(प्रो डॉ दिनेश गुप्ता- आनंदश्री,आध्यात्मिक व्याख्याता, माइंडसेट गुरु, मुम्बई)
राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है,हिंदी, खादी और गांधी एक ही सिक्के के तीन अद्भुत पहलू है । इसमें से किसी को भी अलग नही किया जा सकता हैं । महात्मा गांधी ने हमेशा " हिंदी " को राष्ट्र भाषा और जन भाषा बनाने का प्रयास किया है। उन्होंने हिंदी को भारत की ह्रदय भाषा कहा है।
-हिंदी उन्नति की भाषा है
कोई अतिशयोक्ति नही बल्कि हिंदी उन्नति की भाषा है। भारत का विकास अपने राष्ट्र भाषा और जन भाषा से ही होगा। ऐसा पूरा विश्वास महात्मा गांधी को था।
हिंदी की लिए ही उन्होंने कई जगह यह उल्लेख किया है कि अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता-समझता है। और हिन्दी इस दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है।
- भारत को जोड़ने वाली भाषा
हिंदी मात्र भाषा ही नही बल्कि भारत को भारतीय से,भारतीय को भारतीय से जोड़ने वाली कड़ी है। एक चैन है।
- सिर्फ नेता ही नही बल्कि हिंदी के पत्रकार
गांधी जी स्वयम गुजराती भाषिक थे लेकिन उन्होंने आंदोलन के पूर्व देश भ्रमण के समय जान लिया था कि हिंदी से ही स्वतंत्रा मिल सकती हैं । उनकी हिंदी गुजराती टोन में थी। उन्होंने दो अखबार नवजीवन और हरिजन सेवक हिंदी में प्रकाशित करते थे। यंहा तक कि प्रश्नों के उत्तर भी वह हिंदी में ही दिया करते थे।
- हिंदी और खादी को स्वदेशी आन्दोलन से जोड़ा
गांधी जी ने दुरदृष्टि से यह जान लिया था कि देश मे सभी को जोडने के लिए हिंदी और खादी को महत्वपूर्ण हथियार बनाया। जग जाहिर है कि हिंदी और खादी को गांव गांव से से जोड़ कर स्वदेश की ज्योत जगाई गयी।