा यात्रा भी है| रोमांटिक टुकड़े 1990 के दशक के सिनेमा के सुनहरे दौर की कहानी है| जब टिकटें ब्लैक में बिकती थी, फिर भी सिनेमा के दर्शक सिनेमा देखने जाया करते थे। फ़िल्म में बड़ी सावधानी से सन 1990 से लेकर 2023 की भारतीय सिनेमा की लम्बी यात्रा को भी एक मनोरंजक कथा वृतांत के रूप में रखा गया है, जो कि क़ाबिले तारीफ़ है ।
देश में तेजी सिनेमा हॉल बंद हो रहे हैं | ये बात हम सभी जानते हैं कि फिल्म रोमांटिक टुकड़े की कहानी सिनेमा हॉल की कहानी है| निर्देशक ने इस फिल्म के माध्यम से देश में बंद हो रहे सिनेमा हॉल के दर्द को बखूबी से दिखाने में सफलता प्राप्त किया है| एक समय आते आते फिल्म रोमांटिक टुकड़े की कहानी बेहद प्रेरक हो जाती है और दर्शकों को अपने आगोश में ले लेती है| फिल्म देखते हुये दर्शक कई बार रो पड़ते हैं और कई बार हँसते हँसते लोटपोट हो जाते हैं| इन दिनों रोमांटिक टुकड़े देश भर के सिनेमा हॉल के अंदर दर्शकों का मनोरंजन करती है और दर्शकों को बार बार ताली बजाने पर मजबूर कर देती है|
फिल्म रोमांटिक टुकड़े (Romanticc Tukde) अपने आप में एक लेसन है| यदि गलत व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाई जाए तो देर सबेर ही सही न्याय ज़रूर मिलता है| न्यायालय में आज लोगों की आस्था बढ़ी है| आपकी आवाज़ सरकार में बैठे लोगों तक पहुँचती है, और सरकारी मशीनरी आपके विषय में सोचना शुरू कर देती है| फिल्म रोमांटिक टुकड़े से एक और लेसन हमें सीखने को मिलती है कि किसी भी चीज़ को करने या सीखने की कोई उम्र नहीं होती| आपकी लगन, मेहनत और रूचि पर निर्भर करती है कि आप क्या कुछ सीख सकते हैं और कर सकते हैं|
रोमांटिक टुकड़े (Romanticc Tukde) की कहानी बिहार के गाँव की है, जहाँ एक लड़की अपने प्रेमी के झांसे में आकर अपना सर्वस्व समर्पित कर देती है, और शादी से पहले ही प्रेगनेंट हो जाती है| प्रेमी उसे स्वीकार करने से मना कर देता है, उल्टे प्रेमी के घर के लोग गाँववालों के साथ मिलकर लड़की को जान से मार देने की साजिश करते हैं और लड़की पर आक्रमण कर देते हैं| लड़की जैसे तैसे अपनी जान बचाकर गाँव से भाग निकलती है| वो शहर में आ जाती है| वहाँ वो रेलवे यार्ड के अंदर छुपकर रहती है और बच्चे को पैदा करती है| बाद में शहर के सिनेमा हॉल में झाड़ू पोछा का काम करती है| समय के साथ लड़की सिनेमा देखकर बहुत कुछ सीखती है और पढाई लिखाई करती है| वो सिनेमा हॉल में काम करते हुये ग्रेजुएशन करती है और बीस साल बाद अपने बच्चे को लेकर गाँव आती है और अपने पुराने प्रेमी को गाँव वालों के सामने साबित करती है कि ये बच्चा इसका है, और इसने मुझे धोखा दिया था| छल किया था| अंततः गाँववालों को मानना पड़ा की लड़की सच बोल रही है|
कहानी बहुत खूबसूरती से लिखी गयी है| स्क्रीनप्ले के माध्यम से कहानी को बेहद ही नये अंदाज़ में प्रेजेंट करने की कोशिश किया गया है| रोमांटिक टुकड़े का स्क्रीनप्ले अपने आप में एक नायाब नमूना है| हर हाल में इस तरह के स्क्रीनप्ले को experimental script कही जायेगी| इस फिल्म के screen play की अपनी एक गति है जो कि फिल्म के शुरू से अन्त तक बनी रहती है|
स्क्रीनप्ले को इतने लेयर में लिखा गया है कि कई बार लेयर स्टोरी को समझने में मूल कहानी पीछे छूटने लगती है| ये शायद इस फिल्म के स्क्रीनप्ले का drawback हो सकता है| पूरी फिल्म देखने के दौरान एक फिल्म समीक्षक के रूप में दो तीन जगहों पर मुझे भी कन्फ्यूजन हुई है| समझने में दिक्कत आयी हैं| मगर मैं फिल्म समीक्षक होने के नाते मानकर चलता हूँ कि जब कोई लेखक निर्देशक अपनी कहानी के साथ इतने बड़े पैमाने पर एक्सपेरिमेंट करता है तो इस तरह की छोटी मोटी गड़बड़ी पैदा होना लाज़मी है|
स्क्रिप्ट शुरू से अंत तक दर्शकों के मनोरंजन करने में सक्षम है| पूरी फिल्म व्हाट happened next के आधार पर चलती है| लेखक की यही काबिलियत है| दर्शकों को फिल्म के अंत तक बांधे रखती है|
बेशक ढेरों नये कलाकार हैं| इस फिल्म में एक पंकज बेरी को छोड़ दे तो, चूँकि पंकज बेरी एक सधे हुये कलाकार हैं| उन्होंने ने अपने किरदार को इतना रियल जीया है कि ये विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि पंकज बेरी फिल्म में अभिनय कर रहे हैं या अपने अपने चरित्र को रियल लाइफ में जी रहे हैं| बाकी नये पुराने कलाकारों ने अपने चरित्र के साथ सौ प्रतिशत न्याय किया है| कहीं ऐसा आपको आभास नहीं होता कि ये नये कलाकारों की फिल्म है| अलबत्ता एक दो जगह क्राउड की थोड़ी कमी अवश्य दिखती है| इस फिल्म की कमज़ोर कड़ी की बात करें तो क्राउड की कमी खलती है| क्राउड के आभाव में फिल्म के कुछ scene कमज़ोर दिखते हैं और कई सारे फ्रेम खालीपन का अहसास कराते हैं| अभिनेताओं का अभिनय बेशक सराहनीय है|
Cinematography बेहद सधी हुई है| Cinematographer गाँव से लेकर छोटे शहर को उनके नेचुरल कलर में फ्रेमिंग करने में कामयाब रहे हैं| वहीँ पर फिल्म की एडिटिंग काबिले तारीफ है| एडिटर ने इतने लेयर कहीं जाने वाली फिल्म के हर चरित्र को अपने एडिटिंग के ज़रिये पर्दे पर बनाए रखा है| गीत और संगीत आले दर्ज़े का है| फिल्म के गाने पीयूष मिश्रा और केतन मेहता ने लिखा है| संगीत तुतुल भट्टाचार्य का है, जिन्होंने राम गोपाल वर्मा की फिल्म एक हसीना थी, सरकार, भूत और खोसला का घोसला जैसी सुपरहिट फिल्मों को म्यूजिक तैयार किया है| फिल्म का साउंड बहुत अच्छा डिजाईन किया गया है, अंत तक दर्शकों को बांधे रखता है|
कुल मिलाकर फिल्म रोमांटिक टुकड़े बहुत कम बजट में बनी निर्देशक वरदराज स्वामी (Varadraj Swami) की बेहद खुबसूरत फिल्म है, जिसे एक बार ज़रूर देखा जा सकता है|